ब्रिगेडियर एस वी सरस्वती. सैन्य नर्सिंग सेवाओं की उप महानिदेशक. 3000 से ज्यादा इमरजेंसी और लाइफ सेविंग सर्जरी में हिस्सा लेने का रिकॉर्ड इनके नाम है. 15 सितंबर को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने उन्हें राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटेंगल पुरस्कार से सम्मानित किया.
कौन हैं एस वी सरस्वती?
सरस्वती आंध्र प्रदेश के चित्तूर ज़िले से आती हैं. मिलिट्री नर्सिंग सर्विसेस (MNS) में 28 दिसंबर, 1983 को कमीशन हुई थीं. 35 साल से ज़्यादा वक्त तक उन्होंने सेना में काम किया. बतौर ऑपरेशन थिएटर नर्स उन्होंने 3000 से अधिक आपातकालीन और ‘लाइफ़-सेविंग’ सर्जरीस में हिस्सा लिया है. उन्होंने हज़ारों रेसिडेंट्स और नर्सेस को ट्रेन किया है.
ब्रिगेडियर सरस्वती ने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर MNS का प्रतिनिधित्व किया है. ‘बेसिक लाइफ सपोर्ट’ में एक हज़ार से अधिक सैनिकों और परिवारों को उन्होंने ट्रेन किया. Brigadier SV Saraswati ने रोगी शिक्षण सामग्री और कार्डियैक सर्जरी के लिए इंप्रोवाइज़्ड ड्रेप किट्स और घाव सीने के लिए धागे तैयार किए हैं.
भारत के ज़्यादातर आर्मी अस्पतालों में काम कर चुकीं कई आधिकारिक और प्रशासनिक पदों पर रहीं, जिसके बाद उन्हें MNS का उप-महानिदेशक बना दिया गया. उन्हें 2005 में ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ़ कमेंडेशन, 2007 में संयुक्त राष्ट्र पदक (एमओएनओसी) और 2015 में चीफ़ ऑफ़ द आर्मी स्टाफ़ कमेंडेशन से सम्मानित किया गया.

क्या है फ्लोरेंस नाइटिंगल अवॉर्ड?
ये अवॉर्ड नर्सिंग के क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले प्रोफेशनल्स को दिया जाता है. इसका नाम फ्लोरेंस नाइटिंगल के नाम पर पड़ा, जिन्हें नर्सिंग को एक व्यवस्थित प्रोफेशनल बनाने का सबसे बड़ा क्रेडिट दिया जाता है. कौन थी फ्लोरेंस नाइटिंगल? 1820 में इनका जन्म हुआ था, एक धनी ब्रिटिश परिवार में. पैरेंट्स चाहते थे कि अच्छे घर में शादी हो जाए, इसलिए पढ़ाया-लिखाया और शादी की तैयारी शुरू कर दी. लेकिन फ्लोरेंस को तो दूसरों की सेवा करना पसंद था. वो नर्स बनना चाहती थीं. परिवार वाले इसके खिलाफ थे, उन्हें लगता था कि ये उनकी प्रतिष्ठा से मेल नहीं खाता. परिवार ने मना कर दिया. फिर फ्लोरेंस ने कह दिया कि वो कभी शादी नहीं करेंगी और निकल पड़ीं अपनी नर्सिंग की ट्रेनिंग के लिए. खुद सीखकर उन्होंने बाकी महिलाओं को भी नर्सिंग में ट्रेनिंग देनी शुरू की.

1853 से 1856 तक क्रीमियन वॉर चला. एक तरफ रूस था, तो दूसरी तरफ ऑटोमन एम्पायर, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, और सारडीनिया. इस युद्ध में ब्रिटेन के कई सैनिक घायल हुए. तब फ्लोरेंस अपने साथ ट्रेन्ड हुईं 38 नर्सों को लेकर सैनिकों की सेवा के लिए पहुंच गईं. उन्होंने देखा कि युद्ध में लगी चोटों और घावों से ज्यादा आस-पास की गंदगी, और उससे फैली बीमारियां सैनिकों की जान ले रही थीं. जैसे टाइफाइड, कॉलरा, दस्त. फिर ब्रिटेन की सरकार की मदद से फ्लोरेंस ने एक अस्पताल बनवाया. मरीज़ों की साफ-सफाई पर खासा फोकस किया. इससे मरने वालों की संख्या में तेज़ी से कमी आई. फ्लोरेंस जब सैनिकों का ध्यान रख रही थीं, तब रोज़ रात में हाथ में एक जलता हुआ लैंप लेकर अस्पताल का राउंड लेती थीं, इस वजह से उन्हें लेडी विद द लैंप भी कहा जाता था. इसके बाद उन्होंने 1860 में नाइटिंगेल ट्रेनिंग स्कूल भी खोला, जहां नर्सिंग की प्रोफेशनल ट्रेनिंग शुरू हुई. और इन्हीं फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्मदिन के मौके पर मनाया जाता है इंटरनेशनल नर्सेज़ डे और इनके नाम पर ही नर्सिंग का ये प्रतिष्ठिक फ्लोरेंस नाइटिंगल अवॉर्ड भी दिया जाता है.