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"दुखी होना ही है तो ज़्यादा खुश क्यों होना?", कुछ लोगों के ऐसा सोचने की वजह है चेरोफोबिया

कुछ लोगों को खुश होने से डर लगता है. वो सोचते हैं कि ज़्यादा खुश होंगे तो बाद में बहुत रोना पड़ेगा. ऐसा खुशी के भय की वजह से होता है, जिसे चेरोफोबिया कहते हैं.

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what is cherophobia its symptoms Causes and treatment
खुश होने से डरने को चेरोफोबिया कहते हैं.
22 मई 2024 (Updated: 22 मई 2024, 21:26 IST)
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क्या आपके साथ भी ऐसा होता है? आपके साथ कुछ बहुत अच्छा हुआ. आप सातवें आसमान पर हैं. या आप कहीं घूमने गए हैं. बहुत मज़ा आ रहा है. आप बहुत खुश हैं. तभी एक ख्याल मन में आता है. ख्याल ये कि अभी जो में इतना खुश हूं, हंस रहा हूं, इसके बाद ज़रूर इसकी सज़ा मुझे मिलेगी. अभी जितना खुश हूं, कुछ टाइम बाद उतना ही दुखी होना पड़ेगा. 

हमने बचपन से ऐसा सुना भी है. ''हां, हां अभी हंस लो. बाद में उतना ही रोना भी पड़ेगा." 

अब भला कौन है, जो खुश नहीं रहना चाहता? अपनों के साथ एन्जॉय नहीं करना चाहता? मज़ेदार और फन एक्टिविटीज़ नहीं करना चाहता? पर एक बार मन में ये वहम बैठ जाए न, तो ज़िंदगी भर नहीं जाता. ज़्यादा खुश होने से डर लगने लगता है. इंसान ख़ुशी से दूर भागने लगता है. ऐसी चीज़ें, लोग, इवेंट्स… जानबूझकर अवॉइड करने लगता है, जो उसे पता है ख़ुशी देंगे या जहां उसे अच्छा लगेगा.

आप अकेले नहीं हैं, जो ये महसूस करते हैं. इसे कहते हैं चेरोफोबिया (Cherophobia). इससे जूझ रहे इंसान को लगता है कि खुशी तो दो पल की मेहमान है. जब उसके बाद दुखी होना ही है तो ज़्यादा खुश क्यों होना… उल्टा जितना खुश होंगे, उतना ही बुरा भी होगा हमारे साथ. ऐसे विचारों के पीछे बहुत सॉलिड कारण हैं. इनकी जड़ें हमारे बचपन तक जाती हैं. आज इस सोच, इस डर, जिसे चेरोफोबिया कहते हैं, उस पर बहुत ही तफ़सील से बात करेंगे. एक्सपर्ट से जानेंगे कि चेरोफोबिया क्या है, यह क्यों होता है, इसके लक्षण क्या हैं और इसका इलाज कैसे किया जा सकता है.

चेरोफोबिया क्या होता है?

ये हमें बताया क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट राकिब अली ने. 

राकिब अली, कंसल्टेंट, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट, बीएलके-मैक्स हॉस्पिटल, फाउंडर CUBBE क्लिनिक्स

चेरोफोबिया यानी खुशी की भावनाओं के प्रति भय होना. हम कई दशकों से चर्चा करते आ रहे हैं कि खुशी यानी पॉज़िटिव इमोशंस कहीं ओवररेटेड तो नहीं है. कहीं हम लोगों को एक प्रेशर में तो नहीं डाल रहे? उन्हें खुश रहने के स्ट्रेस में तो नहीं डाल रहे हैं? ये डिस्कशन चल ही रहा था कि हमारी सोसायटी एक अलग तरह के भय से ग्रस्त होती दिखाई दे रही है जिसे हम चेरोफोबिया कहते हैं. चेरोफोबिया एक तरह का अवैज्ञानिक विश्वास है कि शायद हमें खुश नहीं रहना चाहिए या अगर हम खुश होंगे तो कहीं हमारे साथ कुछ बुरा न हो, परेशानी न आए. 

इसके लक्षण क्या हैं?

इसकी वजह से कई तरह के लक्षण देखने को मिल रहे हैं. जैसे उन संभावनाओं से दूर रहना जिनसे हमें सकारात्मक अनुभव मिल सकते हैं. जो जीवन में सकारात्मक बदलाव लेकर आ सकते हैं. या फिर इस तरह के व्यवहार से दूरी बनाना, जिससे खुशी मिलती हो. लोगों से मिलने-जुलने से बचना. लोगों से दोस्ती करने में दिक्कत आना. ऐसी गतिविधियों को भी अवॉइड करना जिसमें फन हो या जिसे दूसरे लोग फन मानते हों.

चेरोफोबिया बचपन के बुरे अनुभवों से जुड़ा हो सकता है
चेरोफोबिया के कारण क्या हैं?

पहला कारण बिलीफ सिस्टम है. यानी हमें ये विश्वास हो चुका है कि ख़ुशी की भावना से दूर रहना है. जैसे एक कॉमन बिलीफ ये है कि अगर हम ज़्यादा खुश होंगे तो दुख हमारा इंतज़ार कर रहा है. अगर हम ज़्यादा खुश होंगे तो लोग हम से जलेंगे. अगर हम ज़्यादा खुश होंगे तो आगे जाकर उदास होना पड़ेगा. फिर हम वो सह नहीं पाएंगे. इस तरह के विश्वास जन्म ले लेते हैं. ये विश्वास ज़्यादातर बचपन के अनुभवों से जुड़े हैं. खासकर बचपन के ट्रॉमेटिक अनुभवों से. उन बच्चों में जिन्हें खुश रहने के लिए सज़ा मिलती है. जैसे उन्हें बचपन में प्रताड़ित किया जाता है कि वो खुश क्यों हैं या उन्हें डरा दिया जाता है कि तुम इतना खुश क्यों हो. कहा जाता है कि अगर तुम ज़्यादा खुश होगे तो ये हो जाएगा. यानी बचपन में अगर इस तरह के विश्वास बच्चे में डाल दिए जाएं तो ये समस्या होती है. कुछ ऐसे कल्चर्स हैं, जहां खुशी की भावना को ज़्यादा जताने से मना किया जाता है. ये भी चेरोफोबिया का कारण बन सकते हैं.

दूसरा, जो लोग इंट्रोवर्ट होते हैं, वो ज़्यादातर भावनाओं से दूर रहते हैं. खासकर सकारात्मक भावनाओं से. उत्सुकता इंट्रोवर्ट्स को कहीं न कहीं परेशान कर सकती है. चेरोफोबिया उनमें ज़्यादा देखने को मिलता है. तीसरा, परफेक्शनिस्ट एटीट्यूड वाले लोगों में भी चेरोफोबिया ज़्यादा देखने को मिलता है क्योंकि एक बिलीफ सिस्टम ये रहता है कि अगर हम ऐसी एक्टिविटी करते हैं, जिसमें फन या सकारात्मक भावनाएं हैं. तो इसका मतलब है हम समय बर्बाद कर रहे हैं या फिर उत्पादक काम नहीं कर रहे हैं

खुशी मन की एक आंतरिक अवस्था है. एक व्यक्ति इसे अपने व्यवहार से नियंत्रित कर सकता है. कहीं न कहीं ऐसा देखा जा रहा है कि हम लोग ये मानने लगे हैं कि सकारात्मक भावनाएं क्षण भर की हैं या बहुत ही कम समय के लिए रहने वाली हैं. इसके बाद फिर से हम दुखी हो जाएंगे. भावनात्मक तौर पर ये बातें हमारे मन में आने लगी हैं. इसी वजह से हम सकारात्मक भावनाओं से दूर रहने की कोशिश कर रहे हैं.

चेरोफोबिया का इलाज क्या है?

अभी चेरोफोबिया को किसी डिसऑर्डर के तौर पर नहीं देखा जाता है. लेकिन कुछ मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट ये मानने लगे हैं कि इसे काफी तादाद में देखा जा रहा है. लिहाजा हस्तक्षेप करना ज़रूरी है. हम CBT का इस्तेमाल कर सकते हैं. CBT यानी कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी. ऐसा इसलिए क्योंकि CBT से हम इस विश्वास की वजह को खोज सकते हैं. उसे बदल सकते हैं. व्यक्ति के नए व्यवहार और नए विचारों को एक तरह से डेवलप कर सकते हैं. कुछ स्टडीज़ में पाया गया है कि चेरोफोबिया और डिप्रेशन का आपस में गहरा संबंध है. चेरोफोबिया का निगेटिव इमोशंस के डर से भी गहरा नाता है. कहीं न कहीं ये बहुत बड़ा पर्सनैलिटी रिस्क फैक्टर है. अगर ये हमको पता चल जाए तो हम हस्तक्षेप करके बाकी दूसरे डिसऑर्डर से अपने परिजनों को बचा सकते हैं.

डॉक्टर साहब की बातें सुनकर, आप में से कई लोगों को लगा होगा कि यहां आपकी ही बात हो रही है. अगर आपको ऐसा लगा है तो परेशान मत होइए. ऐसा महसूस करने वाले आप दुनिया में अकेले नहीं हैं. पर खुश रहने से डरने की ज़रूरत नहीं है. इन फीलिंग्स को प्रोफेशनल मदद से दूर किया जा सकता है.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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