बच्चों के सिर का साइज़ क्यों बढ़ जाता है?
क्रेनियोसायनॉस्टॉसिस एक जन्मजात बीमारी है.
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(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
हमें सेहत पर मेल आया नमन का. लखनऊ के रहने वाले हैं. पिछले साल उनका बेटा पैदा हुआ था. अभी वो एक साल का नहीं हुआ. पर कुछ महीने पहले उन्होंने अपने बेटे में कुछ बदलाव नोटिस किए. उनके बच्चे के सिर का साइज़ काफ़ी बढ़ गया था. इसका असर चेहरे पर भी पड़ रहा था. चेहरे का शेप बदलने लगा था. आंखें ज़्यादा धसी हुई लगने लगी थीं. अब इतना छोटा बच्चा अपनी तकलीफ़ तो बोल कर बता भी नहीं पाता. नतीजा वो बहुत ज़्यादा रोता था. उसको चुप करवाना मुश्किल था.
नमन ने अपने बेटे को एक डॉक्टर को दिखाया. पता चला उसे क्रेनियोसायनॉस्टॉसिस नाम की कंडीशन है. मोटा-माटी समझें तो इसमें सिर का आकर बदल जाता है. उसका साइज़ बढ़ जाता है. चेहरे का आकर बदल जाता है. अब डॉक्टर ने नमन को अपने बेटे की सर्जरी करवाने की सलाह दी है. डॉक्टर चाहते हैं कि ये सर्जरी एक साल से पहले हो जाए. पर नमन को समझ में नहीं आ रहा कि वो इतने छोटे बच्चे की सर्जरी करवाए या नहीं. वो जानना चाहते हैं कि क्या इसका कोई और इलाज है.
हिंदुस्तान में हर 2500 बच्चों में से एक बच्चे को क्रेनियोसायनॉस्टॉसिस होता है. तो सबसे पहले समझ लेते हैं ये बीमारी क्या है और इसके पीछे क्या कारण हैं? क्रेनियोसायनॉस्टॉसिस बीमारी क्या है? ये हमें बताया डॉक्टर हिमांशु अरोड़ा ने.
डॉक्टर हिमांशु अरोड़ा, सीनियर कंसल्टेंट, न्यूरो एंड स्पाइन सर्जरी, फ़ोर्टिस, फ़रीदाबाद
-क्रेनियोसायनॉस्टॉसिस एक जन्मजात बीमारी है.
-कभी-कभी इसका जीवन के पहले साल में पता चलता है.
-हमारी खोपड़ी में कुछ हड्डियां हैं जो आपस में जुड़ी हुई होती हैं.
-ये जोड़ कभी-कभी समय से पहले जुड़ जाते हैं.
-इसकी वजह से सिर, चेहरे का आकार बदल जाता है.
-चेहरे की बनावट पर असर पड़ता है.
-इसी बीमारी को क्रेनियोसायनॉस्टॉसिस कहा जाता है.
-ये निर्भर करता है कि कौन सा जोड़ समय से पहले जुड़ गया है.
-बीच वाला या आगे वाला.
-ये देखते हुए क्रेनियोसायनॉस्टॉसिस के अलग-अलग टाइप होते हैं.
-इसमें सिर अलग-अलग आकार के हो जाते हैं.
-कई में सिर आगे से तिकोना हो जाता है.
-कुछ में नांव के आकार का हो जाता है या चपटा हो जाता.
-इन सब अलग-अलग आकारों की वजह से अलग-अलग नाम दिए जाते हैं. कारण -क्रेनियोसायनॉस्टॉसिस एक जेनेटिक बीमारी है.
-यानी ये बीमारी परिवार/रिश्तेदारों से बच्चों में आती है.
क्रेनियोसायनॉस्टॉसिस एक जन्मजात बीमारी है
-जिन बच्चों में ये बीमारी पाई जाती है, उनके अन्य अंग जैसे दिल, कान, नाक, गला, किडनी की जांच की जाती है.
-देखा जाता है कि कहीं इनमें भी कोई डिफेक्ट तो नहीं. लक्षण -पैदा होने के समय या पहले साल में बच्चे के सिर और चेहरे का आकार बदल जाता है.
-चेहरे पर मौजूद नसें ज़्यादा चमकदार और बड़ी हो जाती हैं.
-बच्चा बहुत ज़्यादा और तेज़ आवाज़ में रोता है.
-अगर दिमाग पर बहुत प्रेशर पड़ रहा है तो बच्चे को बार-बार उल्टियां आती हैं.
-सिर दर्द होता है.
-बच्चा खाना या दूध नहीं ले पाता.
-ज़रूरत से ज़्यादा सोता है.
-सिर बढ़ जाता है, जिसके कारण आंखें धसी हुई लगती हैं.
-इनमें से कोई भी लक्षण दिखें तो एक न्यूरोसर्जन के पास ज़रूर जाएं.
-अगर न्यूरोसर्जन नहीं है तो बच्चों के डॉक्टर को दिखा सकते हैं. डायग्नोसिस -बच्चों के डॉक्टर को दिखाने पर भी अंदाज़ा लग जाएगा कि इसमें और आगे जांच करवाने की ज़रूरत है या नहीं.
-डॉक्टर बच्चे की डिटेल्ड हिस्ट्री लेता है.
जिन बच्चों में ये बीमारी पाई जाती है, उनके अन्य अंग जैसे दिल, कान, नाक, गला, किडनी की जांच की जाती हैं
-जैसे बच्चा कब पैदा हुआ, कितने समय की प्रेग्नेंसी थी, बच्चे के रिश्तेदारों में ऐसी बीमारी तो नहीं.
-बच्चे का फिजिकल एग्जामिनेशन किया जाता है.
-सिर का साइज़ नापा जाता है, ये देखने के लिए कि वो नॉर्मल रेंज में है या नहीं.
-कई बार न्यूरोसर्जन बच्चे का 3D सीटी या MRI करवाने को कह सकते हैं. इलाज -इसका इलाज आमतौर पर सर्जरी के द्वारा ही किया जाता है.
-पहले एक साल के अंदर ही ये सर्जरी करवानी चाहिए.
-क्योंकि छोटे बच्चे की हड्डियां मुलायम होती हैं.
-इनपर ऑपरेशन करना आसान होता है.
-ऑपरेशन के दो लक्ष्य होते हैं.
-पहला. दिमाग पर प्रेशर कम किया जा सके.
-ताकि उसकी नॉर्मल ग्रोथ हो सके.
-दूसरा. दिमाग और चेहरे के विकार को ठीक किया जा सके.
-इसके लिए एक अच्छे एनेस्थेटिस्ट की ज़रूरत होती है.
-जो ऑपरेशन के दौरान बच्चे को ठीक से बेहोशी दे सके.
-एक अच्छी क्रिटिकल केयर टीम ज़रूरी होती है.
-कभी-कभी न्यूरोलॉजिस्ट और प्लास्टिक सर्जन की ज़रूरत भी पड़ सकती है.
डॉक्टर्स हिमांशु का कहना है कि अगर आपको बच्चे के पैदा होने के फौरन बाद या पहले एक साल में जो बताए गए लक्षण हैं, वो दिख रहे हैं तो देरी न करें. फौरन एक न्यूरोसर्जन या बच्चों के डॉक्टर को दिखाएं. साथ ही बिलकुल घबराने की ज़रूरत नहीं है. इस कंडीशन को सर्जरी की मदद से ठीक किया जा सकता है. पर सही समय पर इलाज लेना ज़रूरी है.