The Lallantop
Advertisement

हिटलर के होलोकॉस्ट के दौरान छिपी लड़की को किसने पकड़वाया था?

77 साल पुराना केस अब सुलझा.

Advertisement
Img The Lallantop
एनी की डायरी युद्ध के दौरान यहूदी जीवन का सबसे प्रसिद्ध फ़र्स्ट हैंड अकाउंट है (तस्वीर - बाएं, नई किताब का कवर और दाएं, एनी फ्रैंक)
font-size
Small
Medium
Large
19 जनवरी 2022 (Updated: 19 जनवरी 2022, 05:24 IST)
Updated: 19 जनवरी 2022 05:24 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
ऐन फ्रैंक. CBSE वाले इस नाम से परिचित होंगे. CBSE ने 'डायरी ऑफ़ अ यंग गर्ल' यानी ऐन फ्रैंक की डायरी को दसवीं कक्षा के सिलेबस में रखा है. ऐन फ्रैंक की कहानी उस वक़्त की है जब हिटलर चुन-चुन कर यहूदियों को मार रहा था. ऐन और उसका परिवार, जो कि यहूदी थे, दो साल तक छिपे रहे. अख़िर में वे पकड़े गए और एक कॉन्संट्रेशन कैंप में 15 साल की उम्र में ऐन की मृत्यु हो गई.
इस कहानी की एक कड़ी मिसिंग है. यह बात आज तक कोई पुख्तगी से नहीं कह सकता कि ऐन के परिवार को किसने पकड़वाया था. अब 77 साल बाद, ऐन की कहानी के कथित जयचंद का पता चला है. क्या है ऐन फ़्रैंक की कहानी? 12 जून, 1929. जर्मनी के फ्रैंकफ़र्ट में ऐन का जन्म हुआ था. ऐन के पिता ओटो फ्रैंक पहले विश्व युद्ध में जर्मन सेना में लेफ्टिनेंट थे और बाद में व्यापारी बन गए. ये परिवार बहुत लिबरल और अमीर था. अडॉल्फ़ हिटलर 1933 में सत्ता में आया, लेकिन उसने पहले ही अपना प्रॉपगैंडा फैलाना शुरू कर दिया था. 1933 के मार्च महीने में ही पहला कॉन्संट्रेशन कैम्प भी खोला गया. हिटलर का सीधा फ़ंडा था. यहूदियों को ख़त्म करना. पहले विश्व युद्ध में जर्मनी बर्बाद हो चुका था. इसके लिए हिटलर ने यहूदियों को ज़िम्मेदार ठहराया और कहा कि जहां भी ये लोग मिलें, इन्हें मार दो.
फ्रैंक परिवार यहूदी था और डर के मारे 1933 में नीदरलैंड आ गया. उस समय ऐन की उम्र साढ़े चार साल थी. फिर सितंबर 1939 में दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया. हिटलर ने पोलैंड पर हमला कर दिया. ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी के ख़िलाफ़ युद्ध की घोषणा कर दी. मई 1940 आते-आते जर्मनी ने नीदरलैंड, फ्रांस और बेल्जियम पर भी आक्रमण किया.
12 जून, 1942 को ऐन को अपने 13वें जन्मदिन पर लाल और सफेद रंग की चेक वाली एक डायरी मिली. ऐनी ने अपनी डायरी का नाम किटी रखा और मूलतः डच में ही लिखा. बाद में जब यह छपी, तो तकरीबन 70 भाषाओं में इसका तर्जुमा हुआ. ख़ैर कहानी पर लौटते हैं. ऐन के जन्मदिन के बाद से ही माहौल और ख़राब होने लगा. हिटलर का होलोकॉस्ट अपने चरम पर पहुंच रहा था. ऐन के परिवार को अपना घर छोड़ कर ऐम्स्टर्डैम के एक सीक्रेट अपार्टमेंट में छिपना पड़ा. फ्रैंक परिवार के अलावा 4 और लोग उस सीक्रेट अपार्टमेंट में छिपे थे. ऐन की डायरी एंट्रीज़ में इनका ज़िक्र मिलता है. आठ यहूदी दो साल तक वहां छिपे रहे और उन दो सालों में जो कुछ भी ऐन ने महसूस किया, जो भोगा, वही लिखा.
एनी फ़्रैंक का सीक्रेट एनेक्स
वो सीक्रेट घर जिसमें एनी फ़्रैंक का परिवार छिपा था, उसे अब रेनोवेट कर म्यूज़ियम बना दिया गया है (तस्वीर- AP
)

ऐन ने अपनी पहली एंट्री में लिखा था,
'मुझे उम्मीद है कि मैं अपनी हर बात तुम्हें बता सकूंगी, क्योंकि मैंने अपनी बातें कभी किसी से नहीं कही. और मैं आशा करती हूं कि हूं कि तुम मेरे लिए सुकून और संबंल का एक बड़ा स्रोत बनोगी.'
फिर 4 अगस्त, 1944 को जर्मन पुलिस ने उस सीक्रेट अपार्टमेंट में छापा मारा और ऐन के पूरे परिवार समेत आठों लोगों को डीटेन कर लिया. नाज़ियों ने पूरे फ्रैंक परिवार को ऑशविट्ज़ स्थित कॉन्संट्रेशन कैम्प में भेज दिया. ऐन और उसकी बहन मार्गो को बाद में बर्गन-बेल्सन कैंप में ट्रांसफर कर दिया गया, जहां फरवरी 1945 में दोनों की टाइफस से मृत्यु हो गई.
ओटो फ्रैंक, परिवार के इकलौते सदस्य थे, जो युद्ध ख़त्म होने के बाद तक बचे रहे. उन्होंने डायरी में पढ़ा कि ऐन एक लेखक बनना चाहती थी, तो 25 जून, 1947 को उन्होंने ऐन की डायरी छपवा दी.
कई लोगों को मानना है ऐन की डायरी युद्ध के दौरान यहूदी जीवन का सबसे प्रसिद्ध और मासूम फ़र्स्ट हैंड अकाउंट है. ऐन की डायरी की अब तक 3 करोड़ से ज़्यादा कॉपीज़ बिक चुकी हैं. 70 भाषाओं में अनुदित हो चुकी है और कई नाटक और फ़िल्मों का आधार बनी है. कहानी में क्या नया ट्विस्ट आया है? ये तो हुई इतिहास की बात. अब किस बात की चर्चा है? दरअसल, आज तक यह गुत्थी नहीं सुलझी कि जर्मन पुलिस को उस घर का पता कैसे चला जहां 4 अगस्त, 1944 को छापेमारी हुई थी? असल में छह साल पहले एक जांच टीम के गठन हुआ. टीम में रिटायर्ड अमेरिकी FBI एजेंट विन्सेंट पैनकोक और लगभग 20 इतिहासकार, अपराध विशेषज्ञ और डेटा विशेषज्ञ शामिल थे.
न्यूज़ संगठन 60 मिनट्स के मुताबिक़, छह साल तक चली जांच से पता चलता है कि आर्नोल्ड वैन डेन बर्ग नाम के शख्य ने ऐन के परिवार का ठिकाना नाज़ियों को दिया था. आर्नोल्ड भी यहूदी था और यहूदी परिषद का एक संस्थापक सदस्य था. यहूदी परिषद एक तरह की प्रशासनिक यूनिट थी, जिसे नाज़ी अपनी नीतियों को लागू करने और यहूदी बस्तियों में व्यवस्था बनाए रखने के लिए इस्तेमाल करते थे. जांच टीम के पीटर वैन ट्विस्क ने 60 मिनट्स को बताया कि शुरुआती 32 नामों में से वैन डेन बर्ग मुख्य संदिग्ध है. वैन डेन बर्ग की मौत 1950 में ही हो चुकी है.
जांच के आधार पर कनाडाई अकादमिक और लेखक रोज़मेरी सुलिवन ने एक किताब लिखी. 'द बिट्रेयल ऑफ़ ऐन फ्रैंक: ए कोल्ड केस'. 18 जनवरी, 2022 को ये किताब लॉन्च हुई. इसमें भी लिखा गया है कि आर्नोल्ड वैन डेन बर्ग नामक एक प्रमुख यहूदी नोटरी ने फ्रैंक परिवार के गुप्त ठिकाने के बारे में नाज़ियों को बताया था.
टीम की जांच के अनुसार वैन डेन बर्ग ने अपने परिवार को बचाने के लिए ऐसा किया था. वे भी यहूदी थे और इसलिए वो भी टार्गेट थे. उन्होंने अपने परिवार को बचाने के लिए कथित तौर पर ऐन के परिवार को फंसा दिया. लेकिन जांच क्यों? जांच टीम के मुखिया विन्सेंट पैनकोक ने कहा,
"जांच का लक्ष्य किसी के खिलाफ आरोप लगाना नहीं था, बल्कि इस ऐतिहासिक रहस्य को सुलझाना था कि फ्रैंक परिवार को जर्मन्स के हवाले किसने किया."
जांच टीम ने पुष्टि की कि ऐन के पिता ओटो फ्रैंक वैन डेन बर्ग की कथित भागीदारी के बारे में जानते थे. रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, जांच दल के सदस्य पीटर वैन ट्विस्क ने फ्रैंक के चुप रहने के लिए कई संभावित कारण बताए,
"वे शायद सच्चाई के बारे में अनिश्चित थे. या चूंकि वैन डेन बर्ग भी यहूदी था, तो हो सकता है वे न चाहते हों कि ऐसी जानकारी सार्वजनिक हो जो यहूदी-विरोधी भावना को और बढ़ावा दे. ये भी हो सकता है कि वह नहीं चाहते थे कि आर्नोल्ड वैन डेन बर्ग की तीन बेटियों को उनके पिता द्वारा किए गए किसी काम के लिए दोषी ठहराया जाए."
ऐन फ्रैंक संग्रहालय के निदेशक रोनाल्ड लियोपोल्ड ने कहा कि वह सीधे तौर पर जांच में शामिल नहीं थे, लेकिन उन्होंने अपने आर्काइव्स और अन्य जानकारी जांच टीम के साथ साझा की थी.
रोनाल्ड ने न्यूज़ एजेंसी AP को बताया,
"मुझे लगता है कि वे बहुत सारी रोचक जानकारी के साथ आए हैं, लेकिन मुझे यह भी लगता है कि पहेली के कई टुकड़े अभी भी मिसिंग हैं. और उन टुकड़ों की और जांच की जानी चाहिए."
अब 77 साल बाद कोई दोषी साबित हो कि न हो, इसे एक सांकेतिक जीत के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन जो हुआ उसे कोई नहीं बदल सकता. जो हुआ, वो ऐन ने लिखा. और ऐन की डायरी के ही अंश के साथ आपको छोड़ जाते हैं. 15 जुलाई 1944, यानी पकड़े जाने से 20 दिन पहले ऐन ने लिखा था,
"अराजकता, पीड़ा और मृत्यु के नींव पर अपने जीवन को बनाना, मेरे लिए असंभव है. मैं देख रही हूं कि दुनिया धीरे-धीरे एक जंगल में तब्दील हो रही है. मुझे उसकी गड़गड़ाहट सुनाई देती है, जो एक दिन हमें भी नष्ट कर देगी. मुझे लाखों लोगों की पीड़ा महसूस होती है और फिर भी जब मैं आकाश की ओर देखती हूं तो मुझे लगता है कि सब कुछ बेहतर हो जाएगा. एक दिन यह क्रूरता भी समाप्त हो जाएगी. शांति और स्थिरता फिर से लौट आएगी. तब तक मुझे अपने आदर्शों पर कायम रहना चाहिए. शायद वह दिन आए जब मैं उन्हें सच होता हुआ देखूं."

thumbnail

Advertisement

election-iconचुनाव यात्रा
और देखे

Advertisement

Advertisement