मेडिकल भाषा में एक शब्द है- हिस्टेरेक्टॉमी. यह एक प्रोसेस होता है. जिसमें औरतों के गर्भाशय को सर्जरी के जरिए निकाल दिया जाता है. गर्भाशय निकालने की बहुत सी वजहें होती हैं, जिनकी चर्चा हम आगे करेंगे. फिलहाल आपको इस सर्जरी से जुड़ी एक स्टडी के बारे में बताते हैं. यह स्टडी भारत सरकार की तरफ से की गई है.
दरअसल, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 2017-18 में एक सर्वे किया था. इस सर्वे के मुताबिक देश में 45 साल से अधिक उम्र वाली 11 फीसद महिलाओं को अपना गर्भाशय हटवाना पड़ा. मतलब हर दस में से एक वरिष्ठ महिला को. इस सर्वे में 72 हजार वरिष्ठ महिलाओं को शामिल किया गया.
इससे पहले 2015-16 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक 15 से 49 साल की 3.2 फीसद महिलाओं को अपना गर्भाशय निकलवाने की जरूरत पड़ी. यह पहला ऐसा सर्वे था, जिसमें हिस्टेरेक्टॉमी को लेकर डाटा इकट्ठा किया गया.
प्राइवेट अस्पताल फायदे के लिए सीधे गर्भाशय निकाल देते हैं?
वापस से 2017-18 के सर्वे पर आते हैं. डाउन टू अर्थ के मुताबिक, सर्वे में पाया गया कि आंध्र प्रदेश और पंजाब में हर पांच में से एक वरिष्ठ महिला को गर्भाशय की सर्जरी करानी पड़ी. यूएस नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की मानें तो आंध्र प्रदेश में महिलाओं को हिस्टेरेक्टॉमी के अलावा कोई विकल्प ही नहीं दिया जाता. प्राइवेट अस्पताल अपने फायदे के लिए सीधे गर्भाशय निकाल देते हैं.
सर्वे के मुताबिक, भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में हिस्टेरेक्टॉमी के मामले सबसे कम रहे.
– असम में 3.3 फीसदी
– अरुणाचल प्रदेश में 3.1 प्रतिशत
– नगालैंड में 1.7 प्रतिशत
– मेघालय में 0.92 फीसदी.
इन राज्यों में हिस्टेरेक्टॉमी के मामले कम रहने का कारण मजबूत हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर और सरकारी अस्पतालों को प्राथमिकता दिया जाना रहा.
सर्वे में दूसरे पैमानों पर भी हिस्टेरेक्टॉमी का आंकलन किया गया. मसलन, आर्थिक रूप से मजबूत औरतों ने गरीब औरतों के मुकाबले अधिक सर्जरी कराई. जहां आर्थिक तौर पर मजबूत 18 फीसदी वरिष्ठ औरतों ने अपना गर्भाशय निकलवाया, वहीं करीब 8 फीसदी गरीब औरतों ने हिस्टेरेक्टॉमी कराई.
इसी तरह शहरों में रहने वालीं 15 फीसद महिलाओं ने सर्जरी कराई. दूसरी तरफ ग्रामीण इलाकों में रहने वालीं 10 परसेंट महिलाओं ने. हालांकि, आंध्र प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, केरल, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, तेलंगाना और उत्तराखंड में ये कहानी उल्टी रही.
क्यों करानी पड़ती है Hysterectomy?
यह जानने के लिए हमने अपोलो अस्पताल की डॉक्टर लवलीना नादिर से बात की. उन्होंने इसके कुछ प्रमुख कारण बताए. डॉक्टर नादिर के अनुसार-
“45 साल से अधिक उम्र वाली महिलाओं को पीरियड्स के डिसऑर्डर हो जाते हैं. क्योंकि उनका मेनोपॉज शुरू होने वाला होता है. ऐसे में कभी-कभी खून अधिक बहता है, दर्द ज्यादा होता है. कभी-कभी हॉर्मोन्स का बैलेंस बिगड़ जाता है, तो कभी-कभी सिस्ट (गांठ) जमने लगता है. तब ये सर्जरी करनी पड़ती है”
डॉक्टर ने आगे बताया कि कभी कभी फाइब्रॉइड बढ़ जाता है. यह फाइब्रॉइड कैविटी में चला जाता है. तब गर्भाशय को निकालने की जरूरत पड़ती है. हालांकि, युवा औरतों और लड़कियों का गर्भाशय निकालने से बचा जाता है, क्योंकि तब तक वे मां नहीं बनी होती हैं. ऐसे में फाइब्रॉइड का इलाज किया जाता है. लेकिन आगे भी फाइब्रॉइड बढ़ने का खतरा रहता है.
डॉक्टर नादिर ने यह भी बताया कि कई बार दूसरी मेडिकल कंडीशन जैसे कैंसर इत्यादि की वजह से भी गर्भाशय निकालने की जरूरत पड़ती है. हमने उनसे पूछा कि क्या जबरन भी ये सर्जरी करा दी जाती है? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा-
“ऐसा तो हमने ना देखा और ना ही किया. जब जरूरत आन पड़ती है तभी यह सर्जरी रेकमेंड की जाती है. पहले पारंपरिक तरीकों से इलाज किया जाता है. जैसे दवाइयों के सहारे पीरियड्स के दौरान अधिक खून बहने और दर्द का इलाज होता है. अगर ये तरीके काम नहीं करते, तो फिर सर्जरी की जाती है.”
इलाज और खर्च
डॉक्टर नादिर ने बताया कि आजकल हिस्टेरेक्टॉमी आसानी से हो जाती है. ऑपरेशन का तरीका तो है ही, लेकिन अब दूरबीन डालकर भी गर्भाशय आसानी से निकाल दिया जाता है. इसमें दो से तीन घंटे का समय लगता है. इसके बाद मरीज को दो से तीन दिन आराम करना पड़ता है.
खर्च के बारे में उन्होंने बताया कि यह अलग-अलग पहलुओं पर निर्भर करता है. हिस्टेरेक्टॉमी कहां हो रही है, कौन कर रहा है और वहां कैसी सुविधाएं मिल रही हैं. खर्च इन सब पहलुओं पर निर्भर करता है.
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