The Lallantop
Advertisement

पुरुष से औरत बनने के लिए ऑपरेशन कराना है, लोगों से मदद मांगी तो ये गंदगी मिली

ऋषिकेश राउत 22 साल के हैं और अब उन्हें अपने शरीर में घुटन होती है.

Advertisement
Img The Lallantop
Rishikesh Raut ने अपनी सर्जरी के लिए फंड रेज़र डाला था. जिसके बाद कई लोगों ने उनके खिलाफ सोशल मीडिया पर घटिया बातें लिखी थीं. फोटो- Instagram
font-size
Small
Medium
Large
17 जून 2021 (Updated: 17 जून 2021, 07:47 IST)
Updated: 17 जून 2021 07:47 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
ऋषिकेश राउत. 22 साल के हैं. ट्रांसजेंडर हैं. जेंडर कंफर्मेशन सर्जरी कराना चाहते हैं. पर उसका खर्च इतना है कि वो अकेले उठा नहीं सकते. इसलिए उन्होंने क्राउड फंडिंग की मदद से ऑपरेशन के लिए पैसे जुटाने के बारे में सोचा. किसी काम को पूरा करने लिए जब बहुत लोग थोड़े-थोड़े पैसे डोनेट करें तो उसे क्राउड फंडिंग कहते हैं. ऋषिकेश ने सोशल मीडिया पर क्राउड फंडिंग वाली वेबसाइट की लिंक डाली. बताया कि ये ऑपरेशन उनके लिए, उनकी असली पहचान के लिए बहुत ज़रूरी है. उन्होंने लोगों से मदद करने की गुज़ारिश भी की.
कई लोगों ने ऋषिकेश के इस कदम की सराहना की. उन्हें मैसेज, मदद और कमेंट्स के जरिए अपना प्यार और सपोर्ट भेजा. कई लोगों ने उनके पोस्ट पर सिर्फ इसलिए कमेंट किया कि उनकी पोस्ट की रीच बढ़े और ज्यादा से ज्यादा लोग उनकी मदद कर पाएं.
पर सोशल मीडिया ट्रांसफोबिक लोगों से भरा पड़ा है. ऐसे लोग जिनके लिए दो ही जेंडर मान्य है. एक पुरुष और एक महिला. बाकी सबसे नफरत करने और नफरत फैलाने को वो अपना फर्ज समझते हैं. ऐसे लोगों को मौका मिल गया ऋषिकेश को नीचा दिखाने का. इन लोगों न घटिया से घटिया बातें उनके खिलाफ लिखी गईं. उदाहरण देखिएः
तुम मर क्यों नहीं जाते, कम से कम तुम्हारे मां-बाप को शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा.

तुम्हारे जैसों को तो पीटपीटकर मार डालना चाहिए.

तुमको अपना पीनस काट लेना चाहिए.

तुम्हारे जैसे लोग समाज को गंदा करते हैं.

इस तरह के तमाम कमेंट्स हैं. इस पूरे मामले पर हमने ऋषिकेश से बात की. उन्होंने बताया कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि लोग इस हद तक जाकर LGBTQ समुदाय के प्रति, उनके प्रति अपनी नफरत जाहिर करेंगे. ऋषिकेश ने बताया कि ऑपरेशन के लिए उन्हें सात लाख रुपये की ज़रूरत है. क्राउड फंडिंग की मदद से करीब पौने तीन लाख रुपये उन्होंने जुटा लिए हैं. पैसे पूरे जमा होने के बाद वो जेंडर कंफर्मेशन सर्जरी करवाएंगे.
ऋषिकेश ने बताया,
लोग ये नहीं समझते हैं कि गे या ट्रांसजेंडर होना गैर प्राकृतिक नहीं है. उन्हें ये समझ नहीं आता कि उनकी इस तरह की बातों का किसी मानसिक सेहत पर क्या असर पड़ता है. मैं डिप्रेशन और एंग्जायटी से गुज़र रहा हूं. लोगों की नफरत के चलते मैं शायद खुद को खत्म कर लेता. लेकिन मेरे सपोर्ट में खड़े लोगों का प्यार मुझे हिम्मत देता है, उन्होंने मुझे बचाकर रखा है.
कैसा रहा बचपन ऋषिकेश बताते हैं कि उनका बचपन काफी मुश्किल भरा रहा. बहुत बचपन से वो यौन शोषण का शिकार होते रहे. एक लंबा वक्त ये समझने में गुज़रा कि वो असल में हैं क्या. वो बताते हैं कि बचपन में उन्हें लड़कियों के साथ खेलना अच्छा लगता था. लड़कियों की तरह तैयार होना अच्छा लगता था. लेकिन उन्हें पता नहीं था कि ऐसा क्यों है. घरवाले और आस-पड़ोस के लोगों को लगता था कि वो अगर अपने भाईयों के साथ खेलने लगें तो 'ठीक' हो जाएंगे.
वो बताते हैं कि जब वो 16 साल के थे तब उन्हें समझ आया कि वो स्ट्रेट पुरुष नहीं हैं. पर सेक्शुअलिटी के बारे में उन्हें बहुत जानकारी नहीं थी. तो उन्हें लगा कि वो गे हैं. इस बारे में उन्होंने अपने साथ के कुछ लड़कों को बताया, और बात छिपाने की एवज में उन लड़कों ने उनका फायदा उठाया. सेक्शुअली भी और फाइनेंशियली भी. जब ऋषिकेश थोड़े और बड़े हुए तब उन्हें पता चला कि वो एक नॉन-बाइनरी ट्रांसजेंडर हैं. खुद को एक्सप्लोर करने के क्रम में ऋषिकेश ने ग्राइंडर डेटिंग ऐप जॉइन किया. यहां भी कई ऐसे लोग मिले जो सिर्फ उनका फायदा उठाना चाहते थे.
आखिर में ग्राइंडर पर ही उन्हें एक ऐसे व्यक्ति मिले जिन्होंने उन्हें उनकी सेक्शुअलिटी को लेकर गाइड किया. बताया कि कहां, कैसे मदद मिल सकती है. इसके बाद वो मिस्ट से जुड़े. ये एक पुणे बेस्ड संस्था है, जो LGBTQ समुदाय के लिए काम करती है. यहां उन्हें खुद को समझने में काफी मदद मिली. परिवार वालों का कैसा रहा सपोर्ट? ऋषि के परिवार वालों को लगता था कि उनमें कोई दिक्कत है. जिसे ठीक करने की ज़रूरत है. इसके लिए उनके पेरेंट्स ने कंवर्जन थैरेपी का सहारा भी लिया. ऋषिकेश बताते हैं,
"मेरे पेरेंट्स मुझे एक साइकायट्रिस्ट के पास लेकर गए. इस उम्मीद में कि वो मुझे ठीक कर देंगे. पर मुझमें कोई दिक्कत थी ही नहीं, तो डॉक्टर ठीक क्या करते. किस्मत से वो डॉक्टर मेरी दिक्कतों को समझते थे. उन्होंने मेरी पूरी बात सुनी. उस वक्त घरवाले ऐसा कुछ सुनने-समझने की स्थिति में नहीं थे. तो उन्होंने उन्हें बताया कि मैं अभी छोटा हूं, मेरे शरीर में टेस्टेस्टेरॉन हॉर्मोन्स कम हैं, इस वजह से मैं ऐसा हूं. बड़े होने पर सब ठीक हो जाएगा. तब तो मुझे ये भी नहीं पता था कि टेस्टेस्टेरॉन होता क्या है."
ऋषिकेश बताते हैं कि इसके अलावा, उनके पेरेंट्स उन्हें एक और सायकायट्रिस्ट के पास लेकर गए थे. उस सायकायट्रिस्ट ने उन्हें हिप्नोटाइज़ करने की कोशिश की. उसने बहुत पैसे लिए और वो उनके घरवालों से कहते थे कि वो ऋषि को 'ठीक' कर देंगे. ऋषि बताते हैं कि उनके घरवाले कितना भी पैसा खर्च करने को तैयार थे. लेकिन ऋषि अड़ गए, तो वो लोग उन्हें दोबारा वहां नहीं ले जा पाए.
ऋषि के घर वाले उनके कपड़ों, शेव करने को लेकर बहुत ज्यादा सवाल करते थे. करीब दो साल पहले ऋषि ने उन्हें अपने बारे में सबकुछ बता दिया. वो बताते हैं कि अब उनके घरवालों में थोड़ी- थोड़ी एक्सेप्टेंस आ रही है. वो अब उनके साथ नहीं रहते हैं. घरवालों को पता है कि उनका एक बॉयफ्रेंड है. इस पर वो लोग अब आपत्ति नहीं करते हैं. हालांकि, ऋषि बताते हैं कि उनके घरवाले ये कभी एक्सेप्ट नहीं करेंगे कि वो अपने बॉयफ्रेंड को लेकर घर आएं, या उनसे शादी कर लें.
First Annual Pride Arts Fest Trinidad भारत में भी समलैंगिकता को अपराध माना जाता था. 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया. (तस्वीर: Getty Images)
कब तक शुरू होगी ऋषि की सर्जरी ऋषि बताते हैं कि अभी उनके पास सफिशिएंट फंड नहीं है. जितना पैसा है उससे वो प्रोसेस शुरू तो करवा सकते हैं लेकिन प्रोसेस के बीच में फंड खत्म हो गए तो दिक्कत ज्यादा हो जाएगी. दूसरी चीज़ ऋषि बताते हैं कि जेंडर कंफर्मेशन सर्जरी के दौरान कोई भी व्यक्ति बहुत ज्यादा हॉर्मोनल बदलावों से गुज़रता है. इसलिए वो कहते हैं कि वो कोविड19 के हालात थोड़े बेहतर होने पर प्रोसेस शुरू करवाएंगे. ताकि प्रोसेस के दौरान वो लोगों से मिल सकें. उनसे बात कर सकें. अकेले घर पर रहना उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गलत असर डाल सकता है. क्या होती है जेंडर कंफर्मेशन सर्जरी? इस पर मेरी साथी सरवत ने सर गंगाराम अस्पताल के डॉक्टर अनुभव गुप्ता से विस्तार में बात की थी. उन्होंने बताया था,
‘जेंडर’ और ‘सेक्स’ दोनों अलग चीज़ें होती हैं. ‘सेक्स’ वो है जिसके साथ आप पैदा होते हैं. और जेंडर वो पहचान है जो आप अंदर से महसूस करते हो. अगर कोई इंसान जिन प्राकृतिक अंगों से साथ पैदा हुआ है, उन्हीं के अनुरूप महसूस नहीं करता तो उसे ‘आइडेंटिटी डिसऑर्डर’ होता है. हो सकता है कोई इंसान सेक्स से पुरुष हो पर जेंडर से औरत जैसा महसूस करे.
जो लोग उस ‘सेक्स’ के साथ कम्फर्टेबल नहीं होते, जिसमें वो पैदा होते हैं, वो लोग ऑपरेशन करवाकर अपना लिंग परिवर्तन करवाते हैं. सर्जरी के ज़रिये एक ट्रांसजेंडर के शरीर को इस तरह से बदला जाता है कि वो उसकी सेक्स से जुड़ी चॉइस को मैच करे. अगर किसी पुरुष को महिला जैसा महसूस होता है, तो उसका ब्रेस्ट इम्प्लांट किया जाता है. साथ ही चेहरे के फ़ीचर्स बदलने के लिए भी सर्जरी की जाती है. प्राइवेट पार्ट बदलने के लिए भी सर्जरी का ही सहारा लेना पड़ता है. ये सारी सर्जरी पुरुष के लिंग को हटा देने भर पर खत्म नहीं होती. इसमें अंडकोषों को हटाया जाता है, लिंग के उपरी सिरे को हटाकर क्लिटॉरिस का रूप दिया जाता है. सेक्स चेंज होने के बाद भी इंसान अपनी सेक्स लाइफ एन्जॉय कर पाए, इसलिए पुरुष के लिंग को प्राकृतिक तौर पर वजाइना जैसा बनाया जाता है.
Lgbtq जून का महीना LGBTQ समुदाय प्राइड मंथ के तौर पर मनाता है. सांकेतिक फोटो

डॉक्टर गुप्ता का कहना है कि जब कोई अपना सेक्स चेंज करने की सोचता है तो सबसे पहले उसे दो मनोवैज्ञानिकों के पास भेजा जाता है. ये देखने के लिए कि क्या वो वाकई तैयार है. एक बार इस चीज़ का फ़ैसला हो जाए तो उसे ‘रोल प्ले’ करने के लिए कहा जाता है. मतलब दूसरे जेंडर के इंसान की तरह बिहेव करने को बोला जाता है. ये कम से कम तीन महीने चलता है. ये चीज़ उनको आने वाली परिस्तिथियों के लिए तैयार करती है. उनको पता चल पाता है कि आगे क्या होने वाला है.
पहली सर्जरी ये रोल प्ले खत्म होने के बाद ही होती है. सबसे पहले चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी होती है. फिर ब्रेस्ट हटाए या फिर इम्प्लांट किए जाते हैं.
महिलाओं में एक हॉर्मोन होता है जिसे कहते हैं एस्ट्रोजन. ये उनके शरीर में सारी महिलाओं वाली चीज़ें कंट्रोल करता है. जैसे उनकी पतली आवाज़. उनकी सेक्स करने की इच्छा. वगैरह. पुरुषों में जो हॉर्मोन होता है उसे कहते हैं टेस्टोस्टेरोन. सर्जरी के साथ -साथ इन हॉर्मोन्स की थेरेपी देना भी ज़रूरी है.
सर्जरी और हॉर्मोनल थेरेपी के अलावा और भी बहुत सी चीज़ें होती हैं. जैसे पुरुष के शरीर में पैदा हुआ कोई व्यक्ति अगर सेक्स चेंज करवाए तो लेज़र थेरेपी से उसे चेहरे के बाल हटाए जाते हैं. शरीर के बाकी हिस्सों से भी बाल हटाए जाते हैं. सर्जरी और बाकी बदलावों के साथ शरीर को ढलने में एक साल तक का वक्त लगता है. इस दौरान लगातार संबंधित व्यक्ति की काउंसिलिंग की जाती है. दो ज़रूरी बातेंः - हॉर्मोन बदलने वाले इंजेक्शन्स की वजह से आपको मूड स्विंग्स हो सकते हैं. हॉर्मोन्स को सही मात्रा में दिया जाना ज़रूरी है. एस्ट्रोजन ज्यादा होने पर खून गाढ़ा हो जाता है, इससे हार्ट स्ट्रोक भी आ सकता है. - सर्जरी के बाद ट्रांसजेंडर व्यक्ति प्राकृतिक तौर पर मां या बाप नहीं बन सकता. इसलिए महिलाओं के ‘अंडों’ और पुरुषों के स्पर्म को स्टोर कर दिया जाता है. ताकि आगे IVF की मदद से बच्चा पैदा हो सके.


वीडियोः वो मां जिसका बच्चा उसके खुद के वीर्य से पैदा होगा

thumbnail

Advertisement

election-iconचुनाव यात्रा
और देखे

Advertisement

Advertisement

Advertisement