वो टेस्ट जिसमें महिला खिलाड़ियों को साबित करना पड़ता है कि वो महिला हैं
तापसी पन्नू की आने वाली फिल्म 'रश्मि रॉकेट' स्पोर्ट्स में होने वाले जेंडर वेरिफिकेशन टेस्ट पर बात करती है.
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रश्मि रॉकेट. तापसी पन्नू की नई फ़िल्म आ रही है. 23 सितंबर को इस फ़िल्म का ट्रेलर
आया. कहानी एक महिला खिलाड़ी के संघर्षों पर बात करती है. स्पोर्ट्स चुनने पर परिवार-समाज के तानों, मुश्किल ट्रेनिंग के बाद जब लगता है कि अब रास्ता आसान है तब जेंडर वेरिफिकेशन जैसी चीज़ें उनका रास्ता रोकने लगती हैं. फिल्म की कहानी इसी के इर्द गिर्द घूमती है. पर ये जेंडर वेरिफिकेशन है क्या? ये टेस्ट असल में फीमेल एथलीट का जेंडर कंफर्म करने के लिए किया जाता है. एंड्रोजन ऐसे हॉर्मोन्स का समूह है जिससे किसी पुरुष को पुरुषों वाले फीचर्स मिलते हैं. उदाहरण के लिए फ्लैट चेस्ट, छाती-शरीर-चेहरे पर बाल, आवाज़ आदि. एंड्रोजन का सबसे प्रमुख हॉर्मोन है टेस्टोस्टेरॉन. वैसे तो ये पुरुष हॉर्मोन माना जाता है लेकिन महिलाओं में भी ये हॉर्मोन एक तय अमाउंट में पाया जाता है.
जब किसी महिला एथलीट की परफॉर्मेंस और उसकी फिज़ीक को लेकर सवाल उठते हैं तब उनका ब्लड टेस्ट होता है. उसमें टेस्टोस्टेरॉन लेवल्स की जांच की जाती है. टेस्टोस्टेरॉन लेवल्स सामान्य से ज्यादा होने पर उनका DNA टेस्ट होता है. उन्हें गायनेकॉलॉजिकल एग्जामिनेशन जैसे असहज करने वाले टेस्ट्स से गुज़रना पड़ता है, जिसमें उनके जननांगों की जांच होती है, उनके ब्रेस्ट्स के आकार की जांच होती है. इस टेस्ट्स का मकसद ये देखना होता है कि कहीं महिला के शरीर में सेकंडरी सेक्स यानी पुरुष के फीचर्स प्रॉमिनेंट तो नहीं हैं. अगर किसी प्लेयर में ऐसा पाया जाता है तो उनके लिए इंटरसेक्स शब्द का प्रयोग किया जाता है.
रश्मि रॉकेट का वो सीन जिसमें तापसी पन्नू का जेंडर वेरिफिकेशन टेस्ट किया जाता है.
कई स्पोर्ट्स इवेंट में महिला एथलीट्स पर केवल इस आधार पर भी बैन लगा दिया जाता है कि उनके शरीर में टेस्टोस्टेरॉन की मात्रा अधिक है. इस कंडीशन को हाइपरएंड्रोजेनिज़्म कहा जाता है. इसके चलते महिलाओं के शरीर और चेहरे पर घने बाल आने लगते हैं, उनकी आवाज़ मोटी होने लगती है और उनके चेहरे में दाने भी आने लगते हैं. इस कंडीशन में पीरियड्स इर्रेगुलर हो जाते हैं और प्रेग्नेंसी में भी कॉम्प्लिकेशंस हो जाती हैं. क्या असल जिंदगी पर बेस्ड लगती है रश्मि रॉकेट? फिल्म का ट्रेलर इसी डेक्लेरेशन के साथ शुरू होता है कि कहानी कई महिला एथलीट्स की ज़िंदगी पर आधारित है, जिन्हें जेंडर वेरिफेकेशन टेस्ट के अनुभव से गुज़रना पड़ा. इस तरह के सबसे चर्चित केस की बात करें तो फिल्म की कहानी स्टार एथलीट दुती चंद की कहानी से काफी मिलती सी लगती है. साल 2014 में दुती ने ताईपेई में आयोजित एशियन जूनियर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में दो गोल्ड मेडल जीते थे. एक 100 मीटर रेस में और एक 400 मीटर रिले रेस में. वो सिर्फ 18 साल की थीं और इस जीत के बाद दुती उस साल ग्लासगो में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी कर रही थीं, उनसे पूरे देश को काफी उम्मीद थी. लेकिन आखिरी वक्त में उन्हें बाहर कर दिया गया. इसके लिए हाइपरएंड्रोजेनिज्म को वजह बताया गया. उस साल उन्हें एशियन गेम्स में भी शामिल नहीं होने दिया गया.
इन फैसलों के खिलाफ दुती ने कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट्स में याचिका लगाई. याचिका एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया और इंटरनैशनल असोसिएशन ऑफ एथलेटिक्स फेडरेशन (IAAF) के खिलाफ लगाई गई थी. जुलाई, 2015 में फैसला आया. और हाइपरएंड्रोजेनिज़्म को लेकर IAAF की पॉलिसी को रद्द किया गया. इसके बाद दुती ने फिर से ट्रैक पर कदम रखा और बेहतरीन परफॉर्म किया. साल 2018 में जकार्ता हुए एशियाई खेलों में दुती ने दो सिल्वर मेडल जीते थे.
दुती ने एक इंटरव्यू में कहा था,
"जब ये खबर आई तो तमाम लोगों ने मुझसे खेल छोड़ देने को कहा, ये मेरे लिए कल्पना से परे था कि जिस दौड़ को मैं 3 साल की उम्र से अपना पैशन मान बैठी थी, उसे अचानक कैसे छोड़ दूं. मुझे सुनने में आया कि लोग ये बहस कर रहे हैं कि मैं लड़की हूं या लड़का. मेरी मां को पड़ोसियों ने बताया कि मैं एक लड़का हूं इसीलिए मुझे गेम से बाहर कर दिया गया है."वो कहती हैं कि उन्होंने तो हाइपरएंड्रोजेनिज्म के बारे में पहले सुना तक नहीं था. उनके परिवार वालों के सामने कई सवाल खड़े हो गए कि उनकी शादी कैसे होगी. उनका घर कैसे चलेगा. कहीं रेलवे की उनकी जॉब न चली जाए. क्या हैं विश्व एथलेटिक्स के नियम? 1 नवंबर, 2018 से लागू नियम के मुताबिक, किसी भी इंटरनैशनल एथलेटिक्स इवेंट में हिस्सा लेने के लिए ये ज़रूरी है कि एक महिला खिलाड़ी अपने टेस्टोस्टेरॉन का स्तर कंट्रोल में रखे. इसकी सीमा 5 nmol\l है. नियमों के मुताबिक, खिलाड़ी अपने डॉक्टर और मेडिकल टीम की सलाह के आधार पर टेस्टोस्टेरॉन लेवल कंट्रोल में रखने के लिए दवाएं ले सकती हैं.
All I will say is…. Just remember this line and wait for 23rd September :) And advance mein THANK YOU I really worked hard for this compliment 🙏🏽 https://t.co/O5O8zMRzP0
— taapsee pannu (@taapsee) September 20, 2021
जेंडर को लेकर बवाल अक्सर उन जगहों पर बहुत पेचीदा होता है जहां पर 'शारीरिक क्षमता' बवाल के केंद्र में होती है. दोनों पक्षों के अपने तर्क हैं. खेलों में तो ख़ासकर, शारीरिक क्षमता के हिसाब से श्रेणियों में खेल को बांटना, एक लंबे समय से विवाद में रहा है. वो चाहे 1938 में हाई जंपर डोरा रेजन का मामला हो या पिछले साल का दक्षिण अफ्रीका धावक कास्टर सेमेन्या का. या फिर भारत की स्टार स्प्रिंटर दुती चंद का..