क्या है रामसे हंट सिंड्रोम, जिसके कारण पड़ गया जस्टिन बीबर को लकवा
जस्टिन बीबर के चेहरे की राइट साइड पूरी तरह से पैरालाइज़ हो गई थी.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
आपने जस्टिन बीबर का नाम तो सुना ही होगा. काफ़ी मशहूर सिंगर हैं. जून के महीने में उन्होंने इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट शेयर किया था. इसमें उन्होंने बताया था कि उन्हें रामसे हंट सिंड्रोम नाम की बीमारी हो गई है. जिसकी वजह से उनके चेहरे के दाईं तरफ़ लकवा मार गया है. चेहरे की राइट साइड पूरी तरह से पैरालाइज़ हो चुकी है. उनकी दाईं आंख न फड़क पा रही थी, न ही वो मुस्कुरा पा रहे थे.
जिन लोगों को चिकन पॉक्स हो चुका है, उन्हें रामसे हंट सिंड्रोम से ख़तरा रहता है. क्योंकि ये उसी वायरस के कारण होता है. वैसे तो ये कंडीशन बहुत आम नहीं है, पर टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी ख़बर के मुताबिक, हिंदुस्तान में हर एक लाख लोगों में से पांच लोगों को रामसे हंट सिंड्रोम होता है. तो आज हम बात करेंगे इसी बीमारी के बारे में. सबसे पहले जानते हैं रामसे हंट सिंड्रोम क्या होता है और इससे किन लोगों को ज़्यादा ख़तरा है.
रामसे हंट सिंड्रोम क्या और क्यों होता है?ये हमें बताया डॉक्टर रोहित गुप्ता ने.
-रामसे हंट सिंड्रोम एक दर्दनाक रैश (लाल निशान) है.
-जो फेशियल नर्व पर असर करता है.
-ये कानों से पास होती है.
-ये वेरीसेल्ला जोस्टर वाइरस के कारण होता है.
-यही वायरस बच्चों में चिकन पॉक्स करता है.
-जब चिकन पॉक्स खत्म हो जाता है, उससे रिकवरी हो जाती है.
-उसके बाद ये वायरस शरीर में रह जाता है.
-ये सालों बाद इम्युनिटी कम होने की वजह से, दोबारा से एक्टिवेट हो जाता है.
-फिर ये रामसे हंट सिंड्रोम के रूप में उभरता है.
लक्षण-आमतौर पर रामसे हंट सिंड्रोम एडल्ट्स में होता है.
-ये बच्चों में बहुत रेयर है.
-सबसे आम लक्षण है दर्द.
-रैश हो जाता है, जिसमें बहुत दर्द होता है.
-कई बार इसमें फेशियल पैरालिसिस (चेहरे पर लकवा मार जाता है ) भी हो जाता है.
-मुंह टेढ़ा हो जाता है.
-सुनने की क्षमता चली जाती है.
-चक्कर आने लगते हैं.
डायग्नोसिस-इस सिंड्रोम का पता क्लिनिकल डायग्नोसिस के बाद चलता है.
-यानी MRI किया जाता है.
-लंबर पंक्चर टेस्ट किया जाता है.
-चेहरे का नर्व टेस्ट भी किया जाता है.
-चेहरे पर जो फोड़े हो जाते हैं, उनमें मौजूद फ्लूड का टेस्ट किया जाता है.
इलाज-इसका इलाज जल्दी से जल्दी शुरू होना चाहिए.
-जितना जल्दी इलाज शुरू होगा, उतना ही जल्दी असर देखने को मिलेगा.
-बाद में होने वाली दिक्कतें भी कम हो जाती हैं.
-इलाज आमतौर पर 3 तरह से किया जाता है.
-क्योंकि ये एक वायरस है, इसलिए इसमें एंटी-वायरल दवाइयां दी जाती हैं.
-जिसमें सबसे आम है एसिक्लोवीर और वलसिक्लोवीर.
-इन दवाइयों से वायरस को धीरे-धीरे खत्म किया जाता है.
-दूसरा ट्रीटमेंट है स्टेरॉयड का एक छोटा कोर्स.
-उससे रिकवरी जल्दी होती है और बाद में होने वाली दिक्कतें भी कम होती हैं.
-क्योंकि इसमें दर्द बहुत ज़्यादा होता है.
-इसलिए कुछ समय के लिए पेन किलर भी लेने पड़ते हैं.
-रामसे हंट सिंड्रोम में अगर 72 घंटों के अंदर इलाज शुरू कर दें तो इलाज बहुत अच्छा हो जाता है.
-ज़्यादातर लोग 2-3 महीने में लगभग ठीक हो जाते हैं.
-अगर इलाज करने में देरी हो जाती है तो कुछ लोगों में इसके कॉम्प्लिकेशन हो जाते हैं.
-जैसे अगर किसी को फेशियल पैरालिसिस हो जाता है तो हमेशा के लिए सुनने की क्षमता चली जाती है.
-इसमें आंखों की ऊपरी सतह पर एनेस्थीसिया, सुन्नपन होने की वजह से उसमें रगड़न हो सकती है.
-कई बार आंखों की रोशनी चली जाती है.
-कुछ लोगों में पोस्टहेरपेटिक न्यूराल्जिया हो सकता है.
-यानी रामसे हंट सिंड्रोम खत्म होने के बाद भी दर्द रह जाता है.
आपने डॉक्टर साहब की बातें सुनीं. रामसे हंट सिंड्रोम में बहुत ज़रूरी है कि लक्षण दिखने पर तुरंत इसका इलाज शुरू कर दिया जाए. वो भी 72 घंटों के अंदर. इसलिए देरी न करें. तुरंत डॉक्टर को दिखाएं.
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