Gallbladder Cancer कैसे होता है, इलाज क्या है? बिहार के लोगों को सबसे ज्यादा खतरा
बिहार में गॉल ब्लैडर कैंसर के केस काफ़ी तेज़ी से बढ़ रहे हैं. इससे डॉक्टर भी काफ़ी परेशान हैं. 85 प्रतिशत पेशेंट्स डॉक्टर के पास तब आते हैं, जब कैंसर बहुत बढ़ चुका होता है. तो सबसे पहले जानते हैं गॉल ब्लैडर और बाइल डक्ट कैंसर क्यों होता है और इसके क्या लक्षण हैं.
गॉल ब्लैडर यानी पित्ताशय और बाइल डक्ट यानी पित्त वाहिका या पित्त की नली. आज सेहत में हम आपको बताएंगे इनमें होने वाले कैंसर के बारे में. इसको कहते हैं गॉल ब्लैडर और बाइल डक्ट कैंसर. पर उससे पहले ये समझ लीजिए कि आपका गॉल ब्लैडर यानी पित्ताशय काम क्या करता है. ये एक पित्त की थैली होती है जो पेट के ऊपरी हिस्से में, सीधे हाथ की तरफ होती है. लिवर के नीचे. इसका मेन काम होता है, जो बाइल यानी पित्त हमारे लिवर के अंदर बन रहा है, उसे इकट्ठा करना. जब भी हम कोई ऐसा खाना खाते हैं जिसमें फैट होता है, तब ये बाइल गॉल ब्लैडर से निकलता है और छोटी आंत में जाता है. फिर उस फैट वाले खाने को पचाने में मदद करता है.
ये हुआ गॉल ब्लैडर पर एक छोटा सा क्रैश कोर्स. अब आते हैं गॉल ब्लैडर के कैंसर पर.
साल 2023 में टाइम्स ऑफ़ इंडिया में एक रिपोर्ट छपी थी. उसके मुताबिक, बिहार में गॉल ब्लैडर कैंसर के केस काफ़ी तेज़ी से बढ़ रहे हैं. इससे डॉक्टर भी काफ़ी परेशान हैं. 85 प्रतिशत पेशेंट्स डॉक्टर के पास तब आते हैं, जब कैंसर बहुत बढ़ चुका होता है. तो सबसे पहले जानते हैं गॉल ब्लैडर और बाइल डक्ट कैंसर क्यों होता है और इसके क्या लक्षण हैं.
गॉल ब्लैडर और बाइल डक्ट कैंसर क्यों होता है?जानिए डॉ. अज़हर परवेज़ से.
गॉल ब्लैडर और बाइल डक्ट कैंसर किस वजह से होता है ये साफ़ नहीं है. लेकिन कई ऐसी वजहें हैं जिनके चलते रिस्क बढ़ जाता है. जैसे गॉल ब्लैडर में पथरी हो और उसे काफी दिनों तक नज़रअंदाज किया जाए. अगर गॉल ब्लैडर और बाइल डक्ट कैंसर आपके परिवार में किसी को है तो आपको भी होने का ख़तरा होता है.
भारत के नार्थ ईस्ट में गंगा डेल्टा के एरिया में गॉल ब्लैडर कैंसर के केस ज्यादा होते हैं. इसके अलावा कई वजहें डाइट और वातावरण से भी जुड़ी होती हैं. कई बार गंदगी की वजह से भी इंफेस्टेशन होता है यानी कीड़ों से होने वाले इन्फेक्शन. इस वजह से बाइल डक्ट कैंसर के रिस्क बढ़ जाते हैं. अगर बहुत समय से टाइफाइड है तो सीधे तौर पर इसका कनेक्शन गॉल ब्लैडर कैंसर से माना जाता है. इन सभी कारणों से गॉल ब्लैडर और बाइल डक्ट कैंसर का रिस्क बढ़ जाता है. लेकिन इसकी सिर्फ़ एक वजह नहीं बताई जा सकती.
लक्षणगॉल ब्लैडर और बाइल डक्ट कैंसर के लक्षण स्पष्ट नहीं होते हैं. लक्षण तब सामने आते हैं जब कैंसर बढ़ जाता है. पेट की दाईं साइड में ऊपर की तरफ दर्द होता है. कई बार काफी लेट पता चलता है. इसमें कोई ख़ास लक्षण नहीं आते हैं. भूख न लगना एक लक्षण है. लेकिन जब कैंसर का साइज बढ़ जाता है तब ये पेट में मौजूद बाइल डक्ट को दबाता है, जिसकी वजह से पीलिया हो जाता है.
अगर ऐसे लक्षण 2-3 हफ्ते रहते हैं तब डॉक्टर को जरूर दिखाएं. अगर तेजी से बिना वजह वजन बढ़ रहा है तो सतर्क रहें. अगर कैंसर का पता शुरुआती समय में लग जाए तो इसका पूरी तरह से इलाज किया जा सकता है. अगर बताए गए लक्षण नज़र आ रहे हैं और डॉक्टर को समय पर दिखा दिया जाए. सही डायग्नोसिस किया जाए तो कैंसर को शुरूआती स्टेज में पकड़ा जा सकता है.
इलाजसबसे पहले एक अल्ट्रासाउंड टेस्ट किया जाता है, ये टेस्ट सस्ता और सुरक्षित है. इससे पता चल जाता है कि गांठ कहा है और पीलिया की वजह क्या है. जब पीलिया की वजह समझ आ जाती है तब CT SCAN, PET CT SCAN किया जाता है. इन सारे टेस्ट से बीमारी की स्टेज का पता चलता है. इन सभी टेस्ट में आधे घंटे से ज्यादा समय नहीं लगता है. इनमें किसी तरह का दर्द भी नहीं होता है. इनके कोई साइड इफेक्ट्स भी नहीं होते हैं.
जब स्टेज का पता चल जाता है तब आगे इलाज कैसे करना है, ये प्लान किया जाता है. गॉल ब्लैडर और बाइल डक्ट कैंसर का मुख्य इलाज सर्जरी है. जब गॉल ब्लैडर का कैंसर होता है तो उसके आसपास के अंगों पर भी असर पड़ता है. जैसे ये कैंसर लिवर और बाइल डक्ट के लिम्फ नोड में भी फ़ैल सकता है. सर्जरी में गॉल ब्लैडर से सटे लिवर के हिस्से और बाइल डक्ट के कुछ लिम्फ नोड को हटाते हैं.
इसके बाद इसके सैंपल को बायोप्सी के लिए भेजा जाता है. बायोप्सी की रिपोर्ट के हिसाब से निर्णय लिया जाता है कि मरीज को कीमोथेरेपी या रेडियोथेरेपी की ज़रूरत है या नहीं. आमतौर पर ये ऑपरेशन 2 से 3 घंटे चलता है और मरीज को 5 से 7 दिनों तक हॉस्पिटल में रहना पड़ता है. ऑपरेशन के 6 से 8 घंटे बाद मरीज चलने लग जाता है. 5 से 6 दिन में मरीज अपनी नॉर्मल डाइट पर आ जाता है. 2 हफ्ते में अपने काम-काज पर लौट सकता है.
मरीजों को कई बार कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी से डर लगता है. लेकिन अब टेक्नोलॉजी बेहतर हो गई है और ये थेरेपी अब काफी आराम से हो जाती हैं. इसके जो साइड इफेक्ट्स हैं, वो इलाज के 5 से 6 महीने में ठीक हो जाते हैं
गॉल ब्लैडर और बाइल डक्ट कैंसर के शुरुआती लक्षण जल्दी पकड़ में नहीं आते हैं. इसलिए जो लक्षण डॉक्टर साहब ने बताए हैं, अगर आप वो नोटिस करें तो जांच ज़रूर करवाएं.