क्या वाकई दूसरे धर्म और जाति में शादी करने पर 50 हजार रुपये देगी उत्तराखंड सरकार?
सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं.
यूपी, एमपी और हरियाणा समेत भाजपा शासित कुछ अन्य राज्यों में इन दिनों लव जिहाद पर सियासत तेज है. उत्तर प्रदेश में तो कानून का मसौदा भी तैयार हो चुका है. इसी बीच उत्तराखंड में एक प्रेस नोट काफी चर्चा में है. टिहरी के प्रभारी जिला समाज कल्याण अधिकारी की अंतरजातीय व अंतरधार्मिक विवाह प्रोत्साहन योजना के लिए आवेदन की जानकारी वाले प्रेस नोट का सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने संज्ञान लिया है. उन्होंने मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं.
क्या है मामला
उत्तराखंड के टिहरी के प्रभारी जिला समाज कल्याण अधिकारी ने अंतरजातीय व अंतरधार्मिक विवाह प्रोत्साहन की किसी योजना के लिए आवेदन का प्रेस नोट जारी किया था. प्रेस नोट में यह भी कहा कि जोड़ों को प्रोत्साहन स्वरूप 50,000 रुपये दिए जाएंगे. यह प्रोत्साहन राशि कानूनी रूप से पंजीकृत अंतरधार्मिक विवाह करने वाले सभी कपल्स को दी जाएंगी. अंतरधार्मिक विवाह किसी मान्यता प्राप्त मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर या देवस्थान में संपन्न होना चाहिए. यह भी बताया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 के अनुसार, पति-पत्नी में से किसी एक का अनुसूचित जाति से होना आवश्यक है.
अब इस मामले में सीएम ने मुख्य सचिव ओम प्रकाश को मामले की जांच के आदेश देकर उन्होंने पूछा कि आखिर किन परिस्थितियों में यह आदेश जारी हुआ. माना जा रहा है कि मामले में प्रभारी जिला समाज कल्याण अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई भी हो सकती है.
आजतक की खबर के अनुसार टिहरी के सामाजिक कल्याण अधिकारी दीपांकर घिडियाल ने यह कहा कि एक स्कीम का फायदा उठाने के लिए शादी के एक साल के अंदर आवेदन देना पड़ता है. दूसरी जातियों और दूसरे धर्म में शादी करने वालों को दी जाने वाली राशि राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने में अहम साबित हो सकती है.
क्या है स्कीम
प्रेस नोट में इस स्कीम के तहत 50,000 रुपये दिये जाने की बात कही गई है. पहले इस स्कीम के तहत दूसरे जाति और दूसरे धर्म में शादी करने वाले लोगों को 10 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती थी. लेकिन 2014 में राज्य सरकार ने उत्तर प्रदेश अंतरजातीय अंतरधार्मिक विवाह प्रोत्साहन नियमावली 1976 में संशोधन करके 10 हजार की रकम को बढ़ाकर 50 हजार रुपये कर दिया. साल 2000 में जब अलग उत्तराखंड का निर्माण हुआ था तो उत्तराखंड राज्य ने इस कानून को यूपी से लिया था.