यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.
विनोद. लल्लनटॉप के काफ़ी पुराने व्यूअर हैं. 30 साल के हैं. इंदौर के रहने वाले हैं. विनोद बताते हैं कि उनकी शादी को आठ साल हो गए. सात साल से वो और उनकी पत्नी बच्चे के लिए ट्राय कर रहे हैं. पर क़ामयाब नहीं हो रहे. रिश्तेदारों ने अलग-अलग तरह की सलाह दी. पर ये सलाह कम और तंज ज़्यादा थे. घरवालों की ज़िद के चलते विनोद को कई नीम-हकीमों के चक्कर भी लगाने पड़े. उनके बताए गए नुस्खों से फ़ायदा तो कोई नहीं हुआ, उल्टा चूरन और गोलियों से नुकसान अलग हो गया. उनकी पत्नी के भी तमाम तरह के टेस्ट्स हुए, और सारी रिपोर्ट्स नॉर्मल आई. लेकिन, शर्मिंदगी की वजह से विनोद डॉक्टर के पास नहीं जा रहे थे.

किसी कपल का बच्चा न हो पाना विशुद्ध रूप से एक मेडिकल समस्या है. लेकिन परिवार और समाज के लोग इसे अलग-अलग तरह के स्टिग्मा से जोड़ देते हैं. पुरुष अपनी पत्नी को प्रेग्नेंट न कर पाए तो उसे नपुंसक, नामर्द जैसे टैग दे दिए जाते हैं. उन्हें नीचा दिखाया जाता है. नतीजा? इंसान कुंठित हो जाता है. इसलिए ज़रूरी है कि लोग मेल इनफर्टिलिटी के बारे में समझें. तो हम बात करते हैं कुछ ऐसे मेडिकल कारणों की जो मेल इनफर्टिलिटी के लिए ज़िम्मेदार होते हैं.
जब हमने डॉक्टर्स से बात कि तो हमें तीन मुख्य कंडीशंस के बारे में पता चला.
– पहली इरेक्टाइल डिसफंक्शन. अगर आपने आयुष्मान खुराना की फ़िल्म शुभ मंगल सावधान देखी है तो आपको इसके बारे में थोड़ा आईडिया होगा.
– दूसरी कंडीशन है वैरीकोसील.
– और तीसरी कंडीशन है. लो स्पर्म काउंट. यानी कम शुक्राणु होना.
अब ये तीनों कंडीशंस क्या होती हैं. क्यों होती हैं? इनका इलाज क्या है? जानते हैं एक्सपर्ट्स से. इनके बारे में हमें बताया डॉक्टर अनुराग ने.

इरेक्टाइल डिसफंक्शन
पुरुषों के लिंग में तनाव की कमी को इरेक्टाइल डिसफंक्शन कहा जाता है. तनाव आने के लिए ज़रूरी है कि पुरुष उत्तेजित हो. उसके लिंग में रक्त का बहाव बढ़े. ये नर्व्स के द्वारा ब्रेन से कंट्रोल होता है. अगर इन तीनों में यानी रक्त के बहाव, नर्व्स या ब्रेन में कोई भी समस्या आ जाए तो इरेक्टाइल डिसफंक्शन हो सकता है. ऐसा ज़्यादातर आम बीमारियों जैसे डायबिटीज़, हाइपरटेंशन और स्पाइनल कॉर्ड (रीढ़ की हड्डी) की इंजरी में होता है.
साइकोजेनिक इरेक्टाइल डिसफंक्शन एक और आम प्रकार का इरेक्टाइल डिसफंक्शन होता है. इसमें शरीर में कोई भी समस्या नहीं होती. पर पुरुष को परफॉरमेंस एंग्जायटी हो जाती है, उसका मनोबल टूट जाता है और नतीजा इरेक्टाइल डिसफंक्शन होता है.
पुरुष किसी भी कारण से सेक्स करने में विफ़ल होने के कारण अपना आत्मविश्वास खो देता है
-इरेक्टाइल डिसफंक्शन के लक्षण हैं लिंग में तनाव की कमी.
– सभी पुरुषों को थोड़े-बहुत मॉर्निंग इरेक्शन होते हैं, अगर ये नहीं हो रहे हैं तो भी ये इरेक्टाइल डिसफंक्शन का लक्षण हो सकता है.
-इरेक्टाइल डिसफंक्शन के कारण जानने के लिए कुछ टेस्ट किए जाते हैं. इनमें ब्लड की टेस्टिंग, हॉर्मोन की टेस्टिंग और कभी-कभार अल्ट्रासाउंड की ज़रूरत पड़ती है
-सबसे ज़रूरी है मरीज़ की काउंसलिंग
-दूसरा है PDE5 इन्हिबिटर (PDE5 Inhibitor) नाम की दवाइयां जिन्हें वियाग्रा नाम से जाना जाता है. बहुत ज़रूरी है कि ये दवाइयां केवल एक क्वालिफाइड डॉक्टर की सलाह पर ही ली जाएं. अगर आप ये दवा बिना किसी एक्सपर्ट की सलाह के लेंगे तो आपको नुकसान हो सकता है.
वैरीकोसील
-शरीर में दो प्रकार की नसें होती हैं. एक वो जो खून को हार्ट से दूसरे अंगों की तरफ लेकर जाती हैं. और दूसरी वो जो शरीर के दूसरे अंगों से खून को हार्ट की तरफ लेकर जाती हैं. अंडकोष के चारों तरफ़ स्परमैटिक वेंस (Spermatic Veins) नाम की नसें होती हैं. इन नसों के अगर गुच्छे बन जाएं या वो फूल जाएं तो उन्हें वैरीकोसील कहते हैं.
-स्परमैटिक वेंस में छोटे-छोटे वॉल्व होते हैं जो खून को दिल की तरफ़ ले जाने में मदद करते हैं. ये वॉल्व अगर खराब हो जाएं तो वहां पर खून बढ़ने लगता है, इकट्ठा होने लगता, नसें फूल जाती हैं और उनके गुच्छे बन जाते हैं.
-लक्षण हैं अंडकोष में दर्द, अंडकोष छोटा हो जाना, नसों के गुच्छों का फील होना और शुक्राणु (स्पर्म) के विकास में कमी, जिसके कारण इनफर्टिलिटी या बच्चे पैदा होने में दिक्कत हो सकती है.
-वैरीकोसील का कामयाब ट्रीटमेंट केवल सर्जरी है

-माइक्रोस्कोपिक वैरीकॉसेलेक्टॉमी (Microscopic Varicocelectomy)नाम की सर्जरी एक बहुत ही कामयाब सर्जरी मानी जाती है. इसमें स्क्रोटम यानी अंडकोष की थैली के ऊपर छोटा सा चीरा लगाया जाता है. जो फूली हुई नसें हैं उनको निकालकर बांध दिया जाता है. दूरबीन द्वारा अच्छी नसों को बचाया जाता है. इस ऑपरेशन के बाद 24 घंटे के अंदर ही मरीज़ घर जा सकता है.
लो स्पर्म काउंट
-अगर सीमन यानी वीर्य में स्पर्म (शुक्राणु) के काउंट 15 मिलियन प्रति मिलिलीटर यानी डेढ़ करोड़ प्रति मिलिलीटर से कम हैं तो इसे लो स्पर्म काउंट कहा जाता है
-लो स्पर्म काउंट क्यों होता है, ये जानने के लिए ज़रूरी है कि हम ये जानें कि स्पर्म कैसे बनते हैं. अंडकोष शरीर में स्पर्म का प्रोडक्शन हाउस है. यहीं स्पर्म बनते हैं. ब्रेन से निकलते हुए हॉर्मोन FSH LH और अंडकोष में बनने वाला हॉर्मोन टेस्टोस्टेरॉन स्पर्म को बनाने का काम करते हैं. अगर इन हॉर्मोन्स में कमी हो जो जाए या अंडकोष में कोई दिक्कत हो जाए तो लो स्पर्म काउंट होता है
-कभी-कभार स्पर्म तो ठीक बनते हैं लेकिन बाहर नहीं निकल पाते, उनके ट्रांसपोर्ट में प्रॉब्लम हो तो लो स्पर्म काउंट हो सकता है
-पार्टनर का प्रेग्नेंट न हो पाना इसके लक्षण हैं.

-लो स्पर्म काउंट का इलाज उसके कारण के ऊपर निर्भर करता है
-अगर हॉर्मोन्स में इम्बैलेंस हैं तो उसे ठीक करने के लिए सप्लीमेंट दिया जाता है
-अगर अंडकोष के लेवल पर प्रॉब्लम है, वैरीकोसील है, तो ऑपरेशन किया जाता है
-अगर ट्रांसपोर्ट में प्रॉब्लम है, स्पर्म बाहर नहीं आ पा रहे हैं तो पीसा (PISA) और टीसा (TESA)नाम की टेक्नीक से स्पर्म को निकालकर अंडे से मिलाया जाता है और उन्हें महिला के गर्भ में डालते हैं. फिर इक्सी (ICSI)नाम की टेक्नीक से IVF के जरिए बच्चे को पैदा करने में मदद करते हैं.
जो लोग इन कंडीशंस से ग्रसित हैं, उम्मीद है डॉक्टर साहब की बताई गई बातें उनके काफ़ी काम आएंगी. और बाकी लोगों को ये समझ में आएगा कि मेल इनफर्टिलिटी किसी को नीचा दिखाने या मज़ाक उड़ाने वाली बात हरगिज़ नहीं है.
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