मां बनना एक खूबसूरत एहसास है. मैं कभी मां नहीं बनी. लेकिन मैंने सुना है. हमउम्र लड़कियों से, बड़ों से. सबसे ज्यादा फिल्मों में देखा है. कई बार तो फिल्मों में डिलीवरी सीन्स के बाद जब मां अपने बेबी को गोद में पकड़ती है या सीने से लगाती है तो मैं रोने लगती हूं. मैं काफी इमोशनल हूं और इस बात को छुपाने की कोई ज़रुरत नहीं समझती हूं.
लेकिन जितना मैं इसके बारे में अपनी हमउम्र लड़कियों से बात करती हूं, उतना ही मुझे ये पता चलता है कि सबकुछ वैसा नहीं होता जैसा फिल्मों में दिखता है. जैसे हम फिल्मों के इश्क को इश्क मान बैठते हैं. फिल्मों के हीरो-हिरोइन जैसी बॉडी बनाना चाहते हैं. वैसे ही हम फिल्मों में माओं और चाइल्डबर्थ के दिखने को असल जैसा मान लेते हैं.

इनसाइड – आउट होती है प्रेग्नेंसी की प्रक्रिया

एक लड़की जब प्रेगनेंट होती है, उसी वक़्त से उसका शरीर और मन बदलाव महसूस करने लगता है. मगर चिंता की बात ये है कि लड़कियों को अधिकतर घरों में कोई इन बदलावों के बारे में पहले से नहीं बताता है. अगर आपकी नई शादी हुई है तो लोग आपसे अक्सर पूछते हैं कि गुड न्यूज़ कब दोगी. घर-परिवार-मोहल्ले की महिलाएं तो ये सवाल पूछने की लिबर्टी हमेशा ही लेकर रखती हैं. मगर मां बनने के प्रोसेस को लेकर अज्ञानता इतनी है कि जब मैंने इस बारे में एक्चुअली लड़कियों से बात की तो मेरे होश उड़ गए.
प्रेग्नेंसी से जुड़े सच
इसलिए आज मैं आपके लिए प्रेग्नेंसी से जुड़े 10 ऐसे सच लेकर आई हूं जिन्हें आपके लिए जानना ज़रूरी है. जो लड़कियां मां बनने वाली हैं, उनके लिए भी, जिससे वो मातृत्व के लिए तैयार रहें. और उन लोगों के लिए भी जिन्हें लगता है कि मां बनना महज़ नौ महीने का गर्भ और एक डिलीवरी है.
पहला सच, गर्भ में बच्चे का किक करना फूल की छुअन या तितली के उड़ने जैसा ही लगे, ये ज़रूरी नहीं है. कोरा और रेडिट जैसे प्लेटफॉर्म्स पर कई महिलाओं ने शेयर किया है कि बच्चा जैसे जैसे बड़ा होता है, वैसे वैसे मूवमेंट बढ़ता है. ये मूवमेंट कभी गैस तो कभी हलके दर्द जैसा महसूस हो सकता है.
दूसरा सच, प्रेग्नेंसी के दौरान और उसके बाद आप मानसिक तकलीफ़ के रिस्क पर होती हैं. इस दौरान होने वाले हॉर्मोनल चेंजेस के बारे में हम कई बार बता चुके हैं. एक नयी मां के मानसिक स्वास्थ्य का ख़याल कैसे रखना है. इसके बारे में पोस्टपार्ट डिप्रेशन की जानकारी होना ज़रूरी है .
तीसरा सच, प्रेगनेंट होना जितना रियल है, उतना ही रियल मिसकैरिज, यानी गर्भ में भ्रूण का ख़त्म हो जाना है. इसे लेकर मैंने गायनेकोलॉजिस्ट से भी बात की.
चौथा सच, कई लड़कियों ने प्रेग्नेंसी के दौरान अनिद्रा यानी नींद न आने की समस्या के बारे में बताया है. ये हर होने वाली मां के लिए अलग हो सकता है. कुछ महिलाओं के लिए ज्यादा कम्फ़र्टेबल तो कुछ के लिए खराब हो सकता है.
पांचवा सच, प्रेग्नेंसी के दौरान कब्ज़ और पाइल्स यानी बवासीर की शिकायत हो सकती है.

छठा सच, डिलीवरी के बाद लंबी ब्लीडिंग के लिए तैयार रहना ज़रूरी है.
सातवां सच, पेशाब और मल पर आपका कंट्रोल हल्का पड़ सकता है.
आठवां सच, स्तनपान कराना हर बार सुखद हो, ज़रूरी नहीं.
नौंवां सच, बाज़ार और ब्रांड्स द्वारा लिखे गए इंटरनेट आर्टिकल्स आपको गुमराह कर सकते हैं इसलिए हर दिक्कत के लिए गूगल सर्च आपको महंगा पड़ सकता है.
दसवां और बड़ा सच ये कि बच्चा अपने साथ बड़े खर्चे लेकर आता है. हम बच्चा पैदा होने को शादी के बाद का नैसर्गिक सत्य मानते हैं. मगर सत्य तो ये है कि प्रेग्नेंसी से लेकर डिलीवरी तक, और बच्चे के पैदा होने से लेकर उसे आने वाले सालों में पढ़ाने तक, कई खर्च हैं जो आपकी झोली में आएँगे. इसलिए बेबी करने के पहले प्लानिंग सबसे ज्यादा जरूरी है.
तो ये कुछ बातें हैं जो मां बनने के पहले आपको, आपके पति या पार्टनर को, आपके परिवार को, मालूम होनी चाहिए ताकि मां बनने के पहले आपको ठीक ठीक पता हो कि आने वाला वक़्त आपके लिए कैसा होगा. इसका फायदा ये होगा कि आप मानसिक और शारीरिक रूप से खुद को तैयार कर सकेंगी, बेहतर सेहत के लिए अपनी डाइट और एक्सरसाइज प्लान कर सकेंगी, डॉक्टर, अस्पताल और डिलीवरी के बाद के खर्चों के लिए आप अपने फाइनेंसेज दुरुस्त रख सकेंगी.
मां भी इंसान होती है सुपरपावर नहीं
मां बनना सचमुच एक सुखद एहसास है, लेकिन अगर महिला इसके लिए तैयार न हो तो जीवन में, प्रेग्नेंसी में तकलीफों का शिकार बन सकती है. कोई आपसे कहे कि मां भगवान होती है तो उसे रोक दीजिए. मां बेशक एक बहादुर महिला हो सकती है, लेकिन इश्वर नहीं हो सकती. क्योंकि जब आप उसे भगवान कहते हैं या सुपरपावर बताते हैं तो आप उससे इंसानी तकलीफों के लिए शिकायत करने का हक़ छीन लेते हैं. और उसे महानता की परिभाषा के बोझ के तले इतना दबा देते हैं कि उसे ऐसे वक़्त में अकेले पड़ जाने का डर होता है.
अगर आप किसी गर्भवती महिला के पति हैं, भाई हैं, आप उनकी मां हैं, सास हैं, बहन हैं, या उनके कुछ भी लगते हैं तो उनका हाल पूछिए. उनका ख्याल रखिए. सहकर्मी हैं तो उनके लिए लड़िये. उन्हें ऑफिस में व्याप्त सेक्सिज्म से बचाइए. उन सहकर्मियों को चुप कराइए जो मानते हैं कि मैटरनिटी लीव लेकर औरत चार-छह महीने आराम फरमाने चली गई है और अब काम नहीं कर पाएगी.तभी मां बनना एक सुखद एहसास हो पाएगा.
क्या राय है आपकी? मुझे कमेंट बॉक्स में बताएं.
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