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ओडिशा ट्रेन हादसे के बाद जहां शव रखे गए थे, वो स्कूल क्यों तोड़ना पड़ा?

बहानगा हाई स्कूल में शवों को रखे जाने के बाद से बच्चे वहां जाने से मना कर रहे थे. उनके माता-पिता भी उन्हें स्कूल नहीं जाने देना चाहते थे.

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Odisha Train Accident Bahanaga High School Demolished Dead Bodies
ट्रेन हादसे के बाद इस हाई स्कूल में शवों को रखा गया था. (फोटो: इंडिया टुडे/PTI)
9 जून 2023 (Updated: 9 जून 2023, 15:27 IST)
Updated: 9 जून 2023 15:27 IST
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ओडिशा के बालासोर में स्थित उस स्कूल को 9 जून की सुबह तोड़ने का काम शुरू कर दिया गया, जहां ट्रेन हादसे (Odisha Train Accident) के बाद मृतकों के शवों को रखा गया था. दरअसल, बहानगा हाई स्कूल में शवों को रखे जाने के बाद से बच्चे वहां जाने से मना कर रहे थे. उनके माता-पिता भी उन्हें स्कूल नहीं जाने देना चाहते थे. ऐसे में स्कूल की प्रबंधन समिति ने प्रशासन से इसे तोड़ने को मांग की. हालांकि, समिति ने यह भी बताया कि इमारत तोड़ने की मांग इसलिए की गई थी क्योंकि यह काफी पुरानी हो गई थी.

इंडिया टुडे से जुड़े अजय कुमार नाथ की रिपोर्ट के मुताबिक, इमारत गिराने की प्रक्रिया स्कूल प्रबंधन समिति के सदस्यों की मौजूदगी में की जा रही है. तोड़-फोड़ के बाद  स्कूल की नई इमारत का निर्माण किस जगह पर होगा, इसका फैसला स्कूल प्रबंधन समिति और जिला प्रशासन की तरफ से लिया जाएगा.

रिपोर्ट के अनुसार, इससे पहले बहानगा हाई स्कूल की प्रधानाध्यापिका प्रमिला स्वैन ने बताया था कि स्कूल में पढ़ने वाले छोटे बच्चे डरे हुए हैं. ऐसे में स्कूल ने बच्चों के मन से डर को निकालने के लिए 'आध्यात्मिक कार्यक्रम' आयोजित करने और पूजा कराने की योजना बनाई गई थी. उन्होंने बताया कि स्कूल के कुछ सीनियर छात्र और NCC कैडेट भी हादसे के बाद बचाव कार्य में शामिल हुए थे.

इससे पहले स्कूल की एक शिक्षिका स्मृति रेखा पांडा ने समाचार एजेंसी ANI से बात करते हुए कहा था, 

“स्कूल में शवों के रखे जाने के कारण छात्र और अभिभावक दोनों दहशत में हैं. ऐसे में ओडिशा सरकार और भारत सरकार से निवेदन है कि स्कूल का परिवर्तन किया जाए. हम अभिभावकों और छात्रों को वापस स्कूल आने के लिए प्रोत्साहित करने की पूरी कोशिश में हैं. लेकिन ये इतना बड़ा हादसा था, जिससे छात्र अभी भी दहशत में हैं.”

वहीं इस स्कूल के कक्षा 9 के छात्र साहिल ने बताया था, 

“हादसे के बाद शवों को स्कूल में रखा गया था, इसलिए छोटे बच्चे स्कूल जाने से घबरा रहे हैं. स्कूल की अगर सफाई, पेंटिंग हो जाए, स्कूल फिर से नया हो जाए तो डर का माहौल खत्म होगा और हम स्कूल जा सकेंगे.”

बच्चों ने टीवी पर देखीं तस्वीरें

बालासोर हाई स्कूल के अधिकांश बच्चों का यही कहना था कि उनके स्कूल में रखे गए शवों की वजह से वो स्कूल वापस जाने में घबरा रहे हैं. हालांकि, अगर स्कूल में साफ-सफाई, पूजा-पाठ और रंगाई-पुताई का काम हो जाए, जिससे स्कूल नया जैसा हो जाए, तो वो स्कूल जाना चाहेंगे.

इससे पहले मामला सामने आने के बाद बालासोर के कलेक्टर दत्तात्रय भाऊसाहेब शिंदे मौके पर पहुंचे. उन्होंने कहा, 

“मैंने स्कूल प्रबंधन समिति के सदस्यों, प्रधानाध्यापिका और दूसरे कर्मचारियों के साथ स्थानीय लोगों से भी मुलाकात की है. सभी पुरानी इमारत को तोड़कर नए भवन का निर्माण कराना चाहते हैं, क्योंकि इमारत पुरानी हो चुकी है, और हाल में स्कूल को अस्थायी मुर्दाघर बनाने के बाद अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने से हिचकिचा भी रहे हैं. ऐसे में मैंने स्कूल समिति से बिल्डिंग गिराने की मांग के बारे में एक प्रस्ताव पारित करने और इसे सरकार को सौंपने के लिए कहा है.”

जिला कलेक्टर ने ये भी बताया था कि परिवर्तन कार्यक्रम के तहत स्कूल का नवीनीकरण किया जा सकता है.

रिपोर्ट के मुताबिक, स्कूल समिति के एक सदस्य ने कलेक्टर को बताया था कि बच्चों ने टीवी पर वो तस्वीरें देखीं, जिनमें स्कूल की बिल्डिंग में रखे शवों को दिखाया गया था. इसके बाद अब बच्चे 16 जून से शुरू होने वाले स्कूल में आने से घबरा रहे हैं. हालांकि, शवों को भुवनेश्वर ट्रांसफर करने के बाद स्कूल परिसर को साफ कर दिया गया है. लेकिन, छात्र और अभिभावक दहशत में हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, स्कूल की समिति ने पहले सिर्फ 3 कक्षाओं में शव रखने की अनुमति दी थी, लेकिन बाद में जिला प्रशासन ने पहचान के लिए शवों को खुले हॉल में रख दिया था. स्कूल में पढ़ने वाले एक बच्चे के पिता सुजीत साहू ने बताया,

“हमारे बच्चे स्कूल जाने से इनकार कर रहे हैं. बच्चों की मां भी उन्हें इस स्कूल में भेजने की इच्छुक नहीं हैं. कुछ माता-पिता तो अपने बच्चों का स्कूल बदलने पर भी विचार कर रहे हैं.”

इस बीच जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) बिष्णु चरण सुतार ने छात्रों और अभिभावकों को प्रेरित करने के लिए एक बैठक का आयोजन किया. उन्होंने कहा कि हम यह सुनिश्चित किया जाएगा कि कोई भी छात्र स्कूल से बाहर ना हो. स्कूल और स्थानीय लोगों ने ट्रेन दुर्घटना के दौरान बचाव और राहत अभियान में में बहुत योगदान दिया है.

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