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संविधान के बनाने में इन 15 महिलाओं के योगदान के बारे में कितना जानते हैं आप?

संविधान दिवस पर राष्ट्रपति कोविंद ने अपने भाषण में इन महिलाओं को याद किया.

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हमारे संविधान का ड्राफ़्ट 392 डेलीगेट्स ने तैयार किया था, जिनमें 15 महिलाएं भी थीं.
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26 नवंबर 2021 (Updated: 27 नवंबर 2021, 07:31 IST)
Updated: 27 नवंबर 2021 07:31 IST
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आज संविधान दिवस है. 1949 में आज ही के दिन भारत की संविधान सभा ने संविधान को अपनाया था. लागू 2 महीने बाद, 26 जनवरी 1950 को हुआ था - जिस दिन हम गणतंत्र दिवस मनाते हैं. शुक्रवार 26 नवंबर यानी संविधान दिवस के मौके पर संसद के सेंट्रल हॉल में भाषण देते हुए भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा,
"हमारे देश में न केवल महिलाओं को शुरुआत से वोट देने का अधिकार था, बल्कि बहुत सारी महिलाएं संविधान सभा की सदस्य भी थीं. उन्होंने संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है."
हमारे संविधान का ड्राफ़्ट 392 डेलीगेट्स ने तैयार किया था, जो विविध समुदायों से थे. बंटवारे के बाद ये संख्या घट कर 299 हो गई. इन डेलीगेट्स में 15 महिलाएं भी थीं. आज इन्हीं मॉडर्न-इंडिया मेकर्स की बात करेंगे.
पीआरएस इंडिया के एक अध्ययन के मुताबिक़, संविधान सभा की 15 महिलाओं में से केवल 10 ने संविधान सभा की बहसों में भाग लिया.
# सुचेता कृपलानी
भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री. जन्म हरियाणा के अंबाला शहर में साल 1908 में हुआ. पिता सरकारी डॉक्टर थे. सरकारी डॉक्टर थे तो हर 2-3 साल में तबादला होता रहता था. इस वजह से सुचेता की शुरुआती शिक्षा कई स्कूलों से हुई. आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली आईं. दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इतिहास में एमए किया.
सूचेता कृपलानी
सुचेता कृपलानी

साल 1940 में सुचेता कृपलानी ने कांग्रेस पार्टी की महिला विंग की स्थापना की. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई और उस दौरान जेल भी गईं. 1946 में वो संविधान सभा की सदस्य के रूप में चुनी गईं. आज़ादी के बाद, 1962 में कृपलानी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ा और कानपुर से चुनी गईं. उन्हें श्रम, सामुदायिक विकास और उद्योग विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया. इसके बाद साल 1963 में वो भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री चुनी गईं. कृपलानी उन चंद महिलाओं में से हैं, जिन्होंने महात्मा गांधी के साथ देश की आज़ादी की नींव रखी.
# सरोजनी नायडू

"जब आपको अपना झंडा संभालने के लिए किसी की आवश्यकता हो और जब आप आस्था के अभाव से पीड़ित हों, तब भारत की नारी आपका झंडा संभालने और आपकी शक्ति को थामने के लिए आपके साथ होगी."

ये कथन है सरोजिनी नायडू का. वही सरोजिनी नायडू जिन्हें जीके की किताबों में हमने 'नाइटेंगल ऑफ़ इंडिया' के नाम से पढ़ा है. जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ. 12 साल की उम्र में ही मैट्रिक पास कर लिया. फिर मद्रास प्रेसीडेंसी में पहला स्थान हासिल किया था. 16 साल की हुईं तो इंग्लैंड गईं. वहां पहले उन्होंने किंग कॉलेज लंदन में दाख़िला लिया. उसके बाद कैम्ब्रिज के ग्रीतान कॉलेज से पढ़ाई की.
1914 में इंग्लैंड में ही वो पहली बार गांधी से मिलीं और उनके विचारों से प्रभावित होकर देश के लिए प्रतिबद्ध हो गईं. उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन समेत कई राष्ट्रीय आंदोलनों का नेतृत्व किया और जेल भी गईं. 1925 में नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं. 1974 में उन्हें भारतीय राज्य का गवर्नर नियुक्त किया गया.
सरोजनी नायडू
सरोजनी नायडू

राजनीति के साथ-साथ नायडू साहित्य में भी ख़ूब सक्रिय रहीं. उन्होंने देशभक्ति, रोमांस और त्रासदी जैसे गंभीर विषयों के साथ-साथ बच्चों के लिए भी कई कविताएं लिखीं.
# राजकुमारी अमृत कौर
राजकुमारी अमृत कौर
राजकुमारी अमृत कौर (तस्वीर - विकिमीडिया कॉमन्स)

आज़ाद भारत की पहली हेल्थ मिनिस्टर. जन्म 2 फरवरी 1889 को लखनऊ में हुआ था. राजकुमारी क्यों? क्योंकि पिता राजा हरनाम सिंह पंजाब के कपूरथला राज्य के राजसी परिवार से थे. अमृत कौर ने इंग्लैंड के शेरबोर्न स्कूल फॉर गर्ल्स से स्कूली पढ़ाई पूरी की. अपने स्कूल में जबर्दस्त खिलाड़ी रहीं. हॉकी से लेकर क्रिकेट तक खेला. उसके बाद ऑक्सफ़ोर्ड चली गईं. 1918 में वापस आईं तो देश का माहौल देखा. जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के बाद राजकुमारी अमृत कौर ने ठान लिया कि पॉलिटिक्स में आकर रहेंगी. 1927 में मार्गरेट कजिन्स के साथ मिलकर उन्होंने ऑल इंडिया विमेंस कांफ्रेंस की शुरुआत की. बाद में इसकी प्रेसिडेंट भी बनीं.
जब देश आज़ाद हुआ, तब उन्होंने यूनाइटेड प्रोविंस के मंडी से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा. और जीतीं. आज़ाद भारत के पहले कैबिनेट में हेल्थ मिनिस्टर बनीं. बतौर स्वास्थ्य मंत्री अमृत कौर ने एक ऐसा संस्थान स्थापित करवाया, जो आज देश के सबसे महत्वपूर्ण अस्पतालों में से एक है, ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ यानी AIIMS.
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# दक्षिणायनी वेलायुधन
समिति की सबसे कम उम्र की सदस्य. कोचीन के पुलाया समुदाय से आने वाली दक्षिणायनी वेलायुधन के नाम के साथ कई 'फ़र्सट' और 'ओनली' के खिताब हैं. संविधान सभा के लिए चुनी जाने वाली वो इकलौती दलित महिला थीं. अपने समुदाय की फ़र्स्ट-जेनरेशन शिक्षित और 'अपर क्लोथ' पहनने वाली पहली महिलाओं में से एक थीं. 20वीं सदी की शुरुआत में केरल समाज में हुई सामाजिक-राजनैतिक उथल-पुथल ने उनके जीवन और विचारों को आकार दिया. डॉ. अम्बेडकर के साथ उन्होंने सभा की बहसों में जाति संबंधी कई मुद्दों को बहस का प्रमुख हिस्सा बनाया. दक्षिणायनी, महज़ 34 साल की थीं जब सभा के लिए चुनी गईं.
विजयलक्ष्मी पंडित
विजयलक्ष्मी पंडित

# विजयलक्ष्मी पंडित
जवाहरलाल नेहरू की बहन कहना विजयलक्ष्मी पंडित के योगदान को बहुत कम कर देता है. विजयलक्ष्मी 1937 में ही ब्रिटिश इंडिया के यूनाइटेड प्रोविन्सेज में कैबिनेट मंत्री बनी थीं. इलाहाबाद से अपनी पढ़ाई शुरू की. बाद में गांधी और नेहरू के साथ स्वतंत्रता संग्राम में लड़ीं. पहले डैडी मोतीलाल नेहरू और बाद में भाई जवाहरलाल नेहरू के साथ राजनीति में सक्रिय रहीं. 1946 में संविधान सभा में चुनी गईं. औरतों की बराबरी से जुड़े मुद्दों पर अपनी राय रखी और बातें मनवाईं. 1953 में यूएन जनरल असेंबली की प्रेसिडेंट रहीं. मतलब पहली महिला, जो वहां तक पहुंची भारत का सिक्का जमाने.
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# पूर्णिमा बनर्जी
"हम भारत के लोग." भारत के संविधान की शुरुआत इन्हीं शब्दों से होती है. ये शब्द पूर्णिमा बनर्जी के सुझाव पर ही डाले गए थे.
इलके अलावा, एक और अहम परिचय है. महिला आरक्षण पर बहस पुरानी है. पूर्णिमा बनर्जी ने बहस के दौरान महिलाओं के हक़ में कहा था,
"भले ही महिलाएं अपने लिए कोई आरक्षित सीट नहीं चाहती हों, फिर भी, उनके द्वारा खाली की गई कोई भी सीट केवल महिलाओं द्वारा ही भरी जानी चाहिए."
समाजवादी विचारधारा से प्रेरित पूर्णिमा बनर्जी उत्तर प्रदेश में आज़ादी की लड़ाई के लिए बने महिला समूह की सदस्य थीं. किसान सभाओं, ट्रेंड यूनियनों की व्यवस्था और ग्रामीणों से जुड़े मुद्दों पर ख़ूब काम किया. वो इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कमेटी की सचिव थीं. 1930 के दशक के अंत में पूर्णिमा बनर्जी स्वतंत्रता आंदोलन में सबसे आगे की क़तार में थीं. उन्हें सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में भागीदारी के लिए गिरफ्तार किया गया. शहर समिति के सचिव के रूप में पूर्णिमा बनर्जी ट्रेड यूनियनों, किसान मीटिंग्स और अधिक ग्रामीण जुड़ाव की दिशा में काम करने और संगठित करने का दायित्व भी उनके ऊपर था.
# अम्मू स्वामीनाथन
मद्रास निर्वाचन क्षेत्र से चुनी गई थीं. अम्मू स्वामीनाथन ने दमनकारी जाति व्यवस्था के ख़िलाफ़ मोर्चा बुलंद किया और कई जाति-संबंधी मुद्दों के लिए अम्बेडकर के साथ रहीं. अगड़ी जाति की महिला होने के नाते, अम्मू ने जाति की बुराई को पहचाना और जवाहरलाल नेहरू की आलोचना भी की. संविधान सभा की बहस में उन्होंने कहा था,
"बाहर के लोग कह रहे हैं कि भारत ने अपनी महिलाओं को बराबर अधिकार नहीं दिए हैं. हम ये ऐतबार से कह सकते हैं कि जब भारतीय लोग स्वयं अपने संविधान को तैयार करते हैं तो उन्होंने देश के हर नागरिक के बराबर महिलाओं को अधिकार दिए हैं."
# बेगम एजाज़ रसूल
बेगम एजाज रसूल
बेगम एजाज़ रसूल

भारत की संविधान समिति में इकलौती मुस्लिम महिला. अवध (यूपी) के प्रभावशाली तालुकदारों के परिवार से आने वालीं, उन कुछ महिलाओं में से एक थीं, जिन्होंने एक गैर-आरक्षित सीट से चुनाव लड़ा और यूपी विधानसभा के लिए चुनी गईं. साल 1950 में, भारत में मुस्लिम लीग भंग होने के बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गईं.
बेगम एजाज़ रसूल जीवन भर राजनीतिक परिदृश्य में सक्रिय रहीं. ऐसे समय में जब सांप्रदायिक तनाव लगातार बढ़ रहा था, एजाज़ रसूल ने 'लीग' से हट कर बात की. उन्होंने मुसलमानों के लिए 'सेपरेट इलेक्टोरेट्स' का मुखर विरोध किया. और कहा कि इलेक्टोरेट्स केवल मेजौरीटी और माइनौरिटी के बीच तनाव बढ़ाएंगे.
1952 में राज्यसभा के लिए चुनी गईं. 1969 और 1971 के बीच, समाज कल्याण और अल्पसंख्यक मंत्री रहीं. 2000 में सामाजिक कार्यों में उनके योगदान के लिए उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था.
 
# कमला चौधरी
जन्म लखनऊ के एक संपन्न परिवार में हुआ था. परिवार शाही सरकार का वफादार था. कमला चौधरी को अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए संघर्ष करना पड़ा. परिवार से बग़ावत कर ली. राष्ट्रवादियों में शामिल हो गईं और 1930 में गांधी द्वारा शुरू किए गए नॉन कॉपरेशन मूवमेंट में आंदोलनरत हो गईं.
कमला चौधरी
कमला चौधरी (शादी की तस्वीर)

54वें सत्र में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की उपाध्यक्ष बनीं और सत्तर के दशक के अंत में लोकसभा के सदस्य के रूप में चुनी गईं. कमला चौधरी एक प्रसिद्ध कथा लेखक भी थीं और उनकी कहानियां आमतौर पर महिलाओं की आंतरिक दुनिया और भारत के एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में उभरने से संबंधित थीं.
# हंसा जीवराज मेहता
हंसा जीवराज मेहता मौलिक अधिकार उप-समिति, सलाहकार समिति और प्रांतीय संवैधानिक समिति की सदस्य थीं. 15 अगस्त 1947 की आधी रात के कुछ मिनट बाद मेहता ने 'भारत की महिलाओं' की ओर से सभा को राष्ट्रीय झंडा प्रस्तुत किया था. संविधान सभा की बहस में मेहता ने यूसीसी को संविधान का न्यायोचित हिस्सा बनाने का ख़ूब प्रयास किया.
सरोजिनी नायडू ने उन्हें गांधी और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से मिलवाया. राजकुमारी अमृत कौर के साथ हंसा मेहता ने भारतीय महिला अधिकार और कर्तव्यों का चार्टर तैयार किया और यूसीसी के लिए लड़ाई लड़ी. विजयलक्ष्मी पंडित के साथ उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में महिलाओं की समानता और मानवाधिकारों पर काम किया.
# लीला रॉय
लीला रॉय
लीला रॉय

जन्म अक्टूबर 1900 में असम के गोलपाड़ा में हुआ था. पिता डिप्टी मजिस्ट्रेट थे और राष्ट्रवादी आंदोलन से जुड़े हुए थे. लीला ने साल 1921 में बेथ्यून कॉलेज से ग्रैजुएशन किया और ऑल बंगाल महिला उत्पीड़न समिति की सहायक सचिव बनीं. महिलाओं के अधिकारों की मांग के लिए लगातार लड़ाई की. साल 1923 में अपने दोस्तों के साथ उन्होंने दीपाली संघ और स्कूलों की स्थापना की जो राजनीतिक चर्चा के केंद्र बन गए, जिसमें कई बड़े नेताओं ने भाग लिया. 1937 में कांग्रेस में शामिल हुईं और अगले ही साल बंगाल प्रांतीय कांग्रेस महिला संगठन की स्थापना की. लीला रॉय, सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित महिला उपसमिति की भी सदस्य थीं.
#दुर्गाबाई देशमुख

"एक ऐसा तंत्र जो हमें अधिकार देता है - उस तक पहुंचने के साधन के बिना - कोई मक़सद पूरा नहीं करता है, न ही ये उस काग़ज़ के लायक है जिस पर ये लिखा गया है."


दुर्गाबाई देशमुख
दुर्गाबाई देशमुख

ये कहना था दुर्गाबाई देशमुख का. एक स्वतंत्रता सेनानी, वकील, सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिज्ञ. लड़कियों के लिए बड़ी संख्या में सीटें आरक्षित करने की वक़ालत की और कहा लड़कियों की शिक्षा को सबसे ऊपर रखा जाना चाहिए. उन्होंने एक ही सत्य पर जोर दिया - कैसे एक प्रभावी उपाय के बिना एक अधिकार का कोई मतलब नहीं होता.
# रेणुका रे
रेणुका एक आईसीएस अधिकारी सतीश चंद्र मुखर्जी की बेटी थीं. 16 साल की उम्र में गांधी के आह्वान पर विदेशी शिक्षा का त्याग कर दिया. बाद में मां-बाप के आग्रह और गांधी जी की सलाह पर ही रेणुका ने लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से बीए की पढ़ाई पूरी की.
साल 1943 से साल 1946 तक वो केन्द्रीय विधान सभा, संविधान सभा और अनंतिम संसद की सदस्य रहीं. साल 1952 से 1957 तक उन्होंने पश्चिम बंगाल विधानसभा में राहत और पुनर्वास मंत्री के रूप में कार्य किया. इसके साथ ही वो साल 1957 में और फिर 1962 में मालदा से लोकसभा सांसद रहीं. 1959 में उनकी अगुवाई में समाज कल्याण और पिछड़ा वर्ग कल्याण के लिए एक समिति बनी. इस समिति की रिपोर्ट को रेणुका रे कमेटी के तौर पर जाना जाता है. इस समिति ने ही गृह मंत्रालय के अंतर्गत पिछड़ा वर्ग के लिए विभाग बनाने की सलाह दी थी.
# एनी मास्कारेन
एनी मास्कारेन
एनी मास्कारेन

जन्म 1902 में केरल के तिरुवनंतपुरम में एक लैटिन कैथोलिक परिवार में हुआ. पिता त्रावणकोर राज्य में अधिकारी थे. एनी ने इतिहास और अर्थशास्त्र में महाराजा कॉलेज तिरुवनंतपुरम से डबल एमए किया. इसके बाद कुछ समय श्रीलंका के सीलोन स्थित कॉलेज में पढ़ाया. पर वे जल्दी केरल लौट आईं.  इसके बाद उन्होंने क़ानून में स्नातक की डिग्री ली.
वो त्रावणकोर राज्य में स्वतंत्रता और भारतीय राष्ट्र के मर्जर के आंदोलनों में ख़ूब सक्रिय रहीं. 1951 में केरल के तिरुवनंतपुरम क्षेत्र से पहली लोकसभा का चुनाव जीतकर एनी मास्कोरन केरल की पहली महिला सांसद भी बनीं.
# मालती चौधरी
जन्म 1904 में पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) में एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ. साल 1921 में सोलह साल की उम्र में मालती चौधरी को शांति-निकेतन भेजा गया, जहां उन्हें विश्व भारती में भर्ती कराया गया. उन्होंने नाबकृष्ण चौधरी से विवाह किया, जो बाद में ओडिशा के मुख्यमंत्री बने और साल 1927 में ओडिशा चले गए. नमक सत्याग्रह के दौरान मालती चौधरी और उनके पति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और आंदोलन में भाग लिया. उन्होंने सत्याग्रह के लिए लोगों को प्रेरित किया.
और अब आखिर में एक कड़वा तथ्य. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की 2021 की ग्लोबल जेंडर-गैप रिपोर्ट के अनुसार, भारत अपनी संसद में महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने के मामले में 153 देशों में 122वें स्थान पर है.

(इस स्टोरी के लिए हमारे साथ इंटर्नशिप कर रहे हर्ष ने भी योगदान दिया है.)


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