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'16 साल मुद्दे को खींचा, इसके पीछे कोई और', गुजरात दंगों वाली याचिका पर SC ने खड़े किए सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने जकिया जाफरी से कहा कि कोई ऐसा नया सबूत पेश नहीं हुआ जिससे गुजरात दंगों को लेकर सत्ता में बैठे लोगों पर सवाल उठें, 16 साल तक मुद्दे को गर्म रखा गया, याचिका के पीछे किसी और का हाथ लगता है

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Petitioner Zakia Jafri and Supreme Court
याचिकाकर्ता जकिया जाफरी और सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: पीटीआई)
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धीरज मिश्रा
24 जून 2022 (Updated: 28 जून 2022, 12:12 PM IST) कॉमेंट्स
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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुजरात दंगों (2002 Gujarat Riots) को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया है. न्यायालय ने साल 2002 के इस दंगे में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और 63 अन्य लोगों को क्लीन चिट देने के फैसले को सही माना है. कोर्ट ने SIT की क्लीन चिट के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर भी सवाल उठाया और कहा कि उनकी दलीलों में SIT की ईमानदारी को नजर अंदाज किया गया है.

गुजरात दंगों के दौरान मारे गए कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी (Ehsan Jafri) की पत्नी जकिया जाफरी (Zakia Jafri) ने ये याचिका दायर की थी. उन्होंने कहा था कि साल 2002 के दंगे में राजनीतिक वर्ग, जांच करने वाले व्यक्तियों, नौकरशाहों और अन्य लोगों के बीच 'तगड़ी मिलीभगत' थी, जिसके कारण ऐसी घटना हुई थी. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि विशेष जांच दल (SIT) ने इन पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया है.

SIT की ईमानदारी पर सवाल!

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि गुजरात दंगे की जांच के लिए इस अदालत ने SIT का गठन किया था, जिसमें इस तरह के जटिल अपराधों की जांच करने में सक्षम वरिष्ठ अधिकारियों को रखा गया था. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अपनी दलीलों में एसआईटी के सदस्यों की सत्यनिष्ठा और ईमानदारी का सही मूल्यांकन नहीं किया है और उन्हें कम आंका है.

इंडिया टुडे के मुताबिक कोर्ट ने कहा, 

‘याचिकाकर्ता द्वारा दिया गया तर्क दूर की कौड़ी है. उन्होंने SIT की महत्ता और दर्जे को कम आंकने की कोशिश की, साथ ही न्यायालय के विवेक पर भी सवाल उठाया गया है. ’

कोर्ट ने आगे कहा, 

‘इस मामले को 16 सालों तक खींचा गया, मुद्दे को गर्म रखा गया. पूरी प्रक्रिया में इस तरह के दुरुपयोग में शामिल सभी लोगों को कटघरे में खड़ा करने की आवश्यकता है.’

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि SIT ने सभी तरह के उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर इस मामले में निर्णय लिया था.

'इस याचिका के पीछे कोई और'

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 

‘इस मामले में आगे जांच करने का सवाल तब खड़ा होगा जब कोई नया साक्ष्य/सामग्री सामने आए, जिसमें सत्ता के शीर्ष पदों पर बैठे लोगों पर किसी बड़े साजिश का आरोप हो. लेकिन इस मामले में ऐसा कुछ अभी तक आया नहीं है. इसलिए SIT द्वारा सौंपी गई अंतिम रिपोर्ट को ही स्वीकार किया जाना चाहिए, इसमें आगे और कुछ करने की जरूरत नहीं है.’

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि जकिया जाफरी द्वारा दायर की गई याचिका ‘किसी और से प्रेरित है’ और यह ‘कुछ अन्य लोगों’ के निर्देश पर दायर की गई है.

न्यायालय ने कहा, ‘प्रतिरोध के नाम पर दायर याचिका (जो कि 514 पेजों की है) में याचिकाकर्ता ने अप्रत्यक्ष रूप से कोर्ट द्वारा अन्य मामलों में दिए गए फैसलों, जिसमें विचाराधीन भी शामिल हैं, पर सवाल उठाया है. इसका असली कारण उन्हें ही पता होगा. जाहिर है कि वे किसी अन्य के इशारे पर ऐसा कर रही थीं. वास्तव में, इस याचिका की सामग्री उन व्यक्तियों द्वारा दायर हलफनामों पर आधारित है, जो झूठ से भरे हुए पाए गए हैं.’

क्या है मामला?

जकिया जाफरी ने साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर 2002 के दंगों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 64 लोगों को SIT द्वारा दी गई क्लीन चिट को चुनौती दी थी.

अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसायटी में 28 फरवरी 2002 को सांप्रदायिक हिंसा में जकिया जाफरी के पति और कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की हत्या कर दी गई थी.

इस हिंसा में एहसान जाफरी समेत 68 लोगों की मौत हुई थी. इसके एक दिन पहले गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगने से 59 लोगों की मौत हुई थी और फिर इसके बाद राज्य के अलग-अलग हिस्सों में दंगे हुए थे.

इस घटना के करीब 10 साल बाद आठ फरवरी 2012 को दंगों की जांच के लिए बनी SIT ने नरेंद्र मोदी और 63 अन्य व्यक्तियों को क्लीन चिट दे दी थी.

इस एसआईटी का गठन सुप्रीम कोर्ट ने ही किया था. हालांकि, जकिया जाफरी SIT की रिपोर्ट से सहमत नहीं थी. उन्होंने साल 2014 में इसके खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट का रुख किया. लेकिन हाईकोर्ट ने एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट की वैधता को बरकरार रखा और जकिया के आरोपों को खारिज कर दिया.

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