दिल्ली पुलिस की साइबर क्राइम यूनिट. शॉर्ट में CyPAD. ये सोशल मीडिया, इंटरनेट से जुड़े क्राइम से डील करती है. इस यूनिट ने नवंबर 2019 में एक ऑपरेशन लॉन्च किया था. नाम था ऑपरेशन ‘मासूम’. मकसद था इंटरनेट पर वायरल होने वाले ऐसे सेक्शुअल कॉन्टेंट के खिलाफ कार्रवाई करना, जिसमें बच्चों का शोषण हुआ हो. एक शब्द में कहें तो चाइल्ड पॉर्नोग्रफी के खिलाफ एक्शन लेना. करीब एक साल से ज्यादा वक्त से ये ऑपरेशन एक्टिव है. अभी खबरों में है क्योंकि ‘मासूम’ के तहत कार्रवाई करते हुए दिल्ली पुलिस ने हाल ही में 18 आरोपियों की गिरफ्तारी की है. ये गिरफ्तारी नए साल यानी जनवरी 2021 में ही हुई है.
ऑपरेशन ‘मासूम’ के तहत कौन-कौन गिरफ्तार हुआ?
18 में से जो पांच गिरफ्तारियां सबसे पहले हुईं, उनकी जानकारी हमारे पास हैं. उन पांच आरोपियों के नाम हैं- राम बाबू कुमार, देवेंद्र, अब्दुल रहमान, मोहम्मद उमर आलम और संतोष कुमार. पांचों पर चाइल्ड पॉर्नोग्रफिक कॉन्टेंट का इस्तेमाल करने और वायरल करने के आरोप लगे हैं. पूछताछ में पता चला कि इन आरोपियों को अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से ये कॉन्टेंट मिले थे, यहां तक कि वॉट्सऐप के ज़रिए भी इन्होंने ऐसे कॉन्टेंट हासिल किए थे, जिन्हें इन्होंने बाद में दूसरे प्लेटफॉर्म्स पर अपलोड किया या दूसरे व्यक्तियों को पर्सनली फॉरवर्ड किया.
#OperationMASOOM will continue to look for such online predators and bring them to justice.
— DCP Cybercrime (@DCP_CCC_Delhi) January 4, 2021
पांचों आरोपी व्यक्ति अलग-अलग आर्थिक वर्गों से आते हैं. उनके एजुकेशन का स्तर भी अलग-अलग है. पांचों आरोपियों को पॉक्सो और आईटी एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत गिरफ्तार करके जूडिशियल कस्टडी में भेज दिया गया है. इनके द्वारा इस्तेमाल की गई डिवाइस और सिम कार्ड्स को भी सीज़ किया गया है.
ऐसा नहीं है कि ऑपरेशन ‘मासूम’ के तहत केवल यही 18 गिरफ्तारियां हुई हों. साल 2019 से 2020 में चाइल्ड पॉर्नोग्रफिक मटेरियल पोस्ट करने और वायरल करने के आरोप में 26 गिरफ्तारियां की गई थीं.
अब बात ऑपरेशन ‘मासूम’ की
दिल्ली पुलिस की साइबर क्राइम यूनिट का ऑपरेशन ‘मासूम’ आखिर है क्या, कैसे काम करता है, जानकारी कहां से मिलती है, डाटा कहां से मिलते हैं, ये सब जानना ज़रूरी है. इन सवालों के जवाब पाने के लिए हमने बात की साइबर क्राइम DCP अनयेश रॉय से. उन्होंने बताया कि ऑपरेशन MASOOM के नाम में ही मकसद छिपा हुआ है. इसका पूरा नाम है- मिटिगेशन ऑफ एडॉलसेंट सेक्शुअली ऑफेंसिव ऑनलाइन मटेरियल. यानी बच्चों और किशोरों के यौन शोषण से जुड़े आपत्तिजनक मटेरियल, जो ऑनलाइन मौजूद हैं, उनका हल करना. बच्चों से जुड़े इस तरह के कॉन्टेंट को चाइल्ड सेक्शुअल अब्यूज़ मटेरियल (CSAM) कहा जाता है. ऐसे ही मटेरियल को कुछ लोग चाइल्ड पॉर्नोग्राफी के तौर पर देखते हैं.
DCP अनयेश रॉय ने बताया, एक US बेस्ड नॉन-प्रोफिट ऑर्गेजनाइज़ेशन है. नाम है NCMEC (निकमेक). पूरा नाम है- नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लॉइटेड चिल्ड्रन. ये ऑर्गेजनाइज़ेशन गायब हुए और शोषित हुए बच्चों के लिए काम करता है. इसके साथ भारत सरकार की NCRB यानी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो एजेंसी का एक एग्रीमेंट हुआ था 2019 में. इस एग्रीमेंट के तहत NCMEC को चाइल्ड पॉर्नोग्राफी से जुड़े आंकड़े NCRB से शेयर करने होते हैं. इन्हीं आंकड़ों पर फिर ऑपरेशन मासूम के तहत दिल्ली पुलिस की साइबर क्राइम टीम काम करती है.
कैसे जनरेट होते हैं चाइल्ड पॉर्नोग्रफी के आंकड़े?
DCP ने बताया कि दुनियाभर के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, जैसे- फेसबुक, इंस्टाग्राम, वॉट्सऐप वगैरह CSAM पर नज़र रखते हैं. कौन ऐसा कॉन्टेंट कहां अपलोड कर रहा है, इसकी एक रिपोर्ट बनाकर NCMEC को दी जाती है. ये रिपोर्ट NCMEC फिर NCRB से शेयर करता है. फिर इन आंकड़ों का विश्लेषण करके एक्शन लिया जाता है. DCP ने आगे बताया कि जो डेटा उन्हें मिलता है, ज़रूरी नहीं कि वो सभी के सभी चाइल्ड पॉर्नोग्रफी से जुड़े हों, उनमें से कुछ ऐसे होते हैं, जिनके कॉन्टेंट पॉर्नोग्रफिक नहीं होते. लेकिन फिर भी सोशल मीडिया की एल्गोरिद्म के हिसाब से फिट नहीं बैठते, इसलिए उन्हें रिपोर्ट कर दिया जाता है. खैर, जो मामले दिल्ली पुलिस की साइबर क्राइम यूनिट को CSAM से जुड़े लगते हैं, उन पर कार्रवाई होती है.

किस तरह के मटेरियल फॉरवर्ड किए जाते हैं
अभी तक साइबर क्राइम यूनिट ने जिन मामलों में एक्शन लिया है, उसके आधार पर DCP का कहना है,
“ज्यादातर मामलों में रेप वाले वीडियो नहीं मिले हैं. अधिकतर बच्चों के प्राइवेट पार्ट्स के विज़ुअल्स डाले गए होते हैं. जब हम मामलों की जांच करते हैं, तो हमारी कोशिश यही होती है कि इन मटेरियल के सोर्स का पता लगाया जा सके. लेकिन ज्यादातर वीडियो का ओरिजीन भारत के बाहर का होता है. दुर्भाग्य से वीडियो के ओरिजीन का मेटा-डाटा उपलब्ध नहीं होता है. जो डाटा हमारे पास मौजूद होता है, वो ज्यादातर अपलोडर का होता है. क्रिएटर का नहीं होता. अगर क्रिएटर का मेटा-डाटा उपलब्ध होता, तो शायद हम उसकी जांच कर सकते थे. तो हम अपलोडर से ही पूछताछ करते हैं. क्योंकि इस तरह की चीज़ें कई बार फॉरवर्ड होकर इंडियन यूजर्स तक पहुंचती हैं. हम लोग इन सभी मामलों में क्रिएटर तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं, अभी भी जांच चल ही रही है, लेकिन हम अभी तक उन लोगों तक पहुंचने में सफल नहीं हुए हैं.”
DCP बताते हैं कि ऑपरेशन मासूम के तहत अभी तक जो भी मामले उनके पास आए हैं, वो भारतीय बच्चों से जुड़े हुए नहीं हैं. कुछ मामले आए ज़रूर थे, लेकिन उनका कॉन्टेंट CSAM वाला नहीं था. इसके अलावा DCP ने बताया कि और भी कई माामले अभी जांच के दायरे में हैं, जिन पर जल्दी एक्शन लिया जाएगा.
चाइल्ड पॉर्नोग्रफी के आंकड़े दुखी करते हैं
एक लीगल न्यूज़ वेबसाइट है- ज्यूरिस्ट (JURIST). इसमें दुनिया के कई नामी लॉ स्कूलों के स्टूडेंट और कानून विशेषज्ञ अपनी रिपोर्ट्स लिखते हैं. मई 2020 में इसमें छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1998 में दुनियाभर में चाइल्ड पॉर्नोग्रफी वाली वेबसाइट्स के खिलाफ करीब 3,000 मामले दर्ज किए गए थे. महज़ एक दशक बाद ऐसे मामलों की संख्या एक लाख तक पहुंच गई. और फिर साल 2014 में ये संख्या एक मिलियन यानी 10 लाख के आंकड़े को पार कर गई. साल 2019 में तो दुनिया भर में चाइल्ड पॉर्नोग्राफी के करीब 18.4 मिलियन यानी एक करोड़ 84 लाख मामले सामने आए थे.
2020 में ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ की एक रिपोर्ट आई थी. इसमें बताया गया था कि दुनिया की सबसे ज्यादा देखी जाने वाली पॉर्न साइट्स में से एक ‘पॉर्न हब’ पर बच्चों के सेक्शुअल असॉल्ट और रेप के वीडियो चल रहे हैं. कई वीडियो नस्लभेदी थे, हिंसक थे. उन वीडियो में दिख रहे लोगों, जिनमें अधिकतर महिलाएं थीं, उनकी सहमति के बगैर वीडियो शूट किया गया था. जैसे स्पाई कैमरे से शावर में नहाती लड़कियों के वीडियो, या फिर महिलाओं का दम घोंटते हुए वीडियो. अभी तक पॉर्न हब पर ऐसे वीडियोज़ को रिपोर्ट करने पर उन्हें हटा दिया जाता था. लेकिन अपलोड करने पर कोई रोक नहीं थी. लेकिन ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ की रिपोर्ट के बाद प्रमुख पेमेंट कार्ड कम्पनियों ने पॉर्न हब पर अपने कार्ड से पेमेंट की सुविधा हटा दी. इसके बाद पॉर्नहब को तकरीबन 90 लाख वीडियो अपनी साइट से हटाने पड़े थे.

भारत का हाल भी जान लीजिए-
‘नेशनल सेंटर फॉर सेक्शुअल अब्यूज़’ के आंकड़ों के मुताबिक, चाइल्ड पॉर्नोग्राफी सबसे तेज़ी से बढ़ते ऑनलाइन व्यवसायों में से एक है. और भारत इस मार्केट का बड़ा हिस्सा है. पॉर्नोग्रफिक मटेरियल पर कई तरह की पाबंदियां लगाने के बाद भी भारत चाइल्ड पॉर्नोग्रफी को जनरेट करने और इसका इस्तेमाल करने में काफी आगे है. सितंबर 2017 में साइबर एक्सपर्ट्स ने मेल टुडे को बताया था कि भारत में हर 40 मिनट में एक पॉर्नोग्रफिक वीडियो बनता है. और ऐसे कॉन्टेंट को अपलोड करने में केरल तब सबसे आगे था, और ऐसे कॉन्टेंट को देखने वालों में हरियाणा टॉप पर था. 2017 की इस रिपोर्ट के मुताबिक, वेब पर अपलोड किए गए कुल पॉर्न का 35 से 38 प्रतिशत हिस्सा बच्चों या किशोरों से संबंधित था. ‘स्कूल गर्ल्स’, ‘टीन्स’ और ‘देसी गर्ल्स’ ऐसे कीवर्ड्स इन चाइल्ड सेक्शुअल अब्यूज़ मटेरियल (CSAM) तक पहुंचाते हैं.
2017 में इंडियन साइबर आर्मी (ICA) के डायरेक्टर ने बताया था कि चाइल्ड पॉर्नोग्रफी कॉन्टेंट तेज़ी से बढ़ रहा है. कोई सटीक आंकड़े तो नहीं हैं, लेकिन ICA ने तब अपनी छानबीन में पाया था कि सर्च इंजन्स में रोज़ाना करीब एक लाख 16 हज़ार सर्चेज़ चाइल्ड पॉर्नोग्रफी से जुड़ी होती हैं. अगर इनका औसत निकाला जाए तो हर एक सेकंड में 380 लोग इंटरनेट पर ‘अडल्ट’ कंटेंट खोज रहे होते हैं.
जनवरी 2020 में NCMEC ने NCRB से एक डाटा शेयर किया था. बताया था कि पांच महीनों के अंदर भारत में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर 25 हज़ार चाइल्ड पॉर्नोग्राफिक मटेरियल अपलोड किए गए थे. इस साल अप्रैल में, जब देश में कोरोना वायरस की वजह से लॉकडाउन लगा हुआ था, तब तो चाइल्ड पॉर्नोग्राफी की डिमांड और भी ज्यादा बढ़ी थी. ये बात ICPF (इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड) ने अपनी एक रिपोर्ट में बताई थी. ICPF की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में लॉकडाउन लगने के बाद चाइल्ड पॉर्नोग्राफी का कंज़म्प्शन 95 फीसद तक बढ़ा था. ‘चाइल्ड पॉर्न’, ‘सेक्सी चाइल्ड’ और ‘टीन सेक्स वीडियोज़’ जैसे कीवर्ड्स के सर्च किए गए थे.
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