The Lallantop
Advertisement

बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा, बिना मर्जी महिला के शरीर को छूना उसकी गरिमा का उल्लंघन

महाराष्ट्र के जालना का मामला. सोती हुई महिला का पैर छुआ था आरोपी ने.

Advertisement
Img The Lallantop
घटना 4 जुलाई 2014 की है
font-size
Small
Medium
Large
26 दिसंबर 2021 (Updated: 26 दिसंबर 2021, 12:00 IST)
Updated: 26 दिसंबर 2021 12:00 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
"अगर कोई व्यक्ति किसी महिला को उसकी सहमति के बिना छूता है, तो यह भी महिला की गरिमा का उल्लंघन माना जाएगा." जालना ज़िले की मजिस्ट्रेट कोर्ट ने एक व्यक्ति को एक सोती हुई महिला को छूने पर 1 साल की सज़ा सुनाई थी. व्यक्ति ने सज़ा के ख़िलाफ़ बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर की. जिसकी सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने यह फैसला दिया. बॉम्बे हाई की औरंगाबाद बेंच के जस्टिस एमजी सेवलीकर ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि इस मामले में आरोपी की हरकत महिला की प्रतिष्ठा को झकझोर देने वाली थी. आरोपी पीड़िता के पैर के पास उसकी खाट पर बैठा हुआ था. इस दौरान आरोपी ने पीड़िता के पैरों को हाथ भी लगाया. यह व्यवहार जाहिर करता है कि आरोपी के इरादे ग़लत थे.

हुआ क्या था?

मामला महाराष्ट्र के जालना का है. पीड़िता की तरफ से दर्ज कराई गई FIR के अनुसार, 4 जुलाई 2014 को वो और उसकी सास घर में अकेले थे. पति गांव गया हुआ था. रात क़रीब 8 बजे, एक व्यक्ति आया और उसके के बारे में पूछने लगा. बात बात में महिला ने व्यक्ति को यह बता दिया कि पति रात में नहीं लौटेगा. व्यक्ति वापस चला गया. रात क़रीब 11 बजे जब वह सो रही थी तो वही व्यक्ति दोबारा उसके घर आया. महिला ने अपने घर का मेन दरवाज़ा बिना सिटकनी के बंद किया था. जब उसने महसूस किया कि कोई उसके पैर छू रहा है, तो वह जाग गई और उसने पाया कि आरोपी उसके पैरों के पास उसकी खाट पर बैठा हुआ था. पीड़िता ज़ोर से चिल्लाई और वो व्यक्ति भाग गया. पीड़िता ने फोन पर घटना की जानकारी अपने पति को दी और अगली सुबह पति लौटा. उसने आरोपी के ख़िलाफ़ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई.

सुनवाई में क्या हुआ?

अगस्त 2021 को मजिस्ट्रेट कोर्ट ने व्यक्ति को IPC की धारा 451 (अपराध करने के लिए घर में अतिचार) और 354 A (i) (शारीरिक संपर्क और अवांछित और स्पष्ट यौन प्रस्ताव से जुड़े अग्रिम क़दम लेना) के तहत दंडनीय अपराधों का दोषी ठहराया था. इसके ख़िलाफ़ आरोपी ने बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर की. आजतक से जुड़ी विद्या की रिपोर्ट के मुताबिक़, आरोपी के वक़ील प्रतीक भोसले ने दावा किया कि महिला ने दरवाज़ा अंदर से बंद नहीं किया था, जिससे संकेत मिलता है कि व्यक्ति ने औरत की सहमति से घर में प्रवेश किया था. उन्होंने यह भी तर्क दिया कि FIR दर्ज करने में लगभग 12 घंटे की देरी हुई और जिसका कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया था. निचली अदालत ने आरोपी को दोषी ठहराने में बड़ी ग़लती की है. पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा,
"किसी महिला के शरीर के किसी भी हिस्से को उसकी सहमति के बिना छूना, वह भी रात में, एक महिला की गरिमा का उल्लंघन है. पूरा वाक़या सुनने पर यही लगता है कि आरोपी किसी नेक मकसद से पीड़िता के घर में नहीं गया था. उसने शाम को पीड़िता से यह सुनिश्चित किया था कि उसका पति रात में घर में मौजूद नहीं रहेगा... यह स्पष्ट रूप से बताता है कि आवेदक यौन इरादे से वहां गया था और महिला की गरिमा का उल्लंघन किया. इसलिए, निचली अदालत ने यह मानने में कोई गलती नहीं की है कि आवेदक ने पीड़िता से छेड़छाड़ की है.”
अदालत ने यह भी कहा कि रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए पति के आने की प्रतीक्षा में पीड़िता के आचरण को 'दोषपूर्ण नहीं ठहराया जा सकता.'

thumbnail

Advertisement

election-iconचुनाव यात्रा
और देखे

Advertisement

Advertisement