आर्मेनिया. पूर्व सोवियत संघ का हिस्सा रहा है. इस वक्त पड़ोसी देश अज़रबैजान के साथ जंग लड़ रहा है. वहां के प्रधानमंत्री हैं निकोल पाश्नियान. उनकी पत्नी एना हकोब्यान अपनी मिलिट्री ट्रेनिंग को लेकर चर्चा में हैं. एना ने फेसबुक पोस्ट डालकर अपनी कॉम्बैट ट्रेनिंग के बारे में बताया. एना के साथ 12 और महिलाएं ये प्रशिक्षण ले रही हैं. ये सभी जंग में मोर्चा लेने की तैयारी कर रही हैं. आइए, बताते हैं इसी के बारे में पूरी जानकारी के साथ-

आगे बढ़ने से पहले एना के बारे में जान लीजिए
एना हकोब्यान आर्मेनिया में ही जन्मीं, साल था 1978. येरेवान स्टेट यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की. उसके बाद जर्नलिज्म में आ गईं. अभी आर्मेनिया के सबसे बड़े अखबार ‘आर्मेनियन टाइम्स’ की एडिटर इन चीफ हैं. साल 2018 में आर्मेनिया में विरोध प्रदर्शन हुए थे, राष्ट्रपति के खिलाफ. एना ने उनमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. उनके पति निकोल पाश्नियन भी इन प्रदर्शनों में शामिल थे. वह भी येरेवान यूनिवर्सिटी में जर्नलिज्म के स्टूडेंट रहे हैं. इन विरोध प्रदर्शनों को वेलवेट रिवॉल्यूशन नाम दिया गया. इनके खत्म होने के बाद निकोल प्रधानमंत्री चुन लिए गए. एना उनकी पत्नी के तौर पर ‘स्पाउस ऑफ द पीएम’ टाइटल की हकदार हुईं.

एना को अनाधिकारिक रूप से आर्मेनिया की फर्स्ट लेडी भी कहा जाता है. जबकि आमतौर पर ये पद राष्ट्रपति के पार्टनर का माना जाता है. आर्मेनिया में चूंकि सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री हैं, इसलिए उनकी पब्लिक अपील ज्यादा है. लोगों के बीच एना काफी पॉपुलर हैं, इसलिए कई बार इन्हें फर्स्ट लेडी ऑफ आर्मेनिया कहा जाता है. हालांकि तकनीकी रूप से ये टाइटल नूनेह सार्किसियन का है, जो राष्ट्रपति आर्मेन सार्किसियन की पत्नी हैं.
ट्रेनिंग की क्या ज़रुरत पड़ गई?
ट्रेनिंग शुरू करने से पहले एना ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा,
13 महिलाओं का डिटैचमेंट, जिसमें मैं भी शामिल हूं, मिलिट्री ट्रेनिंग शुरू करेगा. कुछ दिनों में हम अपनी सीमाओं की सुरक्षा में भागीदारी करने के लिए निकलेंगे. हमारी मातृभूमि और आत्मसम्मान दुश्मन के सामने कभी समर्पित नहीं किए जाएंगे.
समाचार एजेंसी AFP के मुताबिक़, इसी साल अगस्त में भी एना ने कॉम्बैट ट्रेनिंग की थी. इसमें फिजिकल ट्रेनिंग और हथियारों की ट्रेनिंग दी गई थी.

किस दुश्मन की बात हो रही है यहां?
अज़रबैजान. कैस्पियन सागर के तट पर बसा देश. जिसके उत्तर में रूस है और दक्षिण में ईरान. पश्चिम में आर्मेनिया है. और झगड़ा भी यहीं है. मामला भारत-पाकिस्तान और कश्मीर जैसा है. आर्मेनिया ईसाई बहुल देश है और अज़रबैजान मुस्लिम बहुल. 100 साल पहले यानी पहले विश्वयुद्ध के वक्त ये पूरा इलाका एक ही देश था, और ट्रांस-कॉकेशियन फेडरेशन का हिस्सा था. 1918 में पहला विश्वयुद्ध खत्म हुआ तो तीन देश बना दिए गए– आर्मेनिया, अज़रबैजान और जॉर्जिया.

अब एक तरफ वर्ल्ड वॉर खत्म हो रहा था, दूसरी तरफ रूस में बॉल्शेविक क्रांति हो रही थी. 1920 के दशक में जोसेफ स्टालिन ने अज़रबैजान और जॉर्जिया को भी सोवियत संघ यानी USSR में शामिल कर लिया. दोनों देशों की नई सरहद खींची गई. बस झगड़ा यहीं से शुरू हुआ. दोनों देशों के बीच एक पहाड़ी इलाका है. नाम है नगोरनो काराबाख. यह 4,400 वर्ग किलोमीटर में फैला है. परंपरागत रूप से यहां ईसाई धर्म मानने वाले आर्मेनियन मूल के लोग रहते हैं. कुछ तादाद में तुर्की मूल के मुस्लिम भी हैं.
सरहद तय करते वक्त जोसेफ स्टालिन ने एक बदमाशी कर दी. आर्मेनियाई मूल के लोगों के इलाके नगोरनो काराबाख को मुस्लिम बहुल अज़रबैजान के साथ मिला दिया. नगोरना काराबाख अज़रबैजान का एक स्वायत्त इलाका बन गया. इसमें 94 फीसदी लोग आर्मेनियाई मूल के थे. इसके बाद भी झगड़ा चलता रहा. जैसे-जैसे USSR कमज़ोर होता गया, आर्मेनिया और अज़रबैजान का झगड़ा बढ़ता गया.
हालांकि, दुनिया ने नागोरनो काराबाख को आज़ाद नहीं माना. और फिर 1992 में युद्ध शुरू हो गया. ये युद्ध 2 साल तक चलता रहा. 30 हजार लोगों की इसमें मौत हुई. धार्मिक आधार पर लोगों का कत्लेआम हुआ. लाखों लोगों ने इलाका छोड़ दिया. बाद में रूस के दखल से दोनों देशों के बीच सुलह हुई. युद्धबंदी में तो ये होता है कि जिसके पास जो इलाका है, वो उसके पास ही रहेगा. तो नगोरनो-काराबाख अज़रबैजान से आज़ाद हो गया, खुद को एक आज़ाद मुल्क घोषित भी कर दिया, लेकिन दुनिया के किसी देश ने मान्यता नहीं दी. वहां आर्मेनिया का दखल बना रहा. इस साल सितंबर में झगड़ा बढ़ने के बाद दोनों देश जंग में कूद पड़े. यहां पढ़िए- आर्मेनिया और अज़रबैजान के झगड़े की पूरी कहानी
वापस बात महिलाओं और कॉम्बैट ड्यूटी की
दुनिया के कई देशों में महिलाएं कॉम्बैट ड्यूटी करती हैं. जैसे- इजरायल, जर्मनी, फिनलैंड, डेनमार्क, ऑस्ट्रेलिया आदि. कॉम्बैट ड्यूटी का मतलब दुश्मन का सीधे सामना करना. इसमें फिजिकल तौर पर दुश्मन के संपर्क में आने की पूरी आशंका होती है. भारत की बात करें तो अगस्त 2020 में खबर आई थी कि असम राइफल्स की राइफल विमेन यूनिट को LoC पर भेजा गया था. ये कॉम्बैट ड्यूटी ही है. ऐसा पहली बार हुआ था. इससे पहले भारतीय आर्मी की इन्फैंट्री या आर्टिलरी विंग में महिलाओं को कॉम्बैट ड्यूटी नहीं दी जा रही थी.
वीडियो: अज़रबैजान और आर्मेनिया की लड़ाई में सीजफायर के बावजूद नहीं रुके हमले