वो बैंक जहां औरतें अपने स्तन का दूध दान करती हैं
इस मदर मिल्क बैंक का मकसद ऐसे नवजातों तक मां का दूध पहुंचाना है जिनकी मांओं को दूध नहीं आता.

बच्चा पैदा होने के बाद दूध आना महिलाओं के शरीर की एक सामान्य प्रक्रिया है. लेकिन कमज़ोरी या स्वास्थ्य से जुड़ी दूसरी समस्याओं के चलते कई बार कुछ महिलाओं के स्तन में दूध नहीं बनता. ऐसी मांओं के बच्चों के लिए राजस्थान के उदयपुर में एक Mother Milk Bank है. यहां महिलाएं आती हैं, अपना दूध दान करती हैं. दान किया गया ये दूध ऐसे नवजातों को भी पिलाया जाता है जिनकी मां नहीं होती. इस मदर मिल्क बैंक में दूध दान करने के बदले महिलाएं रुपये नहीं लेतीं, न ही यहां से दूध लेने वालों को इसके लिए कोई पैसा देना पड़ता है.
उदयपुर स्थित दिव्या मदर मिल्क बैंक के डॉक्टर बी.एल मेघवाल कहते हैं कि कई ऐसे बच्चे हैं जिनकी मां को दूध नहीं बनता है. दूसरी ओर कई ऐसी मांएं हैं जिन्हें ज़रूरत से ज़्यादा दू़ध बनता है. इन दोनों को कनेक्ट करने का काम कॉम्प्रिहेंसिव लैक्टेशन सेंटर यानी दिव्या मदर मिल्क बैंक करता है.
डॉक्टर मेघवाल बताते हैं,
कौन करता है दूध का दान?“जो बच्चे समय से पहले पैदा हो जाते हैं उनकी मां को दूध ही नहीं आता है. इन बच्चों की आंत ठीक से डेवलप नहीं हुई होती है. ये बच्चे फॉर्मुला फीड पचा नहीं पाते हैं. कुछ ऐसे बच्चे भी होते हैं जिनकी मां नहीं होती या जिन्हें छोड़ दिया जाता है. दूसरी तरफ वो महिलाएं हैं जिन्हें ज़रूरत से ज़्यादा दूध बन रहा है. मदर मिल्क बैंक इन दोनों को आपस में जोड़ने का काम करता है.”
यहां तीन तरह की महिलाएं दूध दान करती हैं.
- अपनी इच्छा से दूध दान करने वाली महिलाएं.
- वो महिलाएं जिनके बच्चे किसी कारण उनका दूध नहीं पी पाते हैं. अगर इनका दूध नहीं निकाला गया तो इन मांओ को स्तन में भारी दर्द होता है.
- वो मांएं जिनके बच्चे स्तन से सीधे दूध नहीं पी पाते हैं, उन्हें चम्मच या पाइप से दूध पिलाना पड़ता है. ऐसी मांएं भी यहां आकर मशीन से अपना दूध निकालती हैं. इसके बाद वो थोड़ा दूध अपने बच्चे के लिए रखती हैं और थोड़ा दान कर देती हैं.
कैसे रखा जाता है ये दूधदूध निकालने के बाद उसे -20 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर रखा जाता है. माने एकदम ठंडा. इसके बाद इस दूध का सैंपल लैब में भेजा जाता है. जहां एचआईवी/एचबीएसएजी/डब्लूबीआरएल जांच की जाती है. सभी रिर्पोट्स सही आने के बाद ही इस रॉ-दूध को बच्चों को पिलाने लायक माना जाता है और अस्पतालों में भेजा जाता है. ये दूध छह महीने तक खराब नहीं होता है.

संजू जाट बताती हैं कि उनका बच्चा सातवे महीने में ही पैदा हो गया था. वे बताती हैं
"शुरूआती दिनों में मेरे बच्चे को मशीन में रखा गया था. इसके चलते मैं अपने बच्चे को दूध नहीं पिला पा रहीं थी. जब मुझे पता चला कि मदर मिल्क बैंक में मैं मशीन से अपना दूध निकालकर अपने बच्चे को पिलाने के साथ-साथ किसी दूसरे बच्चे के लिए भी दे सकती हूं, तो मैं तुरंत यहां आ गई. यहां मौजूद मशीन ठीक उसी तरह दूध खींचती है जैसे एक बच्चा खींचता है. मैं ज़रूरत के अनुसार अपने बच्चे के लिए दूध ले जाती हूं और थोड़ा दूध किसी ज़रूरतमंद बच्चे के लिए दान देती हूं."
वहीं, संध्या बताती हैं,
"मेरा दूध ज़्यादा बन रहा था जिसके चलते छाती भारी लगती थी. इससे मुझे बहुत तकलीफ हो रही थी. फिर मुझे दिव्या मदर मिल्क बैंक के बारे में पता चला. मै यहां आकर अपना दूध दान देने लगी."
राकेश मीणा खुद एक डॉक्टर हैं. राकेश इस मदर मिल्क बैंक से अपनी बहन के बच्चे के लिए दूध ले जाते हैं. वो कहते हैं,
“मेरी बहन को दूध नहीं बन पा रहा है इसलिए मैं यहां से उसके बच्चे के लिए दूध ले जा रहा हूं. बेबी फीडिंग के लिए ये एक बहुत ही अच्छा कदम है. मैं और भी महिलाओं से ये गुजारिश करता हूं कि वे भी यहां आएं और अपना दूध दान करें. जो मां यहां अपना दूध दान करती हैं मैं दिल से उन्हें शु्क्रिया बोलना चाहता हूं.”
आमतौर पर छोटे शहरों में इस तरह का कोई मिल्क बैंक नहीं होता है. वहां जिन औरतों का ज़्यादा दूध बनता है उन्हें अपने हाथों से अपना एक्स्ट्रा दूध निकाल कर फेंकना पड़ता है. डॉक्टर्स बताते हैं कि मां का दूध एक बच्चे की ग्रोथ के लिए सबसे ज़रूरी आहार है. जन्म से छह महीने तक डॉक्टर्स बच्चे को केवल मदर मिल्क पिलाने का सुझाव देते हैं. ऐसे में इस तरह के मदर मिल्क बैंक ऐसी कई बच्चों के लिए जीवनदान हो सकते हैं जिनकी मां नहीं होती या फिर जिनकी मां को दूध नहीं आता.
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