अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस. 8 मार्च को मनाया जाता है. इसी सिलसिले में रेल मंत्रालय ने ट्वीट किया. तीन तस्वीरें डालीं जिनमें महिला पोर्टर्स (सामान उठाने वाली) अपना काम करते हुए दिख रही हैं. इसके साथ रेल मंत्रालय ने ट्वीट किया:
भारतीय रेलवे के लिए काम करते हुए इन महिला कुलियों ने ये साबित कर दिया है कि ये किसी से कम नहीं हैं. हम उन्हें सलाम करते हैं.
Working for Indian Railways, these lady coolies have proved that they are second to none !!
We salute them !! pic.twitter.com/UDoGATVwUZ
— Ministry of Railways (@RailMinIndia) March 4, 2020
इस ट्वीट के बाद रेल मंत्रालय को मिले जुले रिएक्शन देखने को मिले. किसी ने ट्वीट करके कहा, यही महिला सशक्तिकरण है. एक अकाउंट ने लिखा,
इन बहादुर महिलाओं को कोई जबरन ये मेहनत वाला काम करने के लिए मजबूर नहीं कर रहा. कई महिलाएं खेतों में काम करती हैं. उसमें भी मेहनत होती है. इसलिए कड़ी मेहनत कर ईमानदारी से अपने परिवार के लिए चंद पैसे कमाने में कुछ भी गलत नहीं है.
No one is forcing these (Brave) women to do this hard work of
‘ sahayak ‘ ; many women work on farms ( as labourers & owners ) which also involves hard toil. So nothing wrong in doing hard work as long as it is sincere & earn something for their family— Raghavendra Upadhya (@RvUpadhya) March 4, 2020
वहीं कई लोगों ने रेलवे को इस बात पर खरी-खोटी सुनाई है. एक अकाउंट ने लिखा:
प्रिय रेलवे,
कुछ तो शर्म करो. ये बेचारी मजबूरी में कुली का काम कर रही हैं. अगर आप इन्हें इसके बदले कोई दूसरा काम दे सकें तो.
Dear Railway
Kuch to sharm karo
Ye bechari majboori mein coolie ka kaam rahi haiIf u can give them some alternative work
— Intekhab Alam (@Bhola4U) March 4, 2020
ध्यान से देखें तो अधिकतर ट्वीट रेल मंत्रालय के ट्वीट की तारीफ कर रहे हैं. उनके लिए ये महिला सशक्तिकरण है. जो इसकी आलोचना कर रहे हैं, उनमें से अधिकतर का ये कहना है कि महिलाएं बोझा ढोने के लिए थोड़े ही बनी हैं. शशि थरूर ने ट्वीट किया.
ये कितनी शर्म की बात है. लेकिन इसके लिए शर्माने के बजाए हमारा रेल मंत्रालय गरीब औरतों के भारी बोझा ढोने के शोषण की बात पर गर्व कर रहा है?
This is a disgrace. But instead of being ashamed of this primitive practice, our @RailMinIndia is proudly boasting of this exploitation of poor women to carry heavy head loads?! https://t.co/qPvqjBfarw
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) March 4, 2020
तीन चीज़ें हैं
#1.डिग्निटी ऑफ वर्क. यानी श्रम का बराबर सम्मान. चाहे वो एक सड़क साफ करने वाला आदमी हो, या जहाज का इंजन फिट करती इंजिनियर. काम सभी के आवश्यक हैं. इसमें गैर–बराबरी हमारे क्लासिस्ट (वर्ग भेदी) नज़रिए को दिखाता है. सामान उठाने को नीचा काम मानना गलत है.
#2. पुरुष हो या महिला, सभी को अपनी आजीविका के लिए काम करने का हक़ है. सभी को बराबर मौके मिलने चाहिए.
#3.जब खेतों में काम करने वाली, बोझा उठाने वाली महिलाओं के चेहरे इतनी तारीफ़ इकठ्ठा करते हैं. तो इन महिलाओं के अपने श्रम से पैसे कमाने पर क्या दिक्कत है?

हां. रेलवे को बैट्री चालित वाहन लगाने चाहिए. ट्रॉलियां देनी चाहिए यात्रियों को, जैसा एयरपोर्ट्स पर होता है. लेकिन जब तक वो सुविधा सभी के लिए उपलब्ध नहीं हो जाती, तब तक इस काम में जेंडर को लाना गलत ही कहा जाएगा.
जिस एक बात से दिक्कत होनी चाहिए फिलहाल, वो कुली शब्द का इस्तेमाल है. पुरुष हों या महिला, उनके लिए इस शब्द का इस्तेमाल करना गलत है. कई दशक पहले बंधुआ मजदूरी के लिए चीन, और कैरेबियाई देशों में भारत और आस पास के देशों से लोग भेजे गए.उन्हें कुली कहा गया. भारत में ये शब्द स्टेशन वगैरह पर सामान उठाने वाले सहायकों के लिए इस्तेमाल होता था.

इसके पीछे वजह ये भी थी कि जब ट्रेन और पानी की जहाज की यात्रा ही इकलौता साधन थे तब बंधुआ मजदूर बड़े बाबुओं और मेम साहब के बड़े बक्से उठाकर लोड करते थे. इस शब्द को बेहद नस्लभेदी माना जाता है. आज पुरुषों के लिए भी स्टेशनों पर कुली शब्द इस्तेमाल नहीं होता. पोर्टर/सहायक कहा जाता है. आम बोलचाल में भले ये शब्द इस्तेमाल होता हो. लेकिन रेल मंत्रालय का अकाउंट एक ऑफ़िशियल अकाउंट है. भारत सरकार का. इस तरह के शब्द उनकी तरफ से तो नहीं ही कहे जाने चाहिए.
वीडियो: क्या है सिस्टर अभया का केस, जो केरल की अब तक की सबसे लम्बी मर्डर इन्वेस्टिगेशन है