चांदीपुरा वायरस के 75% मरीज जान गंवा देते हैं! भारत में बढ़ रहे मामले, कैसे बचें? डॉक्टर से सब जानिए
देश में अब तक चांदीपुरा वायरस (Chandipura Virus) के कई मामले सामने आ चुके हैं. बेहद खतरनाक इस वायरस के लक्षण क्या हैं? कहां ये ज्यादा फैलता है? कैसे इससे बचाव कर सकते हैं. डॉक्टर से सबकुछ जान लीजिए.
देश के चार राज्य एक वायरस की चपेट में हैं. वायरस का नाम है, चांदीपुरा वायरस (Chandipura Virus). यूनियन हेल्थ मिनिस्ट्री ने 1 अगस्त को बताया कि अब तक देश में इसके 51 कंफर्म्ड केसेस सामने आ चुके हैं. चांदीपुरा वायरस से सबसे ज़्यादा प्रभावित गुजरात है. फिर मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र हैं. ये वायरस बच्चों को अपना निशाना बनाता है.
दिक्कत ये है कि इस वायरस की पहचान करना बहुत मुश्किल है क्योंकि इसमें अलग-अलग बीमारियों के लक्षण दिखते हैं. जैसे इसका एक लक्षण है दिमाग में अंदरूनी सूजन आ जाना. जब दिमाग में अंदरूनी सूजन आ जाए तो इसे AES कहते हैं. यानी एक्यूट एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम. पिछले दो महीनों में, यानी जून और जुलाई में, AES के 148 मामले आए हैं. इनमें 59 मरीज़ों की मौत भी हो गई है.
सबसे ज़्यादा असर गुजरात के पंचमहल ज़िले पर पड़ा है. यहां 7 लोगों की मौत हुई है. इसके बाद अहमदाबाद है. जहां 6 लोगों ने अपनी जान गवाई है. हालांकि राहत की बात ये है कि बीते 10-15 दिनों से एक्यूट एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम के मामले, यानी एक तरह से चांदीपुरा वायरस के मामले कम हो रहे हैं. लेकिन, खतरा टला नहीं है. ऐसे में आज डॉक्टर से समझते हैं कि चांदीपुरा वायरस क्या है? ये अचानक गुजरात में क्यों फैल रहा है? इसके लक्षण क्या हैं? और, इससे बचाव और इलाज कैसे किया जाए?
चांदीपुरा वायरस क्या है?ये हमें बताया डॉ. सौरभ खन्ना ने.
चांदीपुरा वायरस एक RNA वायरस है. ये वेसिकुलोवायरस जीनस का एक हिस्सा है और Rhabdoviridae फैमिली का वायरस है. जैसे इन्फ़्लुएन्ज़ा वायरस और डेंगू वायरस भी RNA वायरस हैं. इसका नाम चांदीपुरा वायरस इसलिए पड़ा क्योंकि ये पहली बार साल 1965 में महाराष्ट्र के चांदीपुरा गांव में पाया गया था. चांदीपुरा वायरस सैंडफ्लाई नाम के कीड़े के काटने से होता है. हालांकि ये वायरस एडीज़ मच्छर (डेंगू के मच्छर) में भी पाया जाता है और एक इंसान से दूसरे में फैल सकता है. लेकिन, ज़्यादातर ये सैंडफ्लाई के काटने से ही होता है. चांदीपुरा वायरस सैंडफ्लाई की लार ग्रंथि में रहता है और यही इसका वाहक है.
ये अचानक गुजरात में क्यों फैल रहा है?गुजरात में अचानक चांदीपुरा वायरस फैलने के दो कारण हैं. पहला, गुजरात, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश ऐसे एंडेमिक ज़ोन्स हैं जहां ये वायरस पाया जाता है. एंडेमिक ज़ोन यानी जब किसी बीमारी का असर एक विशेष क्षेत्र तक ही हो. दूसरा, मानसून से पहले का वक़्त सैंडफ्लाई कीड़े के प्रजनन का समय होता है यानी इसकी संख्या बढ़ जाती है. इस कीड़े के बढ़ने की वजह मानसून में पानी इकट्ठा होना भी है.
लक्षण- चांदीपुरा वायरस के लक्षण ज़्यादातर 15 साल से छोटे बच्चों में पाए जाते हैं
- चांदीपुरा वायरस होने पर तेज़ बुखार आता है जो एकदम से चढ़ता है
- साथ ही, सिरदर्द होता है
- कन्फ्यूज़न होने लगता है
- उल्टियां आती हैं
- दस्त लग जाते हैं
- बहुत गंभीर स्थिति में मरीज़ कोमा में चला जाता है
- कभी-कभी मौत भी हो सकती है
बचाव और इलाजचांदीपुरा वायरस से निपटने के लिए कोई एंटीवायरल दवा उपलब्ध नहीं है. एंडेमिक ज़ोन में रहने वालों को इसके लक्षणों का खास ध्यान रखना होता है. जैसे अगर किसी बच्चे को अचानक से तेज़ बुखार चढ़ा हो, उसमें मेनिनजाइटिस (दिमाग, रीढ़ की हड्डी में सूजन) या एन्सेफलाइटिस के लक्षण हों तो ऐसे बच्चे को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराएं. ऐसे बच्चे का बुखार कम करने के लिए दवाइयां दी जाती हैं. पानी अच्छी मात्रा में दिया जाता है. दिमाग में सूजन की दवाइयां भी दी जाती हैं. इन तरीकों से इस वायरस का इलाज किया जाता है.
हालांकि इलाज के बाद भी इस वायरस से मरने वालों की दर बहुत ज़्यादा है. चांदीपुरा वायरस में लगभग 75% मरीज़ों के मरने की संभावना होती है. लिहाज़ा इसमें इलाज से ज़्यादा ज़रूरी बचाव है. बचाव दो तरह से किया जा सकता है. एक, पर्सनल प्रोटेक्शन यानी खुद का बचाव. दूसरा, कम्यूनिटी प्रोटेक्शन जिसमें सरकार काम करती है. कम्यूनिटी प्रोटेक्शन के तहत सरकार कीटनाशक छिड़कती है ताकि मच्छर न पनप सकें. कहीं पानी इकट्ठा हो रहा है तो उसे भरने से रोका जाता है.
इस वायरस से बचने के लिए पर्सनल प्रोटेक्शन की भी अहम भूमिका है. आप पूरी बांह के कपड़े पहनें. घर में हैं या बाहर जा रहे हैं तो मॉस्किटो रेपेलेंट लगाएं. मच्छरदानी का इस्तेमाल करें. अगर कहीं पानी भर रहा है तो उस जगह को साफ करें, वहां पानी न भरने दें.
चांदीपुरा वायरस एक सीमित एरिया में ही फैल रहा है. तो, अगर आप इस एरिया से बाहर रहते हैं, तब आपको ज़्यादा चिंता करने की ज़रूरत नहीं है. लेकिन, सतर्क रहना बेहद ज़रूरी है. इसलिए लक्षणों पर ज़रूर ध्यान दें. और अगर आप इस एरिया के अंदर ही रहते हैं. तब अपना खास ख्याल रखें. और, वो सारी टिप्स अपनाएं, जो डॉक्टर साहब ने बताई हैं.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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