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अबॉर्शन के नियमों में क्या बदलाव हुए, डिटेल में समझिए MTP Act

MTP ऐक्ट को डीटेल में समझकर अपने अबॉर्शन राइट्स जानिए

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मार्च 2021 में एमटीपी एक्ट में संशोधन का प्रस्ताव पारित हुआ.
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21 नवंबर 2021 (Updated: 20 नवंबर 2021, 04:17 IST)
Updated: 20 नवंबर 2021 04:17 IST
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हमारे देश में अबॉर्शन का नया कानून बन गया है. पर क्या हम और आप इसके बारे में जानते हैं?
पहले प्रिया से मिलिए. 22 साल की लड़की. उसने सेक्स किया. सेफ सेक्स. लेकिन कॉन्ट्रासेप्शन के तरीके जैसे कंडोम या पिल यूज करने के बाद भी वो प्रेग्नेंट हो गई. तो वो पहुंची अस्पताल. अबॉर्शन के लिए. अस्पताल सरकारी था. तो उन्होंने इलाज, अबॉर्शन और काउंसिलिंग के बजाय मोरल पुलिसिंग शुरू कर दी. डॉक्टरों ने कहा, तुम बेशरम हो. तुम्हारा वीडियो बनाकर फैमिली को भेज देंगे. तुम्हें थाने ले जाएंगे. मगर प्रिया कानून जानती थी. इसलिए डटी रही. फिर वो बोले, अपने पार्टनर या पति को लाओ. प्रिया ने कहा, कानून के हिसाब से ऐसा करना जरूरी नहीं. फाइनली डॉक्टर्स ने उसका अबॉर्शन किया.
मगर सब प्रिया की तरह नहीं हैं. कई लड़कियां कभी झोलाछाप डॉक्टर के पास जाती हैं, कभी गलत दवा लेती हैं, तो कभी गलत रास्ता उठाती हैं. इसकी एक वजह, उन्हें कानून नहीं पता. तो इसलिए आज हम भारत में अबॉर्शन से जुड़े लॉ की बात करेंगे.

अबॉर्शन पर कानून क्या है?

अबॉर्शन यानी गर्भपात है क्या? आसान भाषा में, यूटरस यानी गर्भाशय से अविकसित, या अल्पविकसित भ्रूण को हटाने को कहते हैं. यानी फ़ीटस को हटाने का प्रोसेस है. जिसमें फीटस की मृत्यु हो जाती है. ये मिस-कैरेज के रूप में अचानक हो सकता है, या आर्टिफिशियल तौर से मेडिकल ट्रीटमेंट के जरिए भी हो सकता है.
सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

अब कानून की बात. हमारे देश में अबॉर्शन पर पहला कानून बना 1971 में. इसे कहा जाता है MTP ऐक्ट. फुल फॉर्म, Medical Termination of Pregnancy Act, 1971. इसके मुताबिक एक सर्टिफाइड डॉक्टर अस्पताल में अबॉर्शन कर सकता है. कब-कब कर सकता है. इसकी कंडिशंस तय की गईं.
पांच स्थितियों में औरतें अबॉर्शन करवा सकती थीं-
# प्रेग्नेंट महिला का अबॉर्शन नहीं किया तो उसे सीरियस मेंटल या फिजिकल इंजरी हो सकती है.
# प्रेग्नेंट महिला पहले से ही किसी सीरियस मेंटल या फिजिकल बीमारी से जूझ रही है और अबॉर्शन नहीं किया तो ये बढ़ सकती है.
# कोई जेनेटिक बीमारी है, प्रेग्नेंट महिला की फैमिली में और ये महिला के पेट में पल रहे बच्चे में भी आ सकती है और ये बीमारी खतरनाक है.
# प्रेग्नेंट औरत गरीब है, उसे लगता है कि वो इस बच्चे को नहीं पाल सकती है.
# औरत रेप के चलते प्रेगनेंट हुई है और वो इस बच्चे को नहीं चाहती.
यानी ऐसा नहीं कि प्रेग्नेंसी की किसी भी स्टेज में मन किया कि बच्चा नहीं करना, फिजिकल, फाइनेंशियल या इमोशनल वजहों से तो अबॉर्शन करवा लिया.

कानून में अब तक बदला क्या-क्या?

ये तो हुई 1971 के कानून की बात. बाद के बरसों में देखा गया कि ये कानून नाकाफी है. तो आई बदलाव की बात. और फिर मार्च 2021 में यानी इसी साल आया MTP एक्ट में संशोधन का प्रस्ताव. पारित हुआ तो बन गया नया कानून. क्या था इसमें?
# पहले 20 हफ्ते की प्रेग्नेंसी तक ही अबॉर्शन कराया जा सकता था. अब उसे बढ़ाकर 24 हफ्ता कर दिया गया है.  हालांकि, चार हफ्ते का ये रिलैक्सेशन केवल स्पेशल केसेस के लिए दिया गया है. स्पेशल केसेस यानी तब जब प्रेग्नेंसी रेप की वजह से हुई हो, प्रेग्नेंट महिला का मैरिटल स्टेटस चेंज हुआ है, प्रेग्नेंट माइनर हो आदि. इस टर्मिनेशन के लिए दो रजिस्टर्ड डॉक्टरों का कंसेंट लेना ज़रूरी होगा.
# पहले 12 से 20 हफ्ते तक की प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने के लिए दो डॉक्टरों की सहमति लेनी पड़ती थी. अब 20 हफ्ते तक की प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने के लिए केवल एक डॉक्टर की सहमति काफी होगी. 20 से 24 हफ्ते तक की प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने के लिए दो डॉक्टरों की मंजूरी की ज़रूरत होगी.
# महिलाएं अब कॉन्ट्रासेप्टिव के इस्तेमाल के बाद भी होने वाले प्रेगनेंसी को खत्म कर सकती हैं, चाहे वो मैरिड हों या अनमैरिड. पहले कानून में कहा गया था कि केवल एक "विवाहित महिला और उसका पति" ही ऐसा कर सकता है. पर अब 'औरत और उसका पार्टनर' कर दिया गया है.
# स्पेशल डॉक्टर्स और मेडिकल बोर्ड ने एक और ऐसा फैसला लिया जो के डीबेट का मुद्द बन गया है. अगर प्रेगनेंसी के किसी भी वक़्त बच्चे के फिजिकली डिसेबल होने का पता चलता है तो इस अधार पर अबॉर्शन करवाया जा सकता है. इस अबॉर्शन के लिये कोई भी समय सीमा नहीं है. ये कानून स्टेट गर्वमेंट्स अपने हिसाब से स्टेट्स में लागू करवाएंगे.
# एक्ट ये सुनिश्चित करेगा कि अबॉर्शन करवाने वाली महिलाओं की प्राइवेसी बनी रहे.

कानून पर बहस क्या है?

एक बात जो एक्टिविस्ट्स बार-बार कह रहे हैं वो ये कि यह पूरा MTP ऐक्ट सुप्रीम कोर्ट द्वारा राइट टू प्राइवेसी को फंडामेंटल करार देने के पैमाने पर खरा नहीं उतरता. ये ऐक्ट राइट टू प्राइवेसी को कंट्राडिक्ट करता है. उसका उल्लंघन है.
भारत में अबॉर्शन को सबसे बड़ा टैबू माना जाता है. औरतों को सिर्फ़ बच्चा पैदा करने का ज़रिया और पारंपरिक रूप में आदर्श मां समझे जाने की वजह से मेडिकल फ्रेटरनिटी में भी महिलाओं को अबॉर्शन न करवाने का ज्ञान दिया जाता है. ये बात इंडिया स्पेंड ने सितंबर 2020 की रिपोर्ट में बताया है. डॉक्टर्स ने पेशेंट्स को जगह-जगह मोरल पुलिस किया है, उन्हें धमकाया है. ऐसे ही मामले इस रिपोर्ट मे सामने आए हैं.
मॉरल पुलिसिंग, सोशल प्रेशर, लोग क्या कहेंगे वाला डर... ये कुछ वजहें हैं जिनकी वजह से कई लड़कियां अनसेफ अबॉर्शन का ऑप्शन चुनती हैं. अनसेफ अबॉर्शन यानी रजिस्टर्ड मेडिकल प्रोफेशनल से मदद लेने की बजाए अनट्रेन्ड लोगों की मदद या खुद से अबॉर्शन की कोशिश करना, ऐसी चीज़ें खाना जो .  अबॉर्शन किये जाते हैं. भारत में आधे या 56% से अधिक अबॉर्शन्स अनसेफ़ हैं और अनसेफ़ अबॉर्शन्स के कारण हर रोज़ 10 भारतीय महिलाओं की मौत हो जाती है, यह डेटा हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर की 2015 की एक रिपोर्ट का है. यूएन के अनुसार, वैश्विक स्तर पर अनसेफ़ अबॉर्शन के कारण हर साल लगभग 47,000 महिलाओं की मृत्यु हो जाती है.
और यूएन के 2019 में निकाले गए डेटा के अनुसार जिन देशों में महिलाओं के रिक्वेस्ट पर बच्चा अबॉर्ट करवा पाने का हक़ है, वहां मैटरनल मॉर्टेलिटी रेट न के बराबर है. भारत के पड़ोसी नेपाल और उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, चीन, वियतनाम, थाईलैंड और कंबोडिया समेत कुल 73 देश प्रेग्नेंट महिला की रिक्वेस्ट पर उसे अबॉर्शन की सुविधा देते हैं.
मार्गरेट सैंगर
मार्गरेट सैंगर

हम अपनी बात अमेरिकी सेक्स एजुकेटर और एक्टिविस्ट मार्गरेट सैंगर की अबॉर्शन राइट्स के लिए कही गई बात के साथ खत्म करेंगे,
"कोई भी स्त्री अपने आप को तब तक स्वतंत्र नहीं कह सकती जब तक उसके पास अधिकार न हो के वो चुन सके कि वो आख़िर मां बनना चाहती है या नहीं."

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