पीट-पीटकर अपने डेढ़ साल के बच्चे को लहूलुहान कर देने वाली मां की असलियत
ये वायरल वीडियो आप तक भी पहुंचा होगा.
आज सुबह जब हमने ट्विटर खोला, तो हमारी नज़र एक वायरल वीडियो पर पड़ी. उसी के साथ कुछ दोस्तों ने भी अलग से मैसेज कर हमें वो वीडियो भेजा. कहा कि इस पर बात होनी बेहद ज़रूरी है. दरअसल, उस वीडियो में एक महिला एक बच्चे को बुरी तरह पीटते हुए नज़र आ रही थी. इतनी बुरी तरह की बच्चे के मुंह से खून तक निकलने लगा था. जब हमने मामले को और ठीक से एक्सप्लोर किया तो पता चला कि वो महिला उस बच्चे की मां है और बच्चे की उम्र डेढ़ साल है. आज हम इसी मुद्दे पर तसल्ली से बात करेंगे. इस केस के बारे में पूरी जानकारी देंगे, साथ ही ये भी बताएंगे कि जो पैरेंट्स अपने बच्चों को हद से ज्यादा मारते हैं, क्या उन्हें किसी तरह की मानसिक दिक्कत होती है?
क्या है मामला?
'इंडिया टुडे' के प्रमोद माधव की रिपोर्ट के मुताबिक, जो वीडियो वायरल हो रहे हैं वो आंध्र प्रदेश के चित्तूर के हैं. 22 साल की ये महिला यहीं अपने पैरेंट्स के साथ रहती है. पांच साल पहले तमिलनाडु के विल्लुपुरम में महिला की शादी वदिवाज़गन नाम के एक आदमी से हुई थी. शादी के बाद दोनों मोट्टूर गांव में रहने लगे. दोनों के दो बेटे हुए, जिनमें से एक चार साल का है और एक डेढ़ साल का. शादी के कुछ समय बाद ही इस कपल के बीच झगड़े होने लगे. बात इतनी बढ़ गई कि दोनों अलग रहने लगे. महिला अपने बच्चों के साथ चित्तूर में अपने माता-पिता के पास आ गई. हालांकि कुछ रिपोर्ट्स में ये भी कहा जा रहा है कि वदिवाज़गन ही अपनी पत्नी को उसके मायके छोड़कर आया था.
इसी दौरान महिला के रिश्तेदारों के हाथ एक बार उसका फोन लग गया. उन्होंने देखा कि उस फोन में कई सारे वीडियो हैं, जिनमें वो अपने डेढ़ साल के बच्चे के बुरी तरह पीटते हुए दिख रही है. और ऐसा लग रहा है कि उसने खुद ये वीडियो रिकॉर्ड किए हैं. एक वीडियो में वो मुक्के से अपने बच्चे के मुंह पर लगातार मार रही है, बच्चा बुरी तरह रो रहा है, महिला ने इतनी बुरी तरह बच्चे को पीटा कि उसके मुंह और नाक से खून निकलने लगा. वहीं एक वीडियो में वो बच्चे के पैर पर मुक्का मारते दिख रही है. इसके अलावा एक अन्य वीडियो में वो अपने बच्चे की पीठ दिखा रही है, जहां पर लाल-लाल चकते बने हुए हैं, माने वो मारने के निशान हैं.
महिला के रिश्तेदारों ने इन वीडियो की जानकारी उसके पति को दी. वदिवाज़गन और उसके रिश्तेदार तुरंत चित्तूर में महिला के पास पहुंचे और बच्चों को अपने साथ विल्लुपुरम लेकर आ गए. बच्चे के ग्रैंडफादर गोपालकृष्णन का कहना है कि उन्हें ये नहीं पता था कि महिला अपने बच्चे को इतनी बुरी तरह से मारती थी. हालांकि वो उसे एक बार पुद्दुचेरी के JIPMER अस्पताल लेकर गई थी, ट्रीटमेंट के लिए. 'द हिंदू' की रिपोर्ट की मानें तो ये घटना इस साल फरवरी में हुई थी, लेकिन वीडियो बीते शनिवार यानी 28 अगस्त को वायरल हुए.
जब ये वीडियो सामने आए तो सोशल मीडिया पर लोगों ने विरोध जताना शुरू किया. एक्टिविस्ट योगिता भयाना ने कहा-
"कोई इतना कैसे क्रूर हो सकता है? इतनी क्रुरता वो भी इस छोटे से मासूम से बच्चे पर, इस औरत को इस मासूम को मारते हुए बिलकुल भी शर्म नहीं आ रही. ये औरत इस बच्चे की मां तो नहीं हो सकती है. ये वीडियो जहां का भी हो इस औरत पर कठोर कार्रवाई होनी चाहिए"
महिला ने बच्चे को इतनी बुरी तरह से पीटा था कि उसके मुंह से खून निकलने लगा था.
क्या कार्रवाई हुई?
इसके अलावा और भी कई सारे ट्वीट्स महिला के खिलाफ हुए. इसी बीच आज यानी 30 अगस्त को खबर आई कि महिला के खिलाफ केस दर्ज करके उसे गिरफ्तार कर लिया गया है. तमिलनाडु पुलिस ने चित्तूर के रामपल्ली इलाके से महिला को गिरफ्तार किया. हालांकि महिला अपने बच्चे को इतनी बेरहमी से क्यों मारती थी, इस सवाल का कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला है अभी तक. पुलिस मामले की जांच कर रही है. महिला के खिलाफ IPC के सेक्शन 323 यानी जानबूझकर नुकसान पहुंचाना, 355 यानी असॉल्ट के तहत केस दर्ज हुआ है. साथ ही जुवेनाइल जस्टिस एक्ट भी लगाया गया है.
ये मामला ऐसा है जो कई तरह के सवाल हमारे सामने उठाता है. हमने अक्सर ही ये सुना है कि छोटे बच्चों को मारना-पीटना नहीं चाहिए, उन्हें प्यार से रखना चाहिए. वहीं दूसरी तरफ कई पैरेंट्स ये भी कहते हैं कि अनुशासन सिखाने के लिए बच्चों को कई बार मारना ज़रूरी हो जाता है, नहीं तो बच्चे हाथ से निकल जाते हैं. इसलिए सवाल उठता है कि बच्चों पर पैरेंट्स किस हद तक सख्त हो सकते हैं? हमें लाइन कहां ड्रॉ करनी है. इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमारे साथी नीरज ने बात की डॉ. भावना बर्मी से. जो मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल और क्लिनिकल सायकोलॉजिस्ट हैं. वो कहती हैं-
"पैरेंट्स हमेशा सोचते हैं कि बच्चों को अनुशासन सिखाना बहुत ज़रूरी है. हां ये एक हद तक बहुत ज़रूरी है, क्योंकि बच्चों का ये जानना कि क्या उनकी बाउंड्रीज़ हैं, क्या अनुशासन में उन्हें रहना चाहिए, उनकी एक पूरी ज़िंदगी आगे शेप होती है. पर उसके लिए हम बच्चों को मारे, पीटे, चिल्लाएं ये ज़रूरी नहीं है. काउंसलिंग करके पैरेंट्स को समझाया जा सकता है कि पॉज़िटिव पैरेंटिंग स्ट्रैटजी बनाएं. हेल्दी बाउंड्रीज़ बनाई जाएं. पैरेंट्स को समझाना ज़रूरी है कि मार-पीट का बच्चों की मानसिकता पर क्या असर होता है. और हमें कैसे उन्हें बिना मार-पीट के डिसिप्लीन में रहना सिखाना होगा. किसी भी पैरेंट को अपने बच्चे को मारना नहीं चाहिए. मारने से बच्चे पर बहुत बुरा असर होता है. हर बच्चा इससे अच्छाई की तरफ नहीं जाता. पैरेंट्स को बच्चों से बात करनी चाहिए. सबसे पहले ऐसा बॉन्ड बनाना चाहिए जिसमें उनको बच्चों को समझना चाहिए, और समझने के लिए उन्हें एक एक्टिव लिसनिंग करना चाहिए. बच्चों को क्वालिटी टाइम देना चाहिए, जिसमें वो पूरी तरह बच्चे के साथ रहें, और दूसरे काम न करें, ताकि बच्चे को लगे कि माता-पिता की सारी अटेंशन उसके ऊपर ही है. तब बच्चा खुलकर अपनी सोच, विचार, फीलिंग्स, कन्सर्न्स और दिक्कतें मां-बाप को बताएगा. बच्चे को समझते हुए हल देने चाहिए."
डॉक्टर भावना बर्मी, मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल और क्लिनकल सायकोलॉजिस्ट
इस केस में अभी तक ये सामने आया है कि महिला का उसके पति के साथ काफी झगड़ा होता था. इसलिए ये सवाल उठता है कि क्या बच्चे को पीटना एक तरह से झगड़े का फ्रस्ट्रेशन निकालना हो सकता है? या महिला को किसी तरह की मानसिक दिक्कत भी हो सकती है? क्या पोस्टपार्टम डिप्रेशन डिलीवरी के डेढ़ साल बाद तक भी हो सकता है? जो पैरेंट्स, फिर चाहे मां हो या पिता, अपने बच्चे को हद से ज्यादा पीटते हैं, क्या उन्हें कोई मानसिक दिक्कत होती है? इन सारे सवालों के जवाब भी हमें दिए डॉक्टर भावना बर्मी ने. उन्होंने कहा-
"काफी बार देखा जाता है कि बचपन में जिन अनुभवों से लोग गुज़रते हैं, जैसे कोई निगेटिव इवेंट हो गया, तो उसका असर लंबे समय तक हमारी पर्सनेलिटी में देखा जाता है. डिलीवरी के बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन, या जिसे हम बेबी ब्लूज़ भी कहते हैं, वो बहुत कॉमन होता जा रहा है. बल्कि पांच प्रतिशत महिलाओं का ये तीन-चार दिन से लेकर तीन साल तक चल सकता है. इसमें महिलाएं काफी ओवरवेल्म्ड महसूस करती हैं. इस वजह से हमारे ज़हन, स्वभाव में भी बदलाव आ सकते हैं. डिप्रेशन और गुस्सा भी महसूस कर सकते हैं. अगर ये डेढ़ साल बाद होता है, तो इस पोस्टपार्टम डिप्रेशन के साथ कुछ और ऐसी प्रभावित चीज़ें भी होती हैं, जिसका असर हम इस वीडियो में भी देख सकते हैं. जैसे इसमें हमने देखा कि शादी में पति-पत्नी का अच्छा रिश्ता नहीं था, वो बहुत ज्यादा झगड़ा करते थे, तो ये एक मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम, जिसको हम agitated depression बोलते हैं, इसमें ये पोस्टपार्टम डिप्रेशन तब्दील हो जाता है. इस तरह की मारपीट से बच्चों की मानसिकता पर काफी गलत और गहरा प्रभाव पड़ सकता है. क्योंकि बच्चे छोटी उम्र में ऐसी चीज़ें दिल से लगा लेते हैं और यही बातें वो अपने साथ ज़िंदगी में आगे तक लेकर चलते जाते हैं. देखा जाता है कि उनको इंटर-पर्सनल रिलेशनशिप्स में भी काफी मुश्किल होती है. इमोशनल स्ट्रेस हो जाता है. अगर पति-पत्नी में काफी लड़ाइयां होती हैं, तो उसकी फ्रस्ट्रेशन निकलती है. और अगर ये बच्चों पर निकल रही है, तो मां-बाप होने की वजह से हमें एक माइंडफुल तरीके से अपनी पैरेंटिंग को आगे बढ़ाना चाहिए. क्योंकि ये तरीका सही नहीं है कि हम अपनी परेशानियां, या फ्रस्ट्रेशन बच्चों पर निकालें. इस वीडियो में महिला को कोई मानसिक दिक्कत भी हो सकती है, और उसके साथ उसकी घरेलू परेशानियां भी हो सकती हैं, जिससे वो अपनी सारी फ्रस्ट्रेशन अपने बच्चों पर निकाल देती है. बहुत ज़रूरी है कि दोनों पैरेंट्स का रिलेशनशिप जैसा हो, उसको वो बेहतर बनाएं."
क्या काउंसलिंग करके ऐसे पैरैंट्स का इलाज किया जा सकता है? क्या ट्रीटमेंट होगा? डॉक्टर का कोर्स ऑफ एक्शन क्या होता है? इसके जवाब में डॉक्टर भावना कहती हैं-
"काउंसलिंग काफी फायदेमंद होती है. इस केस की बात करें तो तीन तरह की काउंसलिंग की ज़रूरत होगी. पहली- इंडीविजुअल थैरेपी, उस औरत के साथ जो एक मानसिक स्थिति से गुज़र रही है, तो उसकी मानसिक स्थिति को स्टेबल करने के लिए इंडीविजुअल थैरेपी और काउंसलिंग ज़रूरी है. दूसरी थैरेपी होगी मेडिकल थैरेपी. जिसमें पति और पत्नी अपने रिश्ते को कॉर्डिअल बनाना सीखेंगे. और तीसरी- बहुत ज़रूरी होगी पैरेंटल काउंसलिंग. क्योंकि काउंसलिंग के ज़रिए पैरेंट्स को बच्चों के नज़रिए से चीज़ें समझाया जा सकता है. स्ट्रैटजी सिखाई जा सकती है, जिससे उनके बीच में एक कम्युनिकेशन बैटर होता है, इम्प्रूव हो सकता है. काउंसलिंग से हालात काफी बेहतर हो सकते हैं. कुछ चीज़ें हमारे अंदर होती हैं, लेकिन हम बोल नहीं पाते और उस वजह से फ्रस्ट्रेशन और बढ़ जाता है. कभी-कभी ये बहुत गुस्से में बदल जाता है. और ये गलत तरीके से भी निकल जाता है. जिसमें मारना-पीटना और कई बारी इतनी बेरहमी से मारना-पीटना दिखता है, जैसे हम इस वीडियो में देख रहे हैं. लेकिन एक प्रॉपर ट्रीटमेंट और काउंसलिंग लेकर ये हालात हैंडल हो सकते हैं."
सबसे आखिरी और सबसे अहम सवाल. इतने कठोर अब्यूज़ का बच्चों के दिमाग पर क्या असर पड़ सकता है, ये जानना भी बेहद ज़रूरी है. डॉक्टर भावना कहती हैं-
"इस तरह ही मार-पीट और टॉक्सिक पैरेंटिंग का बच्चों पर बहुत निगेटिव असर पड़ सकता है. उनकी फिज़िकल इमोशनल और मेंटल ग्रोथ पर बहुत असर पड़ता है. ऐसे निगेटिव माहौल में रहने से बच्चों में काफी लॉन्ग टर्म निगेटिव इफेक्ट देखा जाता है. निगेटिव क्रिटिसिज़्म की वजह से बच्चों का कॉन्फिडेंस और सेल्फ वर्थ पर प्रभाव पड़ता है. और जब बच्चे अपने इमोशन्स को एक्सप्रेस नहीं कर पाते, तो अब्यूज़, डिप्रेशन और एंग्ज़ायटी का शिकार हो जाते हैं. एक ट्रस्ट डेफिसिट जैसी कंडिशन उनकी लाइफ में आ जाती है. कई बार वो खुद भी अग्रेसिव हो जाते हैं और एंटी-सोशल पर्सनेलिटी बन जाते हैं."
केस अभी पुलिस के हाथ में है. महिला गिरफ्तार हो गई है. जांच चल रही है. नतीजा क्या होगा, भविष्य बताएगा. लेकिन इतना हम ज़रूर बता सकते हैं कि इस महिला ने बच्चे की जिस कदर पिटाई की है, वो एक अमानवीय कृत्य है. उम्मीद करते हैं कि बच्चे के साथ न्याय होगा.