बिहार का सारण ज़िला. यहां के मांझी प्रखंड में है हलकोरी शाह उच्च विद्यालय, जहां लड़कियों को बांटे जाने वाले सैनिटरी पैड्स और यूनिफॉर्म लड़कों को बांट दिए गए. मामला तब खुला जब स्कूल के पुराने हेडमास्टर रिटायर हो गए और नए वाले ने पदभार संभाला.
क्या है पूरा मामला?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने फरवरी 2015 में यह घोषणा की थी कि सरकारी स्कूलों में लड़कियों को मुफ़्त सैनिटरी नैपकिन्स बांटी जाएंगी. स्कीम का नाम – मुख्यमंत्री किशोरी स्वास्थ्य कार्यक्रम. स्कीम का मक़सद था कि लड़कियों के ड्रॉपआउट रेट को बेहतर किया जा सके और उनके स्वास्थ्य और स्वच्छता की बेहतरी हो. स्कीम के तहत आठवीं से दसवीं कक्षा तक की छात्राओं को हर साल 150 रुपये दिए जाने थे.
In a bizarre case, several boys of Halkori Sah High School in Bihar’s Saran district were given the benefits of sanitary napkin and dress scheme (poshak yojana) meant for girl students in the state. A two member committee has been constituted to probe the matter. (PTI) #ITCard pic.twitter.com/XpynVzhFwH
— IndiaToday (@IndiaToday) January 23, 2022
जनसत्ता की रिपोर्ट के मुताबिक, लड़कियों के लिए चलाई जा रही स्कीम का लाभ कागज़ों में कई दर्जन लड़कों को भी दे दिया गया. पोल तब खुली जब पुराने हेडमास्टर रिटायर हुए और नए आए. पुराने हेडमास्टर – अशोक कुमार राय, नए हेडमास्टर – रईस उल एहरार ख़ान.
नए हेडमास्टर ख़ान ने आते ही पिछले साल चल रही सभी योजनाओं के उपयोगिता प्रमाण पत्र, यानी यूटिलिटी सर्टिफिकेट मांगे. पिछले हेडमास्टर ने क़रीब 1 करोड़ की योजनाओं के प्रमाण पत्र विभाग में जमा नहीं किए थे. बैंक स्टेटमेंट निकले तो पता चला कि लड़कियों के लिए चलाई जा रही योजनाओं के फंड्स लड़कों के खाते में भी डाले गए हैं.
अब क्या होगा?
घोटाला सामने आया तो हेडमास्टर ने ज़िलाधिकारी को पत्र लिखकर पूरे मामले की जानकारी दी.
डिस्ट्रिक्ट एजुकेशन अफ़सर अजय कुमार सिंह ने PTI को बताया,
“फंड्स की हेरा-फेरी स्कूल के हेड मास्टर ने ही पकड़ी. हेड मास्टर ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि कम से कम स्कूल के सात लड़कों को 2016-17 में स्कीम के तहत फंड्स बांटे गए थे.”
DEO ने आगे कहा,
“मामले की कार्यवाही के लिए 2-मेंबर समिति का गठन किया गया है. समिति की जांच के आधार पर दोषी पाए गए लोगों पर उपयुक्त कार्यवाही होगी. समिति चार दिन में अपनी रिपोर्ट जमा करेगी.”
स्कीम पर सालाना 60 करोड़ रुपये ख़र्च किए जाते हैं. और सरकारी वेबसाइट के मुताबिक़, लगभग 37 लाख छात्राएं इस स्कीम की लाभार्थी बनती हैं.
देश के इस इलाके में सैनिटरी पैड मिलना क्यों बंद हो गया है?