औरतों का जींस पहन दफ्तर जाना खबर क्यों बन गया?
औरतों को सरकारी दफ्तर में जींस-शर्ट पहनने की हिम्मत कहां से आई?

आपका स्कूल यूनिफार्म क्या था? या आपके घर में या आस पास बच्चे किस यूनिफार्म में स्कूल जाते हैं?
जिस शहर में मेरी पढ़ाई हुई, वहां के सरकारी स्कूल में आठवीं क्लास तक की लड़कियां शर्ट और फ्रॉक पहनतीं और 9वीं से 12वीं तक सलवार- सूट. लड़कों का ड्रेस कोड अमूमन एक ही रहा. शर्ट पैंट. फर्क बस पैंट की लेंथ का रहा. पांचवी तक लड़के हाफ पैंट पहनते और उसके बाद जगह फुल पैंट ने ले ली. चाहे प्राइवेट स्कूलों की हो या सरकारी की, लड़के और लड़कियों के यूनिफार्म्स में साफ़ तौर पर अंतर होता.
बात यूनिफार्म्स की खुली क्यूंकि इससे जुड़ी एक खबर आई है. केरल के कोझिकोड से. वहां की नगर निगम ऑफिस में काम करने वाली महिलाएं जीन्स और शर्ट पहनकर दफ्तर पहुंचीं. आप कहेंगे, इसमें क्या खबर है? ये तो आम बात है. आजकल तो लड़कियां और महिलाएं जीन्स-शर्ट पहनकर दफ्तर जाती ही हैं. बात सही है. आप और मैं जिन दफ्तरों और शहरों में काम करते हैं वहां के लिए ये नॉर्मल बात है.
लेकिन सरकारी नगर निगम ऑफिस के लिए ये नॉर्मल नहीं है. क्योंकि वहां अमूमन सलवार कमीज़ और साड़ी को ही महिलाओं के लिए प्रोफेशनल ड्रेस माना जाता है. इसलिए जब नगर निगम के दफ्तर में ये महिलाएं जीन्स शर्ट पहनकर पहुंचीं तो लोगों की नज़र उनपर टिक गई. कुछ लोगों की भौंहे तन गईं तो कुछ ने उनकी तारीफ की. द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार केरल म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन की डिस्ट्रिक्ट कन्वेयर एन शषिता ने कहा,
"कुछ दिन पहले खबर आयी की बालुसेरी के एक स्कूल में बच्चों के लिए जेंडर न्यूट्रल ड्रेस कोड लागू किया गया है. वो सुनकर हमारे मन में भी इच्छा हुई कि काश हम भी कम्फर्टेबल कपड़े पहनकर दफ्तर आ सकते. जब कमिटी मीटिंग में इसपर बात चली तो ये फैसला किया गया कि हम भी जेंडर न्यूट्रल ड्रेस के आईडिया को अपनाकर देखते हैं. एक आम धारणा है कि साड़ी या सलवार कमीज के अलावा कुछ भी सरकारी अधिकारियों (महिलाओं) के लिए पर्याप्त सभ्य या प्रोफेशनल नहीं है. हम इस धारणा को बदलना चाहते थे. साथ ही, हम उन सीमाओं को पार करना चाहते थे जो हमने अपने लिए निर्धारित की हैं."
उसी दफ्तर में काम करने वाली सुबैदा का कहना है,
" हमारे ऑफिस में कोई ऑफिशियल ड्रेस कोड या किसी ड्रेस पर कोई प्रतिबंध नहीं है. पर हम खुद ही आशंकित रहते थे अगर हम जीन्स शर्ट पहनेंगे तो लोग क्या सोचेंगे, खासकर हमारे साथ काम करने वाले. मैंने दो साल पहले ही सलवार कमीज़ पहनना शुरू किया है. बहुत हिम्मत कर के मैं साड़ी से सलवार कमीज़ पर शिफ्ट हो पाई हूं. मैंने कभी जीन्स शर्ट नहीं पहना, लेकिन बाक़ी औरतों और लड़कियों को ये पहने देखकर मुझे प्रोत्साहन मिला कि मैं भी कभी इसे पहनकर देखूं"
इन बातों में एक शब्द का बार बार ज़िक्र आया. जेंडर न्यूट्रल यूनिफार्म. यानी सभी जेंडर के लिए एक जैसे कपड़े.
ये शब्द चर्चा में तब आया जब केरल के एक सरकारी स्कूल ने सभी बच्चों के लिए एक सामान ड्रेस कोड लागू करने की बात कही. एरनाकुलम के लोअर प्राइमरी सरकारी स्कूल में आदेश निकला कि सभी बच्चे शर्ट और थ्री फोर्थ पैंट पहनेंगे. स्कूल के प्रिंसिपल सी राजी ने कहा था,
"हम स्कूल में लागू करने के लिए कई फैक्टर्स के बारे में बात कर रहे थे तो लैंगिक समानता मुख्य विषय था. इसलिए ड्रेस का ख्याल आया. जब मैं सोच रही थी कि इसका क्या करूं, तो मैंने देखा कि स्कर्ट को लेकर लड़कियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. सभी के साथ बदलाव के विचार पर चर्चा की गई. 90 प्रतिशत माता-पिता ने इसका समर्थन किया था. यह 105 साल पुराना स्कूल है. इसलिए किसी का कोई खास विरोध नहीं हुआ. एकेडमिक कमेटी के निर्णय को सभी ने मान लिया."
ये फैसला 2018 में लिया गया था, लेकिन इम्प्लीमेंट 2021 में हुआ. इसकी तारीफ केरल के एजुकेशन मिनिस्टर वी शिवनकुट्टी ने भी की. उन्होंने ट्वीट कर कहा था,
"जेंडर जस्टिस और इक्वलिटी के बारे में बात होती है. पर इसे केवल किताबों तक सीमित नहीं रखना चाहिए, वलयनचिरंगारा सरकारी स्कूल की का ये फैसला सराहनीय है. अब लड़के और लड़कियां, दोनों के लिए सामान ड्रेस कोड होगा."
पिछले साल दिसंबर में ही केरल के बालुसेरी सरकारी स्कूल से भी ऐसी ही खबर आई. हायर सेकेंडरी गर्ल्स स्कूल में लड़कियों के लिए नया यूनिफार्म लागू हुआ. शर्ट और ट्रॉउज़र. स्कूल की प्रिंसिपल आर इंदु ने बीबीसी से कहा था,
" जब कोई बच्चा पैदा होता है, हम तब से ही लड़के और लड़की में भेदभाव करने लगते हैं. हम उन्हें अलग-अलग टॉयज देते हैं. लड़कों को गन और कार मिलती है, लड़कियों को गुड्डे-गुड़िया. लड़कों के लिए ब्लू थीम की चीज़ें मिलती है, लड़कियों के लिए पिंक. उनके जूतों से लेकर कपड़ों तक, रंग और डिज़ाइन में फर्क होता है. लेकिन बच्चों को हर चीज़ के लिए सामान आज़ादी और मौके देने चाहिए. लड़कियों के लिए शर्ट और ट्रॉउज़र यूनिफार्म के रूप में लागू करना, जेंडर न्यूट्रैलिटी के तरफ एक कदम है"
हालांकि कुछ लोगों ने इस फैसले का विरोध भी किया था. तब उस वक़्त के उच्च शिक्षा मंत्री आर. बिंदु ने कहा था, "लोग हमेशा नए बदलाव का विरोध करते हैं. लेकिन जो लोग बच्चों से प्यार करते हैं वो इस तरह के प्रगतिशील परिवर्तन का विरोध नहीं करेंगे. वो बच्चों की आज़ादी का समर्थन करेंगे."
जेंडर न्यूट्रल यानी सभी जेंडर के लिए एक सामान यूनिफार्म लागू करना जेंडर इक्वालिटी के तरफ बढ़ता हुआ एक कदम है. जेंडर इक्वलिटी यानी लैंगिक समानता. इसका मकसद महिला-पुरुषों के बीच लिंग के आधार पर हो रहे भेदभाव को खत्म करना है. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि जेंडर एक्वालिटी की सूझबूझ बच्चों में स्कूल से ही होनी चाहिए. इसलिए दुनियाभर के अलग-अलग स्कूलों में जेंडर इक्वालिटी को प्रमोट करने के लिए अलग-अलग इनीशिएटिव लिए जा रहे हैं.
स्कर्ट लड़कियों का ड्रेस होता है या पैंट लड़कों का ड्रेस होता है ये हम किताबों की बजाय आस-पास से देखकर सीखते हैं. पिंक लड़कियों का कलर होता है और ब्लू लड़कों का ये भी मार्किट की देन है. इसलिए जब हम किसी लड़के को पिंक शर्ट पहने देखते हैं, तो कुछ लोगों के मुंह से पहले यही निकलता है, 'ये क्या लड़कियों जैसी टीशर्ट पहनी है" या लड़की अगर जीन्स या पैंट पहने तो हम उसे मॉडर्न करार देते हैं. ये बताने की ज़रूरत तो है नहीं कि मॉडर्न शब्द को नेगेटिव सेंस में इस्तेमाल किया जाता है.
बच्चों के लिए इम्प्लीमेंट हुए इस फैसले का असर न केवल बच्चों पर बल्कि बड़ों पर भी हुआ. सरकारी दफ्तर में काम करने वाली महिलाओं को सोचने और ये फैसला लेने की हिम्मत मिली कि वो अपने कम्फर्ट के हिसाब से कपड़े पहनकर काम पर जा सकें. ये समझने में मदद मिली कि जो पैंट-शर्ट और ट्रॉउज़र लड़कों के लिए प्रोफेशनल माने जाते हैं वो उनके लिए भी उतने ही प्रोफेशनल और डिसेंट है.
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