“मैं जो हूं, वो हूं. मुझे कोई शर्मिंदगी नहीं है. मेरे पिताजी कहते थे, तुम्हारी पहचान के चलते कुछ लोग तुम्हारे खिलाफ हो जाएंगे. मगर तुम परवाह मत करना.”
ये बात हैरी पॉटर में हैग्रिड, हैरी, रॉन और हर्माइनी से कहता है.
हैग्रिड के इस डायलॉग के पीछे एक कहानी है.
हैरी पॉटर के जादुई स्कूल का किरदार है हैग्रिड. रखरखाव करने वाला, मैनेजर टाइप का व्यक्ति. स्कूल में ज्यादातर ये माना जाता था कि जादूगरों के बच्चे ही सबसे अच्छे जादूगर बन सकते हैं. लेकिन हैग्रिड की मां एक दानव थी. ये बात सबको पता चल जाती है तो हैग्रिड शर्मिंदा हो जाता है. लेकिन हेडमास्टर डंबलडोर उसे समझाते हैं कि खुद की पहचान को स्वीकार करना कितना ज़रूरी है. लोग अपने काम से वो बन सकते हैं जो वो डिजर्व करते हैं. अपनी पर्सनल चॉइस या अपनी पैदाइश से नहीं.

ये दुनिया की सबसे मशहूर किताब से निकला एक वाकया है. जिसकी 50 करोड़ से अधिक प्रतियां दुनिया भर में बिक चुकी हैं. जिसका अनुवाद 80 भाषाओं में हो चुका है. जिसे हमारी पीढ़ी ने ऐसे पढ़ा है जैसे धर्म ग्रंथ हो. जिसने हमें कल्पना करना सिखाया. और फिर अचनाक एक दिन लोग कहने लगे कि इन किताबों को लिखने वाली जेके रोलिंग ने उन्हें निराश किया है.
क्यों, मसला समझ लेते हैं.
डेवेक्स नाम की एक वेबसाइट ने एक आर्टिकल लगाया. हेडिंग थी- “Opinion: Creating a more equal post-COVID-19 world for people who menstruate.” यानी कोविड 19 के बाद एक ऐसी दुनिया का निर्माण जिसमें उन लोगों को बराबरी मिले जिन्हें पीरियड होते हैं. जेके रोलिंग ने इस हेडिंग पर अपनी टिप्पणी लिखी.
‘…जिन लोगों को पीरियड होते हों. निश्चित ही उन लोगों का कोई नाम होता है. कोई मदद करे. बढ़िया सा तो कुछ नाम होता है वुंबेन, विम्पंड, वूमड?’
‘People who menstruate.’ I’m sure there used to be a word for those people. Someone help me out. Wumben? Wimpund? Woomud?
Opinion: Creating a more equal post-COVID-19 world for people who menstruate https://t.co/cVpZxG7gaA
— J.K. Rowling (@jk_rowling) June 6, 2020
यानी एक व्यंग्यात्मक कमेंट किया. कि पीरियड जिनको होते हैं, उन्हें ‘लोग’ नहीं, ‘वुमन’ यानी ‘औरत’ कहते हैं. इतना हुआ और लोग जेके रोलिंग पर बरस पड़े. अब आपको लगेगा कि इसमें भड़कने की क्या बात है. औरतों को ही तो पीरियड होते हैं. पुरुषों को होंगे क्या?

आपको गलत लगता है. हां औरतों को पीरियड होते हैं. लेकिन कई बार उनको भी होते हैं, जिन्हें हम मोटे तौर पर ट्रांसजेंडर कहकर पुकारते हैं. इसपर चर्चा करेंगे. मगर सबसे पहले देखते हैं कि जेके रोलिंग की बात को लेकर किस तरह के विरोध आए.
– लोगों को पहली आपत्ति ये है कि जेके रोलिंग औरत को परिभाषित ही पीरियड से कर रही हैं. बहुत सी औरतें होती हैं जिनको पीरियड नहीं होते. किसी मेडिकल या बायोलॉजिकल अवस्था के चलते. कई औरतों हैं जिनका पीरियड नेचुरल मीनोपॉज से कई साल पहले ही बंद हो जाते हैं. हॉर्मोनल अवस्थाओं के चलते.
– दूसरी आपत्ति ये है कि कई ट्रांस मेल होंगे, जिनको पीरियड होंगे. आम भाषा में कहें तो- जो औरत से पुरुष बनने की प्रक्रिया में हैं. जबतक वो अपना यूट्रस यानी गर्भाशय निकलवाने का फैसला न ले ले.
– तीसरी आपत्ति ये है कि सेक्स को केवल औरत या पुरुष की दो बड़ी केटेगरी में बांट देना हमारे दायरे छोटे करता है. ऐसे में बायोलॉजिकल सेक्स, यानी बच्चे का केवल लड़की या लड़का होना सवालों के घेरे में आता है. ऐसे में जब बच्चे बढ़ती उम्र में महसूस करते हैं कि जो पहचान उन्हें बचपन से दी गई है, वो वैसे हैं ही नहीं. तो मानसिक और शारीरिक रूप से उनकी दुनिया उजड़ने लगती है. लोगों के मुताबिक़ जेके रोलिंग इस तरह का विभाजन करते हुए उन लोगों का खयाल नहीं कर रही हैं. जो न खुद को औरत मानते हैं, न पुरुष.
इसके लिए डॉक्टर रिची गुप्ता से बात की गई. जो फोर्टिस ग्रुप में सर्जन हैं. और सेक्स रीअसाइनमेंट यानी सेक्स चेंज में स्पेशलिटी रखते हैं. इस बातचीत से मुझे क्या पता चला:
एक बायोलॉजिकल सेक्स होता है, जो पैदाइश पर डॉक्टर असाइन करते हैं. मगर मुमकिन है कि बड़े होते होते हम दूसरे सेक्स से खुद को ज्यादा करीब पाएं. मन से, आत्मा से. बायोलॉजिकल और मेंटल सेक्स के बीच गैप आ जाता है. जो व्यक्ति को बहुत परेशान, बहुत डिप्रेस करता है. ये गैप जेंडर डिस्फोरिया कहलाता है. ऐसे में एक लड़की अगर पुरुष बनने की और बढ़ना चाहे तो बन सकती है. ऑपरेशन के बाद वो ट्रांस मेल कहलाएगी. अब ट्रांस मेल के साथ दो चीजें हो सकती हैं:
– पहला, वो यूट्रस निकलवाए ही न. और ब्रेस्ट रिमूवल में ही बेहतर महसूस करने लगे. ऐसे में वो खुद को औरत होने से एसोसिएट नहीं कर रहे, मगर पीरियड फिर भी उन्हें हो रहे हैं.
– दूसरा, ये ऑपरेशन और उसके बाद हॉर्मोन की थेरेपी, दोनों खूब समय लेते हैं. ऐसे में एक दौर ऐसा रह सकता है. कि ऑपरेशन के बाद भी पीरियड होते रहें.
एक क्लासिक उदाहरण है थॉमस बीटी का. अमेरिकी ट्रांस मैन. यानी एक समय लड़की कहलाते थे, ऑपरेशन से पुरुष बने. मगर यूट्रस न निकलवाया. जिस महिला से उन्होंने शादी की, उन्हें किसी वजह से यूट्रस निकलवाना पड़ा. ऐसे में थॉमस दुनिया के पहले पुरुष थे, जो मां बने, बाकायदा बच्चे को अपनी कोख में रखकर.

मगर जेके रोलिंग ने अपनी रिसर्च न करने के बजाय, इस डिबेट को और आगे बढ़ाया. उन्होंने कहा:
अगर बायोलॉजिकल सेक्स एक असल चीज़ नहीं है, तो फिर समलैंगिकों का इतिहास भी झूठा है. औरतें जिसे अपनी सच्चाई मानती हैं, वो झूठी है.
ब्लैक ट्रांस लोगों के अधिकारों के हक़ में काम करने वाले ग्रुप ग्लाड ने ट्वीट किया:
जेके रोलिंग आज भी उसी सोच से ग्रसित हैं को जेंडर आइडेंटिटीज को लेकर अपने सत्य को ही सत्य मान लेते हैं. ये साल 2020 है, आज आप ट्रांस व्यक्तियों के लिए ऐसी बातें कैसे लिख सकते हैं?
जेके रोलिंग का इस मामले में इतिहास कुछ ख़ास अच्छा नहीं रहा है. साल 2019 में माया फोर्स्टेटर नाम की महिला ने कुछ ट्वीट किए थे. जिनमें लिखा था कि लोगों को अगर उनकी सेक्स आइडेंटिटी चुनने की छूट मिल जाएगी. तो समाज के लिए बहुत बुरा होगा. औरतों की जगहों पर पुरुष घुस आएंगे, वगैरह. इसके बाद उनकी नौकरी चली गई थी. मामला कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने भी यही कहा कि ऐसे विचार हानिकारक हैं. मगर इस वक़्त भी जेके रोलिंग ने माया का खुलकर सपोर्ट किया था.

कुल मिलाकर ये पहली बार नहीं है जब लोग जेके रोलिंग से निराश हुए. और इसलिए हुए कि उनकी सुंदर, जादुई किताबें पढ़ने वालों में कई बच्चे, कई युवा ऐसे भी रहे हैं जो ट्रांसजेंडर रहे हैं.
विदेश में छिड़ी एक बहस का जिक्र हम इंडिया में क्यों कर रहे हैं?
इसलिए कर रहे हैं क्योंकि सेक्स और उसके बनने वाली पहचान को लेकर हम आज भी खुले दिमाग से नहीं सोच रहे हैं. जेके रोलिंग को लेकर फैली डिबेट कुछ न हो, कम से कम एक पॉजिटिव लक्षण है. एक समाज का जो औरत-पुरुष के भेद से ऊपर उठ एक नयी तरह की समानता के बारे में सोच रहा है. जिसमें अपने होने को नाम या पहचान देने की ज़रुरत नहीं.
इंडिया में हममें से कई लोग ट्रांसजेंडर को हिजड़ा समुदाय से परिभाषित करते हैं. न सिर्फ परिभाषित करते हैं बल्कि उसे एक गाली के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. ऐसे कई शब्द जो किसी की पूरी आइडेंटिटी हो सकते हैं- जैसे हिजड़ा, किन्नर, गे, लेस्बियन, बायसेक्शुअल, या क्रॉस ड्रेस करने वाले लोग. उन्हें हम गाली की तरह इस्तेमाल करते हैं. अपने काम में कोई पुरुष सक्षम न हो तो उसे नपुंसक कहते हैं.

हम जेके रोलिंग से सहमत हों या न हों. ये बाद की बात है. ज़रूरी ये सबक लेना है कि दुनिया महज़ औरत और पुरुष में नहीं बंटी है. दुनिया में हर तरह के शरीर और हर तरह की इच्छाएं हैं. आपके सामने बैठी लड़की केवल पुरुष से प्रेम करे, ये ज़रूरी नहीं. पब्लिक ट्रांसपोर्ट में आपके बगल में बैठा पुरुष बायोलॉजिकली पिता बन सके ये ज़रूरी नहीं. जिस बच्चे को आप अपनी कोख में पाल रही हैं, कल वो समलैंगिक हो सकता है. अपने जिस बेटे को आप गुड़िया और किचन सेट नहीं, बल्ले और बंदूकें लाकर देते हैं क्योंकि आप उसे पुरुष बनाना चाहते हैं, वो कल को औरत बनना चाह सकता है.
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