राइटर तसलीमा नसरीन इस वक्त काफी ज्यादा ट्रोल हो रही हैं. वजह है इंग्लैंड क्रिकेट टीम के खिलाड़ी मोईन अली पर किया गया एक कमेंट. 5 अप्रैल 2021 का दिन था. तसलीमा ने अपना ट्विटर अकाउंट खोला और लिखा-
“अगर मोईन अली क्रिकेटर नहीं होते, तो वो ISIS जॉइन करने के लिए सीरिया चले जाते.”
तसलीमा के इस ट्वीट के पहले से ही मोईन अली खबरों में थे. दरअसल, मोईन इस बार IPL में चेन्नई सुपरकिंग्स यानी CSK की टीम की तरफ से खेल रहे हैं. कुछ दिन पहले रिपोर्ट्स आई थीं कि इंग्लैंड के इस ऑल-राउंटर क्रिकेटर ने CSK मैंनेजमेंट से कथित तौर पर एक अपील की थी, कहा था कि उनकी टीम की जर्सी से एल्कॉहॉल कंपनी के सेरोगेट प्रोडक्ट का लोगो हटा दिया जाए. हालांकि, ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट की मानें तो CSK के अधिकारियों ने इस खबर को सही नहीं बताया था. कहा कि इस तरह की कोई भी परमिशन मोईन अली की तरफ से नहीं मांगी गई है. खैर, खबर आई, और उस पर CSK का जवाब भी आ गया. बात यहीं पर खत्म हो जानी चाहिए थी. लेकिन हो नहीं पाई. क्योंकि इसी दौरान आ गया तसलीमा नसरीन का ट्वीट.
मोईन अली के कई साथी खिलाड़ियों ने तसलीमा के इस कमेंट का विरोध किया. मोईन के पिता ने भी दुख और हैरानी जताई. आम जनता ने भी तसलीमा को ट्रोल किया. इसी बीच तसलीमा का एक और ट्वीट आया, जिसमें उन्होंने बताया कि उन्होंने केवल व्यंग्य के तौर पर ये कमेंट किया था.
Haters know very well that my Moeen Ali tweet was sarcastic. But they made that an issue to humiliate me because I try to secularize Muslim society & I oppose Islamic fanaticism. One of the greatest tragedies of humankind is pro-women leftists support anti-women Islamists.
— taslima nasreen (@taslimanasreen) April 6, 2021
खैर, इस सफाई के बाद भी ट्रोलिंग रुकी नहीं. इन्हीं सब मुद्दों को लेकर ‘द ऑडनारी’ ने बात की खुद तसलीमा से. जानना चाहा कि आखिर उन्होंने मोईन अली पर ऐसा कमेंट क्यों किया. उनसे जो बातचीत हुई, उसे आगे पढ़िए-
सवाल- मोईन अली पर आपके ट्वीट पर काफी रिएक्शन्स आ रहे हैं. खासकर क्रिकेट से जुड़े लोगों के. जोफ्रा आर्चर ने भी आपके बयान पर रिएक्शन दिया है,. मोईन अली के पिता ने भी काफी निराशा ज़ाहिर की है. आप इस पर क्या कहना चाहेंगी?
तसलीमा- ये बिल्कुल भी सीरियस ट्वीट नहीं था. आप मेरे बाकी ट्वीट्स से इसे कम्पेयर कर सकते हैं. ये कि मैं हमेशा सीरियस पर्सन नहीं हूं, मैं कई बार मज़ाक भी करती हूं. ये एक तरह का मज़ाक ही था. मैंने सोचा कि ये ठीक ही है. लेकिन फिर कुछ लोगों ने मुझे अब्यूज़ करना शुरू कर दिया, तो मैंने सोचा कि अच्छा कुछ लोगों को ये पसंद नहीं आ रहा है. लेकिन उसके बाद कई हज़ारों मुस्लिम कट्टरपंथी लोग आए, पता नहीं कहां से, और उन्होंने मुझे अब्यूज़ करना शुरू कर दिया. अगर वो लोग अब्यूज़ के खिलाफ थे, ये कह रहे थे कि मोईन अली को अब्यूज़ क्यों किया गया, तो फिर वो मुझे क्यों अब्यूज़ कर रहे हैं लगातार. कुछ क्रिकेटर्स ने कहा कि मैं वो ट्वीट डिलीट कर दूं. तो मैंने सोचा कि हो सकता है कि मेरा मज़ाक या व्यंग्य लोगों को समझ नहीं आया है, इसलिए मुझे डिलीट कर देना चाहिए. किसी ने कहा कि मोईन एक अच्छे आदमी हैं. ठीक है, मोईन अच्छे आदमी हैं, मैंने कभी नहीं कहा कि वो बुरे आदमी हैं. लेकिन क्योंकि उन्होंने कुछ एक्सट्रीम चीज़ें की थीं, जैसे क्रिकेट ग्राउंड में नमाज़ की थी. ये भी कहा था कि अगर मैच के दौरान प्रेयर हो रही होगी, तो वो अम्पायर को कहकर मैच से चले जाएंगे. उनकी टीम ने जब गेम जीता था, तो सेलिब्रेशन के दौरान वहां शैंपेन थी, तब मोईन उस एरिया से चले गए थे, साथ ही लोगो वाला मुद्दा भी था. वो बियर कंपनी से पैसे ले लेते हैं, लेकिन वो उस लोगो को पसंद नहीं करते. ये सारी चीज़ें मुझे एक्स्ट्रीम लगी थीं, तो मेरा कमेंट भी एक्सट्रीम था. मैं जानती हूं.
मैं पिछले चालीस बरसों से सेक्युलरिज़्म, लिबरेलिज़्म (धर्मनिरपेक्षता, उदारतावाद) जैसे मुद्दों पर लिख रही हूं और मैंने इसकी बड़ी कीमत भी चुकाई है. मैं उस देश में वापस नहीं जा सकती. मैंने रहने के लिए बंगाल को पसंद किया था, अब मैं वहां भी नहीं रह सकती. मेरी कई सारी किताबें बैन कर दी गईं. ताकि कट्टरपंथियों की मांगें पूरी की जा सकें. मैंने बड़ी कीमत चुकाई है. कट्टरपंथी मुझे जान से मारना चाहते थे, मेरी जान को खतरा था. अब कई सारे कट्टरपंथियों ने ट्विटर पर मुझे अब्यूज़ किया. वो इतने पागल हैं कि वो मुझे जान से मारना चाहते हैं. वो पहले से ही मेरे से नफरत करते थे, और अब उन्हें मौका मिल गया है न केवल मुझे अब्यूज़ करने का, बल्कि मुझे डराने का. जो भी नफरती अपशब्द मुझे कहे जा रहे हैं, असल में वो सारे लोग अपशब्दों के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि वो मुझे अपशब्द कहना चाह रहे हैं.”
सवाल- क्या आप ये कहना चाह रही हैं कि आपके ऊपर सिस्टमैटिक तरीके से ऑर्गेनाइज़्ड अटैक किया जा रहा है?
तसलीमा- मुझे लगता है कि ये ऑर्गेनाइज़्ड हैं. अगर कोई क्रिकेटर अपने साथी का बचाव कर रहा है, तो मैं इसका सम्मान करती हूं. इसी सम्मान की वजह से मैंने वो फनी ट्वीट डिलीट कर दिया.
सवाल- एक बार फिर ये सवाल आता है कि आप हमेशा से धार्मिक कट्टरता के खिलाफ रही हैं….
तसलीमा- मैं हमेशा से ही धार्मिक कट्टरता के खिलाफ रही हूं इसी वजह से मेरी किताबें और यहां तक कि मुझे भी बैन कर दिया गया. यहां तक कि भारत में भी मुझे और मेरी किताबों को बैन कर दिया गया. किताबें पढ़िए और समझिए कि क्या उसमें कुछ भी बैन होने लायक था. नहीं. असल में ऐसा कट्टरपंथियों को खुश और संतुष्ट करने के लिए किया गया. मेरी किताबें सेक्युलरिज़्म और ह्यूमनिज़्म (धर्मनिरपेक्षता और मानवता) पर हैं, फिर लेफ्टिस्ट लोगों ने मेरी किताबों को क्यों बैन किया? उसमें वो सब था जिस पर मेरे हिसाब से लेफ्टिस्ट भरोसा करते हैं. मैं एथिज़्म, सेक्युलरिज़्म, महिला समानता, मानव अधिकारों पर भरोसा करती हूं. मैंने इन सब मुद्दों पर करीब पैंतालिस से ज्यादा किताबें लिखी हैं. कई ब्लॉग भी लिखे हैं. उन्हें अगर मेरे बारे में जानना है तो इसे पढ़ें. सिर्फ एक ट्वीट पर मुझे जज किया जा रहा है. मैंने कई गंभीर ट्वीट भी किए हैं. मेरे पास भी सेंस ऑफ ह्यूमर भी है.
सवाल- लेकिन लोग पूछ रहे हैं कि ये जोक आया कहां से? क्या सिर्फ इसलिए कि एक फेक न्यूज़ उड़ी थी कि मोईन अली ने अपनी टी-शर्ट से अल्कोहल कंपनी का लोगो हटाना चाहते थे? हालांकि बाद में ये खबर आई कि लोगो वाली बात फेक न्यूज़ है.
तसलीमा- नहीं-नहीं केवल लोगो नहीं, बल्कि हर चीज़ थी. मुझे नहीं पता था कि लोगो वाली खबर फेक है. ये लाइट मूड में किया गया ट्वीट था. व्यंग्य में किया गया था. कई लोगों ने इसे लाइक किया था. इसका मतलब लोगों को व्यंग्य पसंद है. ये तीन दिन पहले किया गया ट्वीट था. उस वक्त किसी ने शिकायत नहीं की. कई सारे लोगों ने लाइक किया, रिट्वीट किया. करीब तीन हज़ार लोगों ने लाइक किया. अचानक कविता कृष्णन के ट्वीट के बाद ये सब शुरू हो गया. लोगों को लगने लगा कि ये बहुत खराब है. उसके पहले लोगों ने ऐसा नहीं सोचा था. लोगों को ये ट्वीट सिर्फ एक जोक लग रहा था.
सवाल- क्या सिर्फ एक जोक के लिए ISIS का नाम इस्तेमाल करना सही था ?
तसलीमा- “ऐसा लगता है कि हर कोई ISIS के खिलाफ है. कितने लोगों ने ISIS के खिलाफ प्रोटेस्ट किया है. मैंने खुद 200 आर्टिकल्स लिखे हैं. अगर लोग सोच रहे हैं कि ISIS इतना बुरा है तो कितने लोगों ने मेरी तरह प्रोटेस्ट किया. मैंने किया. और आपको नहीं सोचना चाहिए कि ठग, चोर, डकैत और रेपिस्ट ISIS जाते हैं, कौन जाता है ISIS? धर्मनिष्ठ मुस्लिम जाते हैं. जो कुरान में लिखे हर शब्द पर भरोसा करते हैं. ISIS मेंबर्स के बारे में पढ़िए. पता चलेगा कि वो धर्मनिष्ठ मुस्लिम हैं. वो दिन में पांच बार नमाज़ पढ़ते हैं, अल्लाह के सारे आदेशों का पालन करते हैं, कुरान में ये भी लिखा है कि हर मुस्लिम के लिए जिहाद कम्पलसरी है. तो वो इस पर भरोसा करते हैं. वो वहां जाते हैं. ऐसा नहीं है कि बुरे लोग जाते हैं, एकदम धर्मनिष्ठ मुस्लिम जाते हैं ISIS. कट्टरपंथी मुस्लिम जाते हैं. और उन्हें बहुत ही ज्यादा धर्मनिष्ठ होना होता है.
होली आर्टिसन बैकरी कैफे में अटैक हुआ था बांग्लादेश में. कुछ साल पहले कुछ युवा लड़कों ने, जो यूनिवर्सिटी स्टूडेंट थे, उन्होंने लोगों को मारा था उसके अंदर. इन लोगों में एक भारतीय लड़की भी थी. उसका गला काटा गया था. वो लड़के बहुत शिक्षित थे. लेकिन वो सोचते थे कि वो बहुत धर्मनिष्ठ मुस्लिम हैं. अचानक उन्होंने नमाज़ पढ़ना शुरू कर दिया. कुरान पढ़ना शुरू कर दिया. बॉस्टन मेरॉथन टेरेरिस्ट का केस याद है…? अचानक से वो बहुत धर्मनिष्ठ मुस्लिम बन गए. तो मैं ये कहना चाहती हूं कि ISIS ठग्स, रेपिस्ट, किलर्स का ऑर्गेनाइज़ेशन नहीं है. वो लोग पहले किलर्स नहीं होते, लेकिन जिहाद में वो लोगों को मारते हैं. मैं ये नहीं कह रही कि हर धर्मनिष्ठ मुस्लिम वहां जाते हैं, कुछ जाते हैं. जो ये सोचते हैं कि जिहाद ज़रूरी है. मैं ये नहीं कह रही कि मोईन अली उस तरह के हैं. लेकिन जब न्यूज़ में ये आया कि वो उसे (जर्सी) को नहीं पहनना चाहते, जैसा कि न्यूज़ में आया था, तो मैंने इसे एक्सट्रीम पाया. इसलिए ये एक मज़ाक था.”
सवाल- तो क्या आप ये कह रही हैं कि अगर कोई धार्मिक तौर पर बहुत धर्मनिष्ठ हैं, तो ये आपकी परिभाषा के अनुसार लोगों को गलत दिशा में ले जा सकता है?
तसलीमा- नहीं मैं ये नहीं कह रही. मेरी मां खुद एक धर्मनिष्ठ महिला थीं. मैंने उनकी तरह कोई भी ईमानदार इंसान नहीं देखा. मैं ये कह रही हूं कि यहां लाखों धर्मनिष्ठ मुस्लिम हैं, उनमें से कुछ ISIS में जाते हैं. मैं ये कहने की कोशिश कर रही हूं कि ISIS बुरे लोगों का ऑर्गेनाइज़ेशन नहीं है. धर्मनिष्ठ मुस्लिम जिहाद को अनिवार्य तौर पर लेते हैं, लेकिन हर कोई नहीं लेता. ज्यादातर धर्मनिष्ठ मुस्लिम ISIS में शामिल होने नहीं जाते. मैं ये कह रही हूं कि कुछ जाते हैं. मेरा ट्वीट कोई सीरियस नहीं था. केवल व्यंग्य था.
सवाल- आप क्या ये कहना चाह रहीं हैं कि कई सारे लोग और क्रिकेट की दुनिया से जुड़े लोग आपके ट्वीट पर ओवररिएक्ट कर रहे हैं? उन्हें इतना अपमानित महसूस नहीं करना चाहिए?
तसलीमा- हां, वो लोग ओवररिएक्ट कर रहे हैं. वो लोग मुझे, मेरी कहानी को, और मेरा संघर्ष को नहीं जानते. कुछ नहीं जानते. वे लोग मुझे बुरा समझते हैं. और सोचते हैं कि मैंने मोईन अली जैसे अच्छे इंसान को गलत कहा. जबकि उन्हें अपशब्द कहने का मेरा मकसद नहीं था. ये केवल सार्केज्म था, सोशल नेटवर्क पर ये सब आम है.
सवाल- क्या आपको ये लगता है कि लोग इसे बढ़ा चढ़ाकर पेश कर रहे हैं?
तसलीमा- हां बिल्कुल… जो लोग गालियों के खिलाफ हैं वही लोग मुझे गालियां दे रहे हैं. आप भी देख सकते हैं कि ये सिर्फ एक सार्केज्म था. क्या आप ये नहीं देख सकते. चार हजार लोग जिन्होंने इस ट्वीट को लाइक किया, उन्होंने भी इसे सार्केज्म की तरह ही लिया. ये अचानक से बड़ा मुद्दा इसलिए बन गया क्योंकि कुछ क्रिकेटर्स और एक लेफटिस्ट महिला ने मुझ पर ज़ुबानी हमले शुरू कर दिए. इसके बाद उन्हें लगा कि सभी को मुझे अपशब्द कहने का अधिकार है. मैं नहीं कहती कि मेरा ट्वीट अब्यूज़ था, लेकिन अगर मान लिया जाए कि अगर वो अब्यूज़ था, तो कितने बार तो मैं खुद अब्यूज़ का शिकार हुई हूं. हज़ारों लोगों ने मुझे अब्यूज़ किया है. यहां तक कि जब मैंने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया, और तब भी ट्विटर ने मुझे सस्पेंड कर दिया. मुझे धमकी दी गई एक रिपोर्ट की वजह से. ये कट्टरपंथी और ये फेक लेफ्टिस्ट… ये मेरे से बड़े लेफ्टिस्ट नहीं हैं.. क्योंकि अगर आप सच में लेफ्टिस्ट हैं, सच में लिबरल हैं, सच में महिलाओं के और मानव अधिकारों के समर्थक हैं, तो आप हर तरह की कट्टरता के खिलाफ होंगे. लेकिन भारत में मैंने पाया कि लेफ्टिस्ट केवल गैर-मुस्लिम कट्टरपंथियों के खिलाफ हैं, मुस्लिम कट्टरपंथियों के खिलाफ नहीं.
सवाल- क्या आपको ऐसा लगता है कि भारतीय लेफ्ट और वेस्टर्न फेमिनिस्ट इस्लाम में प्रचलित पितृसत्ता के खिलाफ नहीं बोलते? वो इस मुद्दे को छोड़ देते हैं?
तसलीमा- हर कोई नहीं… मैं सभी फेमिनिस्ट्स को जनरलाइज़ नहीं करती. कुछ ज़ाहिर तौर पर हैं. मुझे नहीं लगता कि मैंने फेमिनिस्ट्स के बारे में बात की थी. क्योंकि यहां असल में कुछ ऐसे फेमिनिस्ट्स हैं जो किसी भी तरह के कट्टरपंथियों को सपोर्ट नहीं करते. क्योंकि हर धार्मिक कट्टरपंथी महिलाओं के सामान अधिकारों के खिलाफ हैं. अगर आपको लगता है कि कुछ महिलाएं कट्टरपंथियों को सपोर्ट करती हैं, लेकिन वो फेमिनिस्ट हैं, तो मुझे ऐसा नहीं लगता. धार्मिक कट्टरपंथी हमेशा महिलाओं के सामान अधिकारों के खिलाफ रहे हैं और फेमिनिस्ट महिलाओं के अधिकारों के सपोर्ट में हैं. तो ऐसा कैसे हो सकता है कि आप कट्टरता पर भी भरोसा करते हो और सामानता पर भी करते हो. इसे लेकर मैं विरोध कर सकती हूं.
सवाल- आपसे जुड़े पिछले विवादों पर आप क्या कहना चाहेंगी ?
तसलीमा- कंट्रोवर्सी लोग क्रिएट करते हैं. मैं लिबरल हूं, ईमानदार, सच्चाई के लिए लड़ती हूं. मैं किसी राजनीतिक पार्टी से या किसी संस्था से नहीं जुड़ी हूं. तो मेरी राइटिंग की वजह से मैंने काफी कुछ झेला है, मुझे अपने देश से निकाला गया, दूसरे घर से भी निकाला गया. बैन किया गया. मैं सेंसरशिप की विक्टिम हूं. मैं अकेली हूं मेरे साथ बचाव में कोई नहीं खड़ा हुआ. वो लोग जो मुझे सपोर्ट करते हैं, जो मेरे से प्रेरणा लेते हैं, वो भी तब चुप हो जाते हैं, जब मैं मुसीबत में पड़ती हूं. क्योंकि उन्हें कुछ भी कहने में खतरा महसूस होता है. क्योंकि वो जानते हैं कि मेरे पास कोई बड़ा सपोर्ट नहीं है. इसलिए मुझे अब्यूज़ किया जाता है. नहीं तो कौन एक व्यंग्य वाले ट्वीट के लिए अब्यूज़ झेलता है. मैं झेलती हूं. क्योंकि मैं अकेली हूं.
सवाल- हमने अक्सर देखा है कि जब भी आपने मुस्लिम कट्टरवाद का विरोध किया, तब भारत के राइट विंग ग्रुप आपके समर्थन में आए.
तसलीमा- हां, लेकिन जब भी मैंने मॉब लिंचिंग का विरोध किया, तो राइट विंग मेरे खिलाफ हो गया. मुझे अब्यूज़ करने लगा. क्योंकि आप मेरे जैसा कोई भी व्यक्ति नहीं पाएंगे, ज्यादा लोग नहीं पाएंगे, जो हर तरह के कट्टरपंथियों के आलोचक हों. क्योंकि लोग या तो मुस्लिम कट्टरपंथियों के खिलाफ होते हैं, या हिंदू कट्टरपंथियों के खिलाफ. ऐसे ज्यादा लोग नहीं मिलेंगे जो दोनों के खिलाफ हों.
सवाल- कुछ समय पहले संगीतकार ए. आर. रहमान की बेटी को लेकर आपके ट्वीट पर काफी विवाद हुआ था. बुर्के को लेकर कई लोगों ने कहा था कि वो उसका अधिकार है. इस पर आपका क्या कहना है ?
तसलीमा- हां ये उनका अधिकार है. मैंने कभी नहीं कहा कि उसे उतार दो. मैंने उसे डराया या किसी तरह की धमकी नहीं दी थी. मैंने सिर्फ कमेंट किया था जो कि मेरा अधिकार है, और उसे भी बोलने का
अधिकार है. उन्होंने कहा. वो ए. आर. रहमान की बेटी हैं, वो लोग पावरफुल हैं, सिर्फ ये सोच कर मैं चुप नहीं रह सकती. मैं बुर्का, हिजाब जैसी चीजों के खिलाफ हूं. हिजाब और बुर्के जैसी चीजों को मैं महिलाओं के उत्पीड़न के तौर पर देखती हूं.
सवाल- क्या आप अपने बयानों की वजह से फिजीकली अनसेफ महसूस करती हैं ?
तसलीमा- हां कई बार थोड़ा डर तो लगता है. सबसे नहीं, लेकिन हां कुछ से तो लगता है. मैं पिछले कई सालों से ऐसी धमकियों का सामना कर रही हूं. मुझे पता है कि मैं क्या कर रही हूं, मुझे पता है कि मैं सही हूं.
कौन हैं तसलीमा?
तसलीमा का विवादों से लंबा नाता रहा है. आज के ज्यादातर लोग तसलीमा को उनके तेज़-तर्रार और विवादित ट्वीट्स की वजह से जानते हैं. लेकिन बांग्लादेश में साल 1962 में पैदा हुई एक लड़की तसलीमा कैसे बनी, ये जानना भी उतना ही ज़रूरी है. तसलीमा नसरीन की अपनी खुद की एक-दो वेबसाइट्स हैं. जिनमें बताया गया है कि वो एक राइटर होने के साथ-साथ फिजिशियन भी हैं, मानव अधिकार एक्टिविस्ट भी हैं. 13 साल की थीं तभी से लिखना शुरू कर दिया था. स्कॉलर्स ब्लॉग्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, तसलीमा के पिता खुद पेशे से फिजिशियन थे और मां बहुत ही धार्मिक महिला थीं. पिता की तरह तसलीमा भी मेडिकल की फील्ड में करियर बनाने की राह पर चल पड़ीं. 1984 में MBBS की डिग्री हासिल की. डॉक्टरी की प्रैक्टिस के साथ-साथ लिखना भी जारी रखा. उनकी मां भले ही धार्मिक महिला थीं, लेकिन वक्त के साथ तसलीमा की सोच अपनी मां से काफी अलग होती गई. वो धर्म और धार्मिक कट्टरता के खिलाफ लिखने लगीं. औरतों के ऊपर होने वाले अत्याचारों पर भी उनका खासा फोकस होता था. 1989 आते-आते कई सारे अखबारों और मैग्ज़ीन्स में तसलीमा के लेख आने लगे. उनके लिखने से कट्टरपंथी नाराज़ हुए. और उनके ऊपर हमला भी हुआ
सबसे बड़ा मोड़ आया साल 1993 में. दरअसल, 1992 में बाबरी मस्जिद केस हुआ था. इस पर तसलीमा ने एक नॉवेल लिखी. नाम था ‘लज्जा’. इसमें उन्होंने बांग्लादेश में रहने वाले एक हिंदू परिवार के ऊपर मुस्लिमों द्वारा होने वाले अत्याचारों की कहानी लिखी. जैसे ही ये नॉवेल पब्लिश हुई बवाल मच गया. उनकी किताब बैन कर दी गई. हालांकि तब तक नॉवेल की 50 हज़ार कॉपियों की बिक्री हो चुकी थी. तसलीमा का विरोध करने वाले लोगों ने उन्हें मौत की सज़ा देने की मांग की. उनके खिलाफ फतवा जारी हो गया. 1994 में वो कई साल तक छिपते-छिपाते रहीं. आखिर में उन्होंने स्वीडन में शरण ली. फिर स्वीडन के बाद, फ्रांस, यूनाइटेड स्टेट्स में भी वो रहीं. ‘इकॉनमिक टाइम्स’ की रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश से बाहर रहने के बाद भी उन्हें लगातार धमकियां मिलती रहीं, उनसे कहा गया कि वो इस्लामिक फिलॉसॉफी के खिलाफ न लिखें. 2004 में तसलीमा भारत आईं. कोलकाता में रहना शुरू किया. फिर आया साल 2007. तसलीमा अपनी नॉवेल शोध का तेलुगू ट्रांसलेशन लॉन्च करने हैदराबाद पहुंचीं. ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की रिपोर्ट के मुताबिक, यहां फंक्शन के तसलीमा के ऊपर मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन (MIM) के कुछ लोगों ने हमला कर दिया. इस घटना के कुछ दिन बाद कोलकाता में कुछ मुस्लिम नेताओं ने तसलीमा का विरोध शुरू कर दिया. मांग रखी कि तसलीमा देश छोड़कर चली जाएं. कोलकाता में हिंसा जैसा माहौल बन गया. BBC की एक रिपोर्ट की मानें तो लोगों ने सड़कें जाम कर दी थीं. भीड़ को कंट्रोल करने के लिए भारी मात्रा में पुलिसवालों को तैनात किया गया था. इस हिंसा के बाद नसरीन को कोलकाता छोड़ना पड़ा. ‘द गार्जियन’ की मानें तो उन्हें दिल्ली में कुछ महीनों तक हाउस अरेस्ट में भी रहना पड़ा था.
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