इन वजहों से होती है नींद में बोलने की आदत, ऐसी ठीक हो जाएगी!
नींद में बोलने या चलने की आदत को पैरासोम्निया कहा जाता है. इसमें व्यक्ति जो सपना देख रहा है, उससे जुड़ी चीज़ें करने लगता है.
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रात में हममें से कुछ लोग सोते-सोते बुदबुदाने लगते हैं. बड़बड़ाने लगते हैं. कभी धीरे तो कभी तेज़-तेज़ बात करते हैं. कुछ लोग तो एक कदम और आगे होते हैं. वो नींद में ही चलने लगते हैं. कुछ काम करने लगते हैं. अगर आप इसे अब तक हंसी-मज़ाक की बात मान रहे थे, तो आप गलत हैं. दरअसल, ऐसा नींद से जुड़ी एक दिक्कत की वजह से होता है. इसका नाम है, पैरासोम्निया (Parasomnia). पैरासोम्निया में व्यक्ति जो सपना देख रहा है, उससे जुड़ी चीज़ें करने या बोलने लगता है. कुछ लोग अचानक डर कर उठ भी जाते हैं. आज इसपर बात करेंगे. डॉक्टर से जानेंगे कि कुछ लोग नींद में बोलने क्यों लगते हैं? और, आखिर इसका इलाज क्या है?
कुछ लोगों को नींद में बोलने की आदत क्यों होती है?ये हमें बताया डॉ. भास्कर शुक्ला ने.
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मेडिकल की भाषा में ऐसे डिसऑर्डर को पैरासोम्निया कहा जाता है. पैरासोम्निया यानी नींद से जुड़ी दिक्कत. नींद के दो फेज़ होते हैं. एक होता है रेम. दूसरा होता है नॉन रेम. इस तरह पैरासोम्निया को दो तरह से बांट सकते हैं. रेम पैरासोम्निया और नॉन रेम पैरासोम्निया. दोनों के अलग-अलग लक्षण होते हैं. जैसे रेम पैरासोम्निया में मरीज़ जो सपना देख रहा होता है, उसे करने की कोशिश करता है. इसको ड्रीम इनैक्टमेंट भी कहते हैं. वहीं नॉन रेम पैरासोम्निया में मरीज़ एकदम से डर जाता है. नाइट टेरर्स यानी रात्रि भय होता है. नींद में चलने लगता है. इसके कई मेडिकल कारण हो सकते हैं. ये आमतौर पर चिंता की वजह से होता है, स्ट्रेस से, पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से, अगर मरीज़ किसी हादसे से गुज़रा हो या वो काफी स्ट्रेस में हो.
इसके अलावा कुछ सीरियस मेडिकल कंडीशंस भी होती हैं. जैसे पार्किंसन डिज़ीज़. इसमें ड्रीम इनैक्टमेंट जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है. मरीज़ जो देखता है, वो करने की कोशिश करता है. जब भी अपने परिवार में या रिश्तेदारों से ये दिक्कत सुनें तो उसे इग्नोर नहीं करना चाहिए. मेडिकल हेल्प लेनी चाहिए.
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मोटे तौर पर हम देखें तो स्लीप हाइजीन को बेहतर करना ज़रूरी है. कैफीन लेने की मात्रा कम कर दें. शराब पीना कम कर दें. मादक पदार्थों का सेवन कम करें. अच्छी नींद लें. एक्सरसाइज़ करें. सही समय पर सोने के लिए जाएं. रात में हल्का खाना खाएं. अपनी लाइफस्टाइल में सुधार करें. कई बार दवाइयों की ज़रूरत भी पड़ती है. डॉक्टर की सलाह के बाद ही दवाई लें. दवाइयों से हमें शॉर्ट टर्म में मदद मिल सकती है. अगर कोई और दिक्कत है तो वह भी पकड़ में आ सकती है. फिर उस हिसाब से उसका इलाज हो सकता है.
नींद में बोलना एक काफ़ी आम समस्या है. लेकिन अगर इंसान नींद में उठकर चलने, फिरने लगे या कोई काम करने लगे तो ध्यान देने की ज़रुरत है. ऐसे में डॉक्टर से मिलें ताकि सही जांच हो सके और इलाज हो.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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