'पतले लोगों को डायबिटीज नहीं होता' कहने वाले ये पढ़ लें!
डायबिटीज के वो आम लक्षण जिन पर लोग ध्यान नहीं देते.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
प्रभा 37 साल की हैं. कानपुर की रहने वाली हैं. उन्हें बस 3 महीने पहले ही पता चला कि उन्हें टाइप 2 डायबिटीज है. अब जब उन्हें ये पता चला है, प्रभा शॉक में हैं. इसकी 2 वजहें हैं. हम अक्सर डायबिटीज को बुढ़ापे में होने वाली एक बीमारी की तरह देखते हैं. प्रभा भी ऐसा ही समझती थीं. पर जब उन्हें पता चला कि उन्हें 37 की उम्र में ही डायबिटीज हो गया है तो उन्हें यकीन नहीं हो रहा.
दूसरी बात. एक बहुत ही आम धारणा है कि ओवरवेट लोग डायबिटीज के ज़्यादा रिस्क पर होते हैं. जो लोग दुबले होते हैं, उनको डायबिटीज का इतना रिस्क नहीं होता. प्रभा को भी ऐसा ही लगता था. वो अपनी लाइफ में कभी भी ओवरवेट नहीं रहीं. न ही कभी उन्हें कोई ऐसे लक्षण महसूस हुए, जिससे उन्हें अंदाज़ा भी लग पाता कि वो डायबिटिक है. इसलिए प्रभा चाहती हैं हम अपने शो पर लीन डायबिटीज यानी दुबले लोगों में होने वाली डायबिटीज और इसके कुछ साइलेंट लक्षणों पर बात करें. इन सारे सवालों से पहले ये जान लेते हैं कि टाइप 1 डायबिटीज और टाइप 2 डायबिटीज के बीच क्या फ़र्क होता है.
टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज में क्या फ़र्क होता हैये हमें बताया डॉक्टर अल्का झा ने.

-टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज के बीच का फ़र्क समझने से पहले हमें ये जानना होगा कि खाना कैसे पचता है.
-जब हम खाना खाते हैं तो वो खाना डाइजेस्ट होकर ग्लूकोस में बदलता है.
-ये आंतों के ज़रिए खून के अंदर आता है.
-ब्लड से ये ग्लूकोस सेल्स के अंदर जाता है.
-सेल्स इसे अलग-अलग कामों के लिए इस्तेमाल करते हैं.
-ग्लूकोस को खून से सेल्स के अंदर जाने के लिए एक हॉर्मोन की ज़रुरत पड़ती है.
-इस हॉर्मोन को इंसुलिन कहते हैं.
-जो हमारे शरीर के एक अंग जिसे पैंक्रियाज़ कहते हैं और ये पेट में पाया जाता है, इससे निकलता है.
-अगर किसी इंसान में ये इंसुलिन बनना बंद हो जाए तो क्या होगा?
-खाना खाने के बाद ब्लड में शुगर की मात्रा बढ़ती जाएगी.
-लेकिन वो शुगर ब्लड से सेल्स के अंदर नहीं जाएगी.
-इसी कंडीशन को टाइप 1 डायबिटीज बोलते हैं.
-टाइप 1 डायबिटीज एक ऐसी सिचुएशन है, जिसमें जब हमारे शरीर में किसी भी कारण से इंसुलिन बनना बंद हो जाता है.
-तब ब्लड में शुगर की मात्रा बढ़ती जाती है.
-टाइप 1 डायबिटीज अक्सर छोटे बच्चों में देखा जाता है.
-ऐसे बच्चों में अक्सर शुगर को कंट्रोल करने के लिए ज़िंदगीभर इंसुलिन देने की ज़रुरत पड़ती है.
-टाइप 2 डायबिटीज बड़े लोगों में देखा जाता है.
-ख़ासकर उन लोगों में जो ओवरवेट होते हैं.

-इस प्रकार की डायबिटीज में शरीर इंसुलिन बनाता तो है लेकिन इंसुलिन काम नहीं करता.
-इस कंडीशन को इंसुलिन रेजिस्टेंस कहते हैं.
-कुछ समय तक इस इंसुलिन रेजिस्टेंस से लड़ने के लिए शरीर ज़्यादा मात्रा में इंसुलिन बनाता है.
-पर समय के साथ इंसुलिन का बनना भी बंद होता जाता है.
-टाइप 2 डायबिटीज बड़े लोगों, ओवरवेट बच्चों में देखा जाता है.
-इस प्रकार के डायबिटीज को हम शुरुआती स्टेज में टैबलेट से कंट्रोल कर सकते हैं.
-इंसुलिन की ज़रुरत अक्सर लेट स्टेज में पड़ती है.
-ये फ़र्क है टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज में.
शुरुआती लक्षण जिनपर लोग अमूमन ध्यान नहीं देते-अक्सर डायबिटीज के लक्षण नहीं दिखते हैं.
-इसलिए डायबिटीज को साइलेंट डिज़ीज़ भी कहते हैं.
-बहुत सालों तक शरीर में कोई लक्षण नहीं दिखते.
-इसलिए ये बीमारी इग्नोर हो जाती है.
-पर कुछ लक्षण हैं जिनपर नज़र रखनी चाहिए.
-जैसे थकावट.
-कमज़ोरी.
-यूरिन एरिया में बार-बार इन्फेक्शन होना.
-वजाइना में बार-बार फंगस का इन्फेक्शन होना.
-बार-बार फोड़े होना.
-अगर कहीं चोट लगी है तो उसका जल्दी ठीक न होना.
-कई बार जब शुगर की मात्रा बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है तब बार-बार प्यास लगती है.
-बार-बार यूरिन आना.
-भूख ज़्यादा लगना.
-भूख ज़्यादा लगने के बाद भी वज़न का कम होना.
किन तरह के टेस्ट करवाने चाहिए-शुगर में दो प्रकार के टेस्ट होते हैं.
-एक होता है ओरल ग्लूकोस टॉलरेंस टेस्ट (OGTT).

-दूसरा है HbA1c.
-ओरल ग्लूकोस टॉलरेंस टेस्ट में खाली पेट ब्लड टेस्ट किया जाता है, जिससे शुगर का पता चलता है.
-फिर 75 ग्राम ग्लूकोस पिलाया जाता है.
-उसके 2 घंटे के बाद दोबारा शुगर टेस्ट किया जाता है.
-कुछ सेट वैल्यू होते हैं ग्लूकोस के.
-जैसे खाली पेट ब्लड शुगर टेस्ट में शुगर 100 से कम होनी चाहिए.
-अगर ये 100-126 के बीच में आता है तो इसको इम्पेयर ग्लूकोस (Impair Glucose) कहते हैं.
-जो प्री डायबिटीज वाली कंडीशन होती है.
-अगर खाली पेट ब्लड शुगर टेस्ट की मात्रा 125 से ज़्यादा होती है तो उसको डायबिटीज कहते हैं.
-दो घंटे वाली वैल्यू एक नॉर्मल इंसान में 140 से कम होनी चाहिए.
-लेकिन अगर ये 140-199 के बीच में है तो इसको प्री डायबिटीज बोलते हैं.
-अगर ये वैल्यू 200 से ज़्यादा है तो इसको डायबिटीज बोलते हैं.
-इन टेस्ट से पता चल सकता है कि आपको डायबिटीज है, प्री डायबिटीज है या आपके ब्लड शुगर की वैल्यू नॉर्मल है.
-दूसरा टेस्ट है HbA1c जो पिछले 3 महीने के शुगर लेवल को बताता है.
-अगर ये शरीर में 6.5 से ज़्यादा है तो इसको डायबिटीज बोलते हैं.
डायबिटीज को कंट्रोल में रखने की टिप्स-डायबिटीज को कंट्रोल करने के लिए 3 चीज़ें बहुत ज़रूरी हैं.
-नियम से रोज़ एक्सरसाइज करें या चलें.
-आप केवल चल सकते हैं या कुछ एरोबिक एक्सरसाइज या वेट/मसल स्ट्रेंगथनिंग एक्सरसाइज कर सकते हैं
-इसमें छोटे-छोटे वेट उठाकर एक्सरसाइज कर सकते हैं.
-खाने में नियम रखना बहुत ज़रूरी है.
-इसके लिए लाइफस्टाइल में बदलाव करें.
-कितने बजे खाना है, क्या खाना है, कितनी मात्रा में खाना है, इन सारी चीज़ों के बारे में अपने डायटीशियन से बात करें.
-अपनी दवाइयों को नियमित रूप से लेते रहें.
-चाहे वो ओरल टैबलेट हो या इंसुलिन हो.

-हर कुछ समय में डॉक्टर से मिलें.
- कुछ ऐसे टेस्ट हैं जो डायबिटीज के मरीज़ों को करवाने चाहिए, हर कुछ समय में उन्हें करवाएं.
-अपने डॉक्टर से डिस्कस करें.
-जैसे आंखों की जांच, आंखों के ऊपर शुगर का प्रभाव देखने की जांच, पैरों की नसों की जांच.
-यूरिन में प्रोटीन तो लीक नहीं हो रहा, इसकी जांच भी करवाएं.
-ये टेस्ट करवाते रहने चाहिए ताकि कोई भी प्रॉब्लम हो, वो जल्दी पकड़ में आ जाए.
क्या दुबले लोगों को भी डायबिटीज हो सकता है?-डायबिटीज दुबले लोगों में भी हो सकता है.
-इसको लीन डायबिटीज कहते हैं.
-इन दुबले लोगों में देखने पर फैट पता नहीं चलता.
-लेकिन ऐसे लोगों के अंदरूनी अंगों पर फैट जमा होता है.
-जिसकी वजह से इंसुलिन रेजिस्टेंस होता है.
-फिर दुबले लोग भी डायबिटीज का शिकार हो जाते हैं.
सुना आपने, डायबिटीज ओवरवेट, दुबले किसी भी इंसान को हो सकता है. अक्सर इसके लक्षण आपको शुरुआत में समझ में नहीं आते. इसलिए डायबिटीज का टेस्ट करवाना ज़रूरी हो जाता है. अगर आपके घर में डायबिटीज की हिस्ट्री है तो ज़रूरी है आप सतर्क रहें. अपने डॉक्टर से डिस्कस कर के डायबिटीज की जांच करवाएं.
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