यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछ लें. लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.
दिव्या. भोपाल की रहने वाली हैं. उनकी एक साल की बेटी है. जन्म के कुछ महीने बाद ही दिव्या ने नोटिस कर लिया था कि उनकी बेटी आवाज़ पर रिएक्ट नहीं करती. न डरती है, न रोती है और न ही उसके बर्ताव में कोई बदलाव आता है. दिव्या ने अपनी बेटी को डॉक्टर को दिखाया. स्क्रीनिंग-टेस्ट वगैरह के बाद पता चला कि उनकी बेटी को हियरिंग लॉस है. यानी उसे सुनाई नहीं देता था. अब उनकी बेटी का इलाज चल रहा है. दिव्या ने बताया कि कई बार मां-बाप छोटे-छोटे लक्षण मिस कर देते हैं. ख़ासतौर पर जब बच्चा बहुत छोटा होता है. जब तक उन्हें एहसास होता है, तब तक काफ़ी समय निकल चुका होता है. बच्चों में हियरिंग लॉस सही समय पर पकड़ में आना ज़रूरी है. इसलिए, चलिए आज इसी पर बात करते हैं.
क्या होता है हियरिंग लॉस?
ये हमें बताया अमित ने.

सुनने की क्षमता को डेसिबल में नापा जाता है. अगर किसी की सुनने की क्षमता 25 डेसिबल से ज़्यादा है तो वो नॉर्मल माना जाता है. अगर सुनने की क्षमता 25 डेसिबल से कम है तो कहा जाता है कि हियरिंग लॉस है. हियरिंग लॉस मुख्य तौर पर तीन तरह के होते हैंः
-कंडक्टिव हियरिंग लॉस (conductive hearing loss)
-मिक्स हियरिंग लॉस (mix hearing loss)
-सेंसरीन्यूरल हियरिंग लॉस (sensorineural hearing loss)
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनिज़ेशन की 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में करीब 46 करोड़ लोगों को किसी न किसी प्रकार का हियरिंग लॉस है. हिंदुस्तान में हर साल ढाई करोड़ बच्चे पैदा होते हैं, हर 1000 बच्चों में एक से तीन बच्चों को परमानेंट हियरिंग लॉस होता है.
कारण
हियरिंग लॉस के बहुत सारे कारण हैं. उनको तीन हिस्सों में बांट सकते हैं
-पहला है प्रीनेटल कारणः ये वो कारण हैं जो बच्चे के जन्म के पहले हियरिंग लॉस का कारण बनते हैं. मुख्य तौर पर इसमें जेनेटिक कारण हैं. 50 प्रतिशत केसेज़ में हियरिंग लॉस इस वजह से होता है. इन्फेक्शन के कारण भी ऐसा हो सकता है.

-दूसरी कैटगरी है पेरीनेटल कारणः ये वो कारण हैं जो बच्चे के जन्म के समय ज़िम्मेदार होते हैं. जैसे समय से पहले डिलीवरी या डिलीवरी होते समय कोई दिक्कत आ जाना.
-तीसरी कैटगरी है पोस्ट नेटल कारणः जन्म के बाद कुछ कारण हियरिंग लॉस की वजह बनते हैं. जैसे अलग-अलग तरह के इन्फेक्शन जिनमें वायरल इन्फेक्शन भी शामिल है.
लक्षण
बच्चे पैदा होने के समय से ही नॉर्मल बोलने या सुनने का पैटर्न फॉलो करते हैं. जैसे 1 से 2 महीने का बच्चा भी बहुत जोर से आवाज़ आने से चौंक जाता है. 6 से 8 महीने के बच्चे कहां से आवाज़ आ रही है, ये देखने की कोशिश करते हैं. 12 से 14 महीने के बच्चे उनका नाम बुलाने पर मुड़कर देखते हैं. वो कुछ शब्द बोलना शुरू कर देते हैं आवाज़ के साथ. जैसे बाबा-मामा.
अगर मां-बाप ये सारी चीज़ें बच्चों में नहीं देखते हैं तो उन्हें ENT स्पेशलिस्ट से राय लेनी चाहिए. साथ ही ऑडियोलॉजिस्ट और स्पीच थेरेपिस्ट से सही जांच करवानी चाहिए.

सुनाई न देने के पीछे क्या कारण होते हैं, क्या लक्षण हैं जो आपको मिस नहीं करने हैं, ये आपने जान लिया. अब बात करते हैं बचाव की. किन चीज़ों का आपको ध्यान रखना है. साथ ही इसका इलाज क्या है.
बचाव
30 प्रतिशत से ज़्यादा बच्चों में हियरिंग लॉस बैक्टीरिया या इन्फेक्शन के कारण होता है. ये इन्फेक्शन वैक्सीन से रोके जा सकते हैं. बाकी इन्फेक्शन सफ़ाई रखने से रोके जा सकते हैं. अगर इन्फेक्शन हो गया है तो सही समय पर इलाज लेना ज़रूरी है. पैदा होने पर अगर हियरिंग लॉस होता है तो उसे बचाया जा सकता है. उसके लिए मां को प्रेग्नेंसी के दौरान ओटोटॉक्सिक ड्रग्स से परहेज़ करना चाहिए. ये एक तरह के एंटीबायोटिक होते हैं.
इलाज
हियरिंग लॉस का सही समय पर पता चलना बहुत ज़रूरी है. न्यूबॉर्न और चाइल्डहुड हियरिंग स्क्रीनिंग एंड असेसमेंट बहुत ज़रूरी टेस्ट हैं जो करवाने चाहिए. अगर हियरिंग लॉस परमानेंट नहीं है, वो ठीक हो सकता है तो ENT स्पेशलिस्ट को दिखाएं.

-पर अगर हियरिंग लॉस परमानेंट है तो इस केस में सुनने में मदद करने के लिए मशीन उपलब्ध है
-अगर हियरिंग लॉस बहुत ही सीरियस है तो उसमें कॉक्लियर इम्प्लांट्स लगवाना काफ़ी मददगार साबित हो सकता है
-कुछ कंडीशंस में बोन कंडक्शन इम्प्लान्ट्स का उपयोग भी किया जा सकता है
-इम्प्लान्ट्स और सुनने वाली मशीनों के अलावा स्पीच एंड लैंग्वेज इंटरवेंशन थेरेपी भी बहुत ज़रूरी है
उम्मीद है कि ये जानकारियां आपके काम ज़रूर आएंगीं. लक्षणों और बचाव पर ख़ास तवज्जो दीजिएगा.
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