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कोई रेप का झूठा आरोप लगाए, तो कानून की मदद किस तरह ली जा सकती है

बता रहे हैं मामलों के एक्सपर्ट वकील.

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(सांकेतिक तस्वीर)
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8 सितंबर 2020 (Updated: 9 सितंबर 2020, 07:24 IST)
Updated: 9 सितंबर 2020 07:24 IST
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सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है. इस वीडियो में तीन-चार लोग एक महिला को घेरकर खड़े हैं. इसी वीडियो में महिला चीखकर कहती है, ‘आई विल पुट यू ऑन अ रेप केस’ (मैं तुम पर रेप का केस लगा दूंगी).
वीडियो में गालियां हैं. इसलिए हम उसे यहां नहीं लगा रहे.
Bengaluru Rape Case वायरल वीडियो का एक स्क्रीनशॉट. (तस्वीर: ट्विटर)


क्या है पूरा मामला
हमने बात की प्रिया आर्या से. ये एक्टिविस्ट हैं. इन्होंने इस मामले में बेंगलुरु पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराई है. उन्होंने बताया कि वीडियो में दिख रही महिला का नाम संगीता है. प्रिया के मुताबिक़, संगीता के पति का बिजनेस है, जिससे जुड़े लोन के सिलसिले में पेमेंट मांगने ये लोग आए थे, जो वीडियो में दिख रहे हैं. उनको धमकाते हुए संगीता कह रही हैं कि वो उस व्यक्ति पर रेप चार्ज लगाएंगी.
मामला पुराना है. पिछले साल का. लेकिन ये वीडियो अब वायरल हो रहा है.
कानून क्या कहता है?
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 में बलात्कार के अपराध की सजा बताई गई है. इसमें रेप करने वाले अपराधी के लिए कम से कम सात साल की सज़ा का प्रावधान है. कुछ मामलों में ये सजा मिनिमम 10 साल की भी हो सकती है.
NCRB ( नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो) के अनुसार, रेप के दर्ज मामलों में हर चौथी विक्टिम नाबालिग होती है. यही नहीं, लगभग 94 फीसदी मामलों में रेप करने वाले अपराधी विक्टिम के जान-पहचान वाले होते हैं. लब्बोलुआब ये कि बलात्कार की समस्या गंभीर है. और ये डेटा तो तब है, जब रेप के कई मामले रिपोर्ट ही नहीं हो पाते. ऐसे में फॉल्स रेप केस लगाने की बात कहना एक गंभीर मुद्दे की ओर से ध्यान भटकाता है.
Violence India Today (सांकेतिक तस्वीर)


फॉल्स रेप केस के मामले में क्या होता है?
ये समझने के लिए हमने बात की अश्विन पंतुला से. ये लॉयर हैं. इन्होंने बताया कि अगर किसी व्यक्ति पर रेप केस के झूठे चार्ज लगते हैं, तो उसके पास तीनों स्थिति में ऑप्शन होते हैं :

पहला, अरेस्ट होने के पहले.

दूसरा, चार्जशीट फ़ाइल होने के बाद.

तीसरा, बरी होने के बाद.

अगर किसी व्यक्ति को ऐसा लगता है कि उसके खिलाफ ऐसा चार्ज लगाया जा सकता है, तो वो पहले ही एक्शन लेकर खुद को तैयार कर सकता है इस मामले से डील करने के लिए. ऐसा कई मामलों में नहीं हो पाता. लेकिन फिर भी इन ऑप्शन में क्या होता है, आप  यहां समझ लीजिए.
अरेस्ट होने से पहले आप अग्रिम जमानत (anticipatory bail) के लिए याचिका दाखिल कर सकते हैं, ताकि पुलिस कस्टडी में आपको परेशान न किया जाए.
अरेस्ट होने या चार्जशीट फ़ाइल होने के बाद दो ऑप्शन होते हैं-

(1)

पहला, कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीडिंग (CrPC) के सेक्शन 482 के तहत एप्लीकेशन दी जा सकती है. FIR में लगी आपराधिक कार्यवाही (criminal proceedings) को खारिज कराने की. अगर आरोपी ये साबित कर दे कि उसके खिलाफ प्रथम दृष्टतया (Prima Facie) कोई केस नहीं बनता. या फिर ये सुबूत दे कि आरोप बिल्कुल असम्भाव्य हैं. या ये साबित कर दे कि ये पूरी प्रक्रिया उसे परेशान करने की बुरी नीयत के साथ शुरू की गई है. अगर हाई कोर्ट को ये लगता है कि एप्लीकेशन देने वाला व्यक्ति इन में से किसी भी शर्त को पूरा करता है, तो वो अपने अधिकार के तहत FIR की आपराधिक कार्यवाही को खारिज कर सकता है.

(2)

दूसरा. हाई कोर्ट के सामने रिट याचिका दायर करना. ये उन मामलों में होता है, जब ये आशंका हो कि इस मामले में पुलिस या निचली अदालत के साथ मिलकर आरोपी पर कार्यवाही की जा रही है. हाई कोर्ट संबंधित अधिकारियों के लिए आदेश जारी कर सकता है कि वो अपनी ड्यूटी उचित रूप से निभाएं. या फिर वो रिट ऑफ प्रोहिबिशन (निषेधाज्ञा का अधिकार) जारी कर निचली अदालत में चल रही आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगा सकता है. इसके लिए भारतीय संविधान का अनुच्छेद 226 अदालत को इजाज़त देता है.
बरी होने के बाद व्यक्ति के पास क्या विकल्प हैं?
अगर किसी पर ऐसा झूठा आरोप लगता है, और कोर्ट उसे बरी कर दे, तो उसके बाद किसी भी व्यक्ति के पास कानूनन ये विकल्प होते हैं:
1. IPC की धारा 211 के तहत मामला. इस धारा के तहत व्यक्ति FIR दर्ज करवा सकता है. इस आरोप के साथ कि उसके खिलाफ झूठी आपराधिक कार्यवाही शुरू की गई, उसे नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से. इस मामले में सात साल तक की जेल हो सकती है.
2. IPC की ही धारा 182. इस धारा के अनुसार उन लोगों को सजा दी जाती है, जो किसी भी नागरिक अधिकारी को झूठी जानकारी देते हैं, किसी निर्दोष व्यक्ति को फंसाने के लिए. इसमें अधिकतम छह महीने की जेल हो सकती है.
3. IPC की धारा 499- 500 के तहत आपराधिक मानहानि (क्रिमिनल डिफेमेशन) का मुकदमा दायर किया जा सकता है. इसमें अधिकतम दो साल की जेल होती है.
4. मानहानि का सिविल मुकदमा भी दायर करना एक विकल्प है. इसमें जिस व्यक्ति पर आरोप लगे, वो अपनी इज्जत को हुए नुकसान के लिए आर्थिक मुआवजे की मांग कर सकता है. मुआवजे की कीमत इस बात पर निर्भर करती है कि उस व्यक्ति की समाज में क्या स्थिति थी.
बेंगलुरु के संगीता मामले में प्रिया आर्या ने जानकारी दी है. कि इस मामले को लेकर संगीता ने सोशल मीडिया पर वादा किया था कि वो लाइव आकर पूरी जानकारी देंगी. लेकिन संगीता ने कथित रूप से अपने सभी सोशल मीडिया अकाउंट डिसएबल कर दिए हैं.


वीडियो:NCB ने ड्रग केस में रिया चक्रवर्ती को गिरफ्तार किया 

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