The Lallantop
Advertisement

बच्चे पैदा करने से जुड़ा कौनसा नया नियम आने वाला है?

ये कानून समलैंगिक जोड़ों के साथ भेदभाव करता है

Advertisement
Img The Lallantop
विपक्ष ने कहा ये बिल ट्रांसजेंडर, एलजीबीटीक्यू कपल्स और सिंगल पेरेंट्स को नज़रअंदाज़ किया है.
7 दिसंबर 2021 (Updated: 6 दिसंबर 2021, 05:24 IST)
Updated: 6 दिसंबर 2021 05:24 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
पप्पू और स्वीटी में बहुत भयानक वाला प्यार था. साथ जीने मरने की कसमें खा चुके थे. 5 साल पहले पप्पू और स्वीटी ने ज़माने से लड़कर कर ली शादी. अब ये कोई फिल्म होती तो कहानी यहीं खतम हो जाती. लेकिन ये थी रियल लाइफ तो शादी के दो महीने बाद से ही पड़ोस वाली आंटी स्वीटी से पूछतीं, बिटिया लड्डू कब खिलाओगी, सहेलियां कहतीं मौसी कब बनाओगी. पप्पू कहता जानू ये कब कहोगी कि मुझे खट्टा खाने का मन कर रहा है. स्वीटी शरमाकर रह जाती. लेकिन कुछ और महीने बीते और फिर बीते कुछ साल और स्वीटी और पप्पू ने पाया कि बहुत कोशिशों के बाद भी वो मम्मी-पापा नहीं बन पा रहे हैं. किसी ने कहा- इलाज करवाकर देखा क्या?
आप किसी फर्टिलिटी क्लिनिक का विज्ञापन नहीं देख रहे हैं. ये एक ऐसा मसला जो आपके घर से लेकर देश की संसद तक में डिस्कस होता है. क्या मसला? कि पप्पू-स्वीटी को बच्चा काहे नहीं हो रहा?

मसला क्या है?

लोकसभा के विंटर सेशन में कल पास हो गया असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी बिल. यानी बच्चा करने के तकनीकी तरीकों का ख़याल रखने वाला बिल. तकनीकी तरीके जैसे IVF यानी इनविट्रो फर्टिलाइज़ेशन या फिर सरोगेसी. और हां, जो बाबा-तांत्रिक बोलते हैं कि उनके आशीर्वाद से बेबी हो जाएगा, वो असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी में शामिल नहीं होता. उसे फ्रॉड कहते हैं.
तो शॉर्ट में एक डॉक्टर से ये जान लीजिए कि असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी क्या है.
"असिस्टेंट रिप्रोडक्टिव टेक्निक्स. इसका मतलब यह है कि जो डिलीवरीज़ नॉर्मल नहीं हो सकतीं, उसमें हम मदर्स को असिस्ट करते हैं. प्रॉब्लम पत्नी में भी हो सकती है और पति में भी.
सबसे बेसिक है आईयूआई. इंट्रायूटरिन इंसेमिनेशन. ऐसे मामले में फ़ीमेल बिल्कुल ठीक है. उसका यूट्रस भी ठीक है, एग्स भी ठीक बन रहे हैं. लेकिन जो मेल है उसमें प्रॉब्लम है. या तो उसके स्पर्म काउंट कम है या है ही नहीं. अगर नहीं है तो हम डोनर स्पर्म लेते हैं. हम स्पर्म बैंक से किसी भी डोनर का स्पर्म लेते हैं. डोनर की पहचान ज़ाहिर करना लीगली वैध नहीं है. डोनर के स्पर्म को यूट्रस के अंदर डिपॉज़िट कर देते हैं. अगर पति के स्पर्म ही लेने हैं, तो हम उसे कंसंट्रेट करते हैं. कंसंट्रेशन बढ़ने से कंसीव करने की संभावना बढ़ जाती है.
दूसरा है इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन, यानी आईवीएफ. इन विट्रो मतलब शरीर के बाहर. इसमें एक तरफ़ हम मदर के एग को मेच्योर करते हैं, फिर रिट्रीव कर लेते हैं. दूसरी तरफ़ हम हसबेंड का स्पर्म लेते हैं. इसके बाद हम शरीर के बाहर हम उसको फर्टिलाइज करते हैं. एंब्रियो बनाते हैं, फिर उसको यूट्रस के अंदर डिपॉज़िट करते हैं. इसीलिए इस प्रैक्टिस से होने वाले बच्चों को हम टेस्ट ट्यूब बेबीज़ कहते हैं क्योंकि बच्चा शरीर के बाहर एक टेस्ट ट्यूब में विकसित होता है. इसमें दोनों संभावनाएं हैं. हो सकता है स्पर्म डोनर का हो, हो सकता है पति का हो. अगर मां में कुछ कॉम्प्लिकेशन है तो हम डोनर एग्स भी ले सकते हैं.
अब तीसरी चीज़ ये आती है कि यूट्रस में ही प्रॉब्लम है. तब हम सरोगेसी करते हैं. न स्पर्म काउंट में कोई प्रॉब्लम है, न एग्स में. तो हम किसी सेरोगेट मदर का यूट्रस इस्तेमाल करते हैं. एक तरह से कह लीजिए 9 महीने के लिए यूट्रस किराए पर लेते हैं. बक़ायदा एग्रीमेंट साइन होता है. 9 महीने के लिए एक सरोगेट मदर बच्चे को अपने यूट्रस में डिवेलप करती है फिर कपल को बच्चा दे देती है."
अब हम आते हैं उस बिल पर जो संसद में डिस्कस हुआ. देखिए ज़ाहिर सी बात है,, अगर कोई हेल्थकेयर सुविधा है जिसका आप लाभ लेना चाह रहे हैं. तो ज़रूरी है कि सरकार उसके लिए नियम बनाए. ताकि आपके पैसों का या आपके शरीर को कोई नुकसान हो तो किसी की जवाबदेही तो रहे. इस बिल के मुताबिक़:
समलैंगिकों से भेदभाव
क्या किसी बच्चे की परवरिश करने के लिए शादी शुदा होना ज़रूरी है?

1. इसमें दो तरह के संस्थान शामिल होंगे. एक तो वो क्लिनिक जो फर्टिलाइज़ेशन काम करेंगे. दूसरे वो बैंक जो डोनेट किए हुए स्पर्म और ओवम को स्टोर करेंगे.
2. एक नेशनल रजिस्ट्री बनाई जाएगी और वह देश में सभी ART क्लिनिक्स और बैंक्स के एक सेन्ट्रल डेटाबेस की तरह काम करेगी. राज्य सरकारें रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए रजिस्ट्रेशन अथॉरिटीज़ की नियुक्तियां करेंगी. क्लिनिक और बैंकों को सिर्फ तभी रजिस्टर किया जाएगा, अगर वो दिए हुए नियमों का पालन करेंगे. यानी अगर उनकी सुविधाएं ठीक नहीं होंगी तो रजिस्ट्री नहीं होगी.
3. डोनेशन सिर्फ रजिस्टर्ड बैंक में हो सकेगा. और ये बैंक सिर्फ 21 और 55 वर्ष की आयु वाले पुरुष का सीमन और 23 से 35 वर्ष की आयु की महिलाओं का ओवम ले सकता है.
4. ओवम डोनर सिर्फ एक शादीशुदा महिला हो सकती है जिसका खुद का एक जीवित बच्चा हो, कम से कम तीन साल का. कोई महिला सिर्फ एक बार डोनेशन कर सकती है. और उस डोनेशन में सात से ज्यादा बार एक्सट्रैक्शन नहीं किया जा सकता.
5. बैंक सिंगल डोनर से प्राप्त स्पर्म या ओवम को एक से अधिक कपल को नहीं दे सकते.
6. ART की सेवा लेने वाला कपल, डोनर को बीमा यानी इंश्योरेंस देगा.
7. भ्रूण ट्रान्सफर करने के पहले उसके लिंग की जानकारी करना अपराध होगा.
8. भ्रूण ट्रान्सफर करने के पहले ये जांच करनी होगी कि वो स्वस्थ है या नहीं. उसमें कोई जेनेटिक बीमारी की आशंका तो नहीं है.
अब ये हैं कुछ मोटे मोटे नियम. इसके आलवा स्पेसिफिक नियम भी हैं. जो मोस्टली भ्रूण की खरीद फरोख्त को लेकर बने हैं. और उसे अपराध के दायरे में रखते हैं.
अब आप कहेंगे कि ये तो सब हो गईं अच्छी अच्छी बातें. लेकिन सब बातें अच्छी नहीं हैं. बिल के पास होने के पहले इसका भरसक विरोध हुआ. क्यों? LGTBTQ राइट्स के चलते. विपक्ष का कहना है कि ये बिल समलैंगिकों, ट्रांसजेंडर्स और सिंगल पिताओं को पूरी तरह से इग्नोर करता है.
सबसे पहले आप सुनिए कांग्रेस MP क्रति चिदंबरम को -
"हमारे पुराणों में अनकंवेंशनल बर्थ्स का ख़ूब ज़िक्र है. यह सरकार हमेशा कहती रहती है कि वे पुराणों से प्रेरित है. पर ये जो क़ानून सरकार ने बनाया है, यह किसी भी तरह से उदारवादी हिंदू एपिक से प्रेरित नहीं लगता. ये लॉ एक रिग्रेसिव विक्टोरियन माइंडसेट से प्रेरित है.
मैरिड लोगों की इस टेक्नोलॉजी का एक्सेस है. एलजीबीटीक्यू समुदाय को इस टेक्नोलॉजी का एक्सेस नहीं है. सिंगल पुरुषों को इस टेक्नोलॉजी का एक्सेस नहीं है. लिव इन कपल्स को इस टेक्नोलॉजी का एक्सेस नहीं है.
ये क़ानून भेदभाव करता है. आर्टिकल 14 का उल्लंघन करता है."
TMC सांसद काकोली घोष ने कहा,
"ट्रांसजेंडर, एलजीबीटीक्यू कपल्स और सिंगल पेरेंट्स को इस क़ानून ने नज़रअंदाज़ किया है. उनको भी पेरेंट बनने का हक़ है."
एनसीपी नेता सुप्रिया और ने भी एक काम की बात कही. आप वो भी सुनिए -
"इस देश में जोड़ों के जैसे ही सिंगल पुरुष और स्त्रियां भी पेरेंट्स बनना चाहते हैं. ख़ासतौर से एलजीबीटीक्यू समुदाय. 2007 के एडॉप्शन कानून के बाद सिंगल पुरुष गर्ल-चाइल्ड एडॉप्ट नहीं कर सकते. ये कानून किसी से पेरेंट बनने का अधिकार नहीं छीन सकता. कानून हम ही बनाते हैं और इसके बारे में हमें सघन बात करनी चाहिए."
हमने इस मसले पर हमने LGBTQ ऐक्टिविस्ट रुद्राणी छेत्री से भी बात की. मैंने इस बिल के बारे में उनकी राय जानी.
"ये क़ानून भेदभाव करता है. इस क़ानून के हिसाब से केवल हेट्रो सेक्शुअल जोड़ा और सिंगल औरतें बच्चा एडॉप्ट कर सकतीं हैं. और इसी वजह से हमारे जैसे और 'भारत के लोग' न पेरेंट बन सकते हैं और न ही इस बिल/टेक्नोलॉजी का उपयोग कर सकते हैं. मुझे इस बात में कोई तर्क नहीं दिखता. मैं फाइनेंशियली इंडिपेंडेंट हूं, एक स्थिर दिमाग़ का हूं और ज़िम्मेदारी ले सकता हूं.
अब मेरी एक साथी हैं, जो ट्रांसजेंडर हैं. वो एक ओल्ड-एज होम चलाती हैं. अब मुझे सरकार का लॉजिक समझ नहीं आता. एक व्यक्ति इतने लोगों की ज़िम्मेदारी ले सकता है, लेकिन एक बच्चे का पेरेंट नहीं बन सकता."
जीत छेत्री
जीत क्वीयर ऐक्टविस्ट हैं और इंस्टाग्राम पर येस वी एग्ज़िस्ट से जुड़े हुए हैं.

भारत में जो अडॉप्शन राइट्स हैं, उसे लेकर रुद्राणी का क्या सोचना है, मैंने ये भी जाना.
"अडॉप्शन को ले कर भी मेरा यही मानना है कि अब इसमें बदलाव की ज़रूरत है. मुझे ये समझ नहीं आता कि अगर मुझे हक़ है एक लड़के को अडॉप्ट करने का, तो मैं एक लड़की या किसी और जेंडर के बच्चे को क्यों नहीं अडॉप्ट कर सकता?
इसके पीछे, मुझे लगता है, ये खयाल होगा कि लड़कियों को किसी भी प्रकार के शोषण से बचाना है. मर्दों से. लेकिन ये क़ानून बनाने वाले भूल जाते हैं कि हैवानियत के ऐसी बातें भी सामने आती हैं कि पुरुषों ने लड़कों का भी शोषण किया.
मैंने कुछ साल पहले उस संगठन से बात की थी जो भारत में अडॉप्शन को रेगुलेट करता है. उन्होंने मुझसे कुछ सवाल पूछे, मेरे बैकग्राउंड को ले कर. जब मैंने ज़ाहिर किया कि मैं एक गे आदमी हूं, क्या मैं बच्चा अडॉप्ट कर सकता हूं? तो उन्होंने कहा, कि हां! क्योंकि क़ानून में सेक्शुअल ओरिएंटेशन को ले कर कुछ नहीं लिखा है. फिर मैंने जब ये बताया कि मेरा एक पार्टनर है, तब उसने मुझे बहुत अनक्लियर सा जवाब दिया. और ये भी कहा, कि बच्चे की सलामती के लिए वो समय-समय पर चेक करते रहते हैं. ये बड़ा अजीब लगता है. मतलब आप मुझे अडॉप्ट करने की अनुमति दे सकते हो, लेकिन अगर मेरा कोई पार्टनर है जिसके साथ मैं ज़िंदगी बिताना चाहता हूं, तो आप मुझे अडॉप्शन की अनुमति नहीं देते?"
रुद्राणी, इंडिया जैसे कल्चर में क्वीर कम्युनिटी को मैरिज राइट्स ही नहीं हैं. ऐसे में किड्स राइट मांगना एक फार-फेजड आईडिया नहीं है?
"मुझे नहीं लगता कि ये फार फेजेड आइडिया है. मैं नहीं मानता की किसी बच्चे की परवरिश करने के लिए शादी शुदा होना ज़रूरी है. मैं किसी लिव-इन पार्टनर के साथ हो सकता हूं. मेरे अलग अलग पार्टनर्स भी हो सकते हैं. इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि मैं अपने बच्चे की परवरिश कैसे करता हूं.
भारत में अनाथालयों की हालत देख लीजिए. उन बच्चों की बेहतर परवरिश हो सकती है. हमारे जैसे कई क्वीर समुदाय के लोग ऐसे बच्चों को बेहतर परवरिश दे सकते हैं, लेकिन हमें ये अनुमति नहीं है."
तो भाई स्वीटी और पप्पू के लिए चीजें फिर भी आसान हैं. वो शादीशुदा हैं, और आम भाषा में कहें तो स्ट्रेट हैं. लेकिन माता या पिता बनने की ख्वाहिश कोई भी रख सकता है. इसमें उसकी सेक्शुएलिटी यानी उसकी लैंगिकता को नहीं आना चाहिए.
आज हमने एक क्वियर से जुड़े मुद्दे पर बात की. हम ऐसे कई मुद्दों को कवर कर चुके हैं और आगे भी करेंगे. हम ऐसे कितने ही टर्म्स से रोज़ गुज़रते हैं. मसलन - फेमिनिज़्म, फेमिनाज़ी, ट्रांस जेंडर, होमो सेक्सुअल. तो हमारी टीम ने तय किया है कि हम आपके लिए ऐसे ही शब्दों की एक पाठशाला लाएंगे. अब इस पाठशाला में आपको कौन से शब्दों के बारे में जानना है, वो हमें बताइए. कुछ हमने तय किए हैं, कुछ आप करिए.
क्या कहना है आपका? बताएं कमेंट सेक्शन में. शुक्रिया.

thumbnail

Advertisement

election-iconचुनाव यात्रा
और देखे

Advertisement

Advertisement

Advertisement