(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
कुछ आवाज़ें होती हैं न, जिनको सुनकर दिमाग एकदम ख़राब हो जाता है. शरीर में सरसराहट सी उठती है. जैसे ब्लैकबोर्ड पर नाख़ून घिसने की आवाज़. ज़मीन पर मेटल रगड़ने की आवाज़. इनके बारे में सोचकर ही बहुत गंदा लगता है. ये कुछ ऐसी आवाज़ें हैं जो मुझे बहुत इरिटेट करती हैं. हो सकता है आपको दूसरी आवाज़ों से परेशानी हो. जैसे किसी के पैर घिसकर चलने की. या कोई जब चपड़-चपड़ खाता है, तब वो आवाज़ सुनकर उलझन होती है.
आमतौर पर ये आवाज़ें जब हमें परेशान करती हैं तो हम ख़ुद को संभाल लेते हैं. पर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो कुछ ख़ास आवाज़ों को सुनकर ख़ुद को संभाल नहीं पाते. ये आवाज़ें नॉर्मल ही होती हैं. पर इन्हें सुनने के बाद इंसान जो रिएक्शन देता है वो बहुत एक्सट्रीम होता है.
जैसे हमें सेहत पर मेल आया वैभव का. 27 साल के हैं. गुरुग्राम के रहने वाले हैं. उन्हें कई ऐसी आवाज़ों से दिक्कत है. जैसे ब्लैकबोर्ड पर चॉक घिसने से. पेपर पर पेन घिसने से. ये आवाज़ें सुनकर वो अपना आपा खो देते हैं. उन्हें हद से ज्यादा गुस्सा आ जाता है. जिसके चलते वो मार-पीट भी कर देते हैं. वैभव की जब ये दिक्कत बहुत ज्यादा बढ़ गई तो उन्होंने डॉक्टर को दिखाया. पता चला उन्हें मिसोफ़ोनिया नाम की समस्या है. ऐसा नहीं है कि ये आवाज़ें सुनकर उनको केवल इमोशनल लेवल पर असर पड़ता है. उन्हें शारीरिक असर भी पड़ता है. वैभव का ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है.
मिसोफ़ोनिया एक ऐसी समस्या है, जिसके बारे में लोगों को न के बराबर जानकारी है. आसपास के लोग समझ नहीं पाते कि इंसान एक आवाज़ सुनकर इतना अग्रेसिव क्यों हो रहा है. इसलिए मिसोफ़ोनिया से जूझ रहे लोग बहुत स्ट्रेस में रहते हैं. डिप्रेशन तक में चले जाते हैं. वैभव चाहते हैं कि हम अपने शो पर मिसोफ़ोनिया के बारे में बात करें. ये क्या होता है, क्यों होता है, इसका इलाज क्या है, इसकी जानकारी लोगों को दें ताकि वे समझ सकें कि कुछ लोग रिएक्ट क्यों करते हैं. तो सबसे पहले ये जान लेते हैं कि मिसोफ़ोनिया क्या होता है?
मिसोफ़ोनिया क्या होता है?
ये हमें बताया डॉक्टर ज्योति कपूर ने.

-मिसोफ़ोनिया एक ऐसा विकार है जिसमें कुछ ख़ास आवाज़ों से इंसान बहुत ज्यादा परेशान हो जाता है.
-उस परेशानी के चलते इंसान के रिएक्शन बहुत एक्सट्रीम हो जाते हैं.
-ये ख़ास आवाज़ें आमतौर पर नॉर्मल ही होती हैं.
-जैसे खाना चबाने की आवाज़.
-पेपर पर पेन चलाने की आवाज़.
-कीबोर्ड की टक-टक की आवाज़.
-पैर घिसकर चलने की आवाज़.
-इस तरह की आवाज़ें थोड़े-बहुत लेवल पर हमें परेशान कर सकती हैं.
-लेकिन जिन लोगों को मिसोफ़ोनिया की परेशानी होती है उनमें तनाव का स्तर इन आवाज़ों को सुनकर बहुत ज्यादा एक्सट्रीम हो जाता है.
-ऐसे लोग बहुत ज़्यादा पेरशान हो जाते हैं.
-बहुत गुस्से में आ जाते हैं.
-गुस्से के चलते वो आवाज़ करने वाले इंसान या ख़ुद को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
कारण
-मिसोफ़ोनिया के कारण बहुत ज़्यादा स्पष्ट नहीं हैं.
-आजतक जो भी रिसर्च हुआ है वो बहुत छोटे लेवल पर हुआ है.
-2019 में आई एक स्टडी के अनुसार दिमाग का आवाज़ों को प्रोसेस करने वाला हिस्सा जिसे ऑडिटरी कॉर्टेक्स कहते हैं, उसमें और उससे जुड़े नेटवर्क्स में गड़बड़ पाई गई है.

-इसके अलावा ब्रेन में एमेक्ताला नाम का हिस्सा होता है, जो भावनाओं का संचालक माना जाता है.
-उसके साइज़ और कनेक्शन में डिस्टर्बेंस देखा गया है.
-इसके अलावा जो प्रतिक्रिया होती है इन आवाज़ों को लेकर वो इतनी एक्सट्रीम होती है कि ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम (नर्वस सिस्टम का वो हिस्सा जो दिल, ब्रीदिंग, डिफेंस रिएक्शन को कंट्रोल करता है) में असामान्य एक्टिविटी होती है.
रिस्क फैक्टर
-मिसोफ़ोनिया क्योंकि शरीर में तनाव के रसायन की मात्रा बहुत बढ़ा देता है.
-इसके चलते मानसिक और शारीरिक प्रभाव देखे गए हैं.
-शारीरिक तौर पर ब्लड प्रेशर ऊपर-नीचे होना.
-सांसें तेज़ चलने लगना.
-प्रतिक्रियाओं के कारण दुर्घटना हो जाना.
-ख़ुद को नुकसान पहुंचा लेना.
-किसी और को नुकसान पहुंचा लेना.
-ये कुछ आम रिस्क हैं.
-मानसिक लेवल पर तनाव बढ़ता है.
-एंग्जायटी, घबराहट, मन में उदासी, चिड़चिड़ापन रहता है.
-ये समस्या ऐसी है जिसे कोई समझ नहीं पाता है.
-आमतौर पर जिसे ये समस्या है उसे ही दोषी माना जाता है.
-इंसान में गिल्ट आ जाता है.

-इसके चलते डिप्रेशन तक हो सकता है.
इलाज
-ऑडियोलॉजिस्ट और मनोचिकित्सक इसके इलाज की कोशिश कर रहे हैं.
-कारण ये है कि जिस तरह की ये परेशानी है, इसमें व्यावहारिक और इमोशनल लेवल पर बहुत असर पड़ता है.
-कुछ प्रोग्राम शुरू हुए हैं.
-जिसमें टिनिटस (इंसान अपने कान में एक आवाज़ सुनता है जो बाकी लोग नहीं सुन पाते, जिससे बहुत परेशानी होती है) के इलाज के लिए TRT नाम के प्रोग्राम से मदद मिलती है.
-इसको मिसोफ़ोनिया के इलाज के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.
-इसके अलावा कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी दी जाती है.
-जिसमें बताया जाता है कि तनाव को कैसे बेहतर तरीके से मैनेज कर सकते हैं.
-जिन आवाज़ों से परेशानी होती है, उनको किसी अच्छे एक्सपीरियंस से जोड़ा जाए तो इन आवाज़ों से होने वाली झुनझुलाहट कम की जा सकती है.
-मिसोफ़ोनिया के लिए दवाइयां ख़ासतौर पर उपलब्ध नहीं हैं.
-लेकिन इससे जुड़ी दूसरी तकलीफें जैसे ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर.
-डिप्रेशन
-एंग्जायटी
-या टॉरेट सिंड्रोम के लिए जो दवाइयां दी जाती हैं.
-वो मिसोफ़ोनिया के लक्षणों के लिए भी कारगर होती हैं.
-साथ-साथ काउंसलिंग और फैमिली थेरेपी भी बहुत ज़रूरी है.
-क्योंकि जो इंसान इस परेशानी से जूझ रहा है, उसके आसपास वाले कारणों को नहीं समझ पाते.
-इसके चलते तनाव और ज्यादा बढ़ जाता है.
अगर आप किसी ऐसे इंसान को जानते हैं जो कुछ ख़ास आवाज़ों को सुनकर बहुत एक्सट्रीम रिएक्ट करता, तो ज़रूरी है कि आप उससे लड़े नहीं. वजह समझें. हो सकता है ऐसा मिसोफ़ोनिया के कारण हों. इसलिए एक एक्सपर्ट से मिलें और सही सलाह लें. क्योंकि इस परेशानी का इलाज हो सकता है.
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