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केरल हाईकोर्ट ने दहेज पर जो कहा है उसे सुनकर सिर पकड़ लेंगे!

गिफ्ट और दहेज में अंतर क्या है?

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केरल हाई कोर्ट का ये फ़ैसला बहुत चर्चा में है
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16 दिसंबर 2021 (Updated: 16 दिसंबर 2021, 14:35 IST)
Updated: 16 दिसंबर 2021 14:35 IST
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बेटी की शादी में अपनी खुशी से दिया जाने वाला गिफ्ट दहेज नहीं है. ये कहना है केरल हाई कोर्ट का. एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि शादी में दिए जाने वाले उपहार दुल्हन के लिए होते हैं. और उन्हें दहेज निषेध कानून के तहत दहेज के रूप में नहीं गिना जाएगा. जस्टिस एमआर अनीता ने कहा,
"शादी के समय दुल्हन को बिना किसी मांग के दिए जाने वाले उपहार, जो इस अधिनियम के तहत बनाई गई सूची में दर्ज किए गए हैं, दहेज निषेध एक्ट की धारा 3-(1) के दायरे में नहीं आएंगे.”
किस मामले पर लगाई गई थी याचिका? 2020 में दीप्ति केएस नाम की एक महिला ने हिंदू रीति-रिवाज से एक व्यक्ति से शादी की. कुछ समय बाद उनके रिश्ते में खटास आ गई. महिला ने आरोप लगाया कि शादी के समय दहेज में उसे जो गहने दिए गए थे, वो गहने एक बैंक के लॉकर में रखवाए गए थे. और उसे वो गहने नहीं दिए गए. दीप्ति ने अपने गहने वापस पाने के लिए दहेज निषेध अधिकारी से गुहार लगाई. याचिका दायर कर की और अपने पति खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की. दीप्ति ने मांग की कि उसे सभी उपहार वापस कर दिए जाएं. दहेज निषेध अधिकारी ने दीप्ति के पति को निर्देश दिया कि वह गहने लौटा दे. इसके खिलाफ दीप्ति के पति ने केरल हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी.  दीप्ति के परिवार ने सभी गहने कपल के नाम एक बैंक लॉकर में जमा कर दिए. यह भी बताया कि लॉकर की चाभी भी दीप्ति के पास ही थी. वक़ीलों ने तर्क दिया कि दहेज निषेध अधिकारी के पास याचिका पर कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है क्योंकि जो गहने उसके लिए उपहार में दिए गए थे, उसे बैंक लॉकर में रखा गया था. जज ने फ़ैसले में कहा -
"इस मामले में सबूतों के अभाव में, दहेज निषेध अधिकारी को नियम 6-(xv) के तहत निर्देश देने का कोई अधिकार नहीं है. इसलिए पारित किए गए आदेश को रद्द किया जाता है."
क्या कहता है केरल का दहेज निषेध कानून? दहेज के मामलों के निपटारे के लिए 2021 में केरल सरकार ने दहेज निषेध कानून में बदलाव करते हुए जिलों में दहेज अधिकारियों को नियुक्त किया. कानून के मुताबिक, शादी में दिए गए कीमती सामान तीन महीने के अंदर लड़की को ट्रांसफर करना अनिवार्य है. ज़िला महिला एवं बाल विकास अधिकारियों को अपने ज़िलों में दहेज निषेध अधिकारी के रूप में काम करने का अधिकार भी दिया गया था. कितना सही, कितना ग़लत है फ़ैसला? ये समझने के लिए हमने बात की एडवोकेट स्वाति उपाध्याय सिंह से, जो इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ में प्रैक्टिस कर रही हैं. उन्होंने बताया,
"क़ानूनी तौर पर कहा जाए तो अगर माता-पिता अपनी बेटी को उपहार के रूप में कुछ दे रहे हैं तो वह दहेज की श्रेणी में नहीं आएगा. दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के अनुसार, 'जो उपहार दूल्हे को शादी के समय दिए जाते हैं, किसी मांग के बिना, उसे गिफ़्ट्स के रूप में गिना जाएगा."
स्वाति ने आगे कहा,
"अगर कोई ऐसा मामला सामने आता है, जहां एक लड़की यह दावा कर रही है कि उसके ससुराल वाले दहेज की मांग कर रहे हैं और उसके साथ शारीरिक या मौखिक रूप दुर्व्यवहार किया जा रहा है, तो लड़के और उसके परिवार वालों को ये साबित करना होगा कि दहेज की मांग नहीं की गई है. आमतौर पर ऐसे मामलों में कोर्ट की सहानभूति लड़की के पक्ष में देखने को मिलती है."
हालांकि, कई मामलों में ये देखा जाता है कि दहेज की मांग डायरेक्ट नहीं होती है. कभी इशारों में, कभी किसी तीसरे व्यक्ति के माध्यम से मांग की जाती है. कभी ये बताया जाता है कि हमने तो अपनी बेटी की शादी इतने में की थी. तो कभी शादी के संकल्प के नाम पर सवाल किया जाता है. कई ऐसे केसेस होते हैं जिनमें दहेज मांगा नहीं जाता, लेकिन शादी के बाद लड़की को सुनाया जाता है कि अपनी बेटी की शादी में उन्होंने उसके ससुराल वालों को क्या-क्या गिफ्ट दिया था. या फलाने की बहू क्या-क्या लेकर आई थी. ऐसे में दहेज और तोहफ़े के बीच की लाइन बहुत महीन हो जाती है.

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