सुप्रीम कोर्ट का फैसला : अगर लिव-इन में हैं, तो भी पैदा हुए बच्चे को प्रॉपर्टी में हिस्सा मिलेगा
केरल के मामले पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा - "कानून शादी का पक्ष मानता है"

Supreme Court ने सोमवार, 13 जून को एक प्रॉपर्टी विवाद केस फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि अगर एक जोड़ा लंबे समय से साथ रह रहा है तो क़ानून उन्हें शादीशुदा मानता है और उनकी संतान को भी पैतृक संपत्ति में हिस्सा दिया जा सकता है. ये फैसला जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और विक्रम नाथ की बेंच ने सुनाया. बेंच ने कहा,
Property Dispute का मामला क्या है?“क़ानून शादी के पक्ष में है.”
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक़, मामला है केरल के एक परिवार के प्रॉपर्टी विवाद का. परिवार में चार बेटे. दामोदरन, अचुतन, शेखरन और नारायन. पारिवारिक संपत्ति पर चार बेटों और उनके उत्तराधिकारियों का अधिकार था. जैसा कि होता है. लेकिन यहां एक अलग पेच था. बेटों में से एक (दामोदरन) सालों से एक महिला के साथ रह रहा था और उन दोनों का एक बेटा भी था. बेटे का नाम कत्तूकंडी इदाथिल कृष्णन. असल में अदालत के सामने यही सवाल था कि क्या इस बेटे को संपत्ति में अधिकार मिलेगा या नहीं? क्योंकि दामोदरन लिव इन में था, शादी नहीं की थी.
विपक्षियों यानी बाक़ी भाइयों का तर्क ये था कि जोड़े की शादी नहीं हुई है. तो इस संबंध के कृष्णन को संपत्ति का हक़दार नहीं माना जाना चाहिए.
मामला पहुंचा कोर्ट में. ट्रायल कोर्ट ने जोड़े (दामोदरन और चिरुथाकुट्टी) के पक्ष में फ़ैसला सुनाया. माना कि वो दोनों लंबे समय से साथ रह रहे हैं और इसलिए उनकी शादी हो चुकी है.
फिर गया मामला हाई कोर्ट में. 2009 में केरल हाई कोर्ट ने कृष्णन को संपत्ति में हिस्सा देने से इंकार कर दिया. ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया. कहा कि दस्तावेज़ों से सिर्फ़ ये साबित होता है कि कृष्णन दामोदरन का पुत्र है. और चूंकि, ये शादी वैध नहीं है, इसलिए कृष्णन वैध पुत्र भी नहीं है.
फिर मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट.
सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाई कोर्ट के फ़ैसले को रद्द कर दिया और ट्रायल कोर्ट के ही फ़ैसले को बरक़रार रखा. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि बंटवारे का मुक़दमा दायर करने से 50 साल पहले हुई शादी के दस्तावेज़ पेश करना लगभग असंभव है. साथ ही कोर्ट ने ऑब्ज़र्व किया कि इस बात के सबूत थे कि दामोदरन ने चिरुथाकुट्टी को समय-समय पर भुगतान किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय एविडेंस ऐक्ट की धारा 114 का हवाला देते हुए कहा,
"अगर एक पुरुष और महिला के रूप में लंबे समय तक एक साथ रहते हैं, तो अवधारणा विवाह के पक्ष में होगी. हालांकि, इस अवधारणा का खंडन हो सकता है, लेकिन जो उस रिश्ते को नकारता है उसे ही साबित करना होगा कि उनकी शादी मान्य क्यों नहीं है."
अदालत ने अपने पिछले फैसलों के हवाले से कहा कि कानून हमेशा विवाह के पक्ष में होगा.