'शहीद को चिता की जमीन नहीं देंगे, क्योंकि 'नीची' जाति का था'
मत कहिएगा अब कि जाति का भेदभाव खत्म हो चुका है. मर गया वो आतंकी हमले में. तिरंगे में लिपटी उसकी लाश आएगी. दुनिया कहेगी, शहीद था. वे लोग नाक दबाकर कहेंगे, 'नट' था.
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हेड कॉन्स्टेबल वीर सिंह
रविवार को उनका शव गांव लाया जाना था. इससे पहले वहां भारी बवाल हुआ. गांव के 'ऊंची जाति' के ओछी सोच वाले लोगों ने उन्हें अंतिम संस्कार के लिए जमीन देने से मना कर दिया.और ये जमीन उनके बाप की नहीं थी. पब्लिक प्रॉपर्टी थी. फिर भी वे अड़ गए कि अंतिम संस्कार नहीं होने देंगे. क्योंकि वीर सिंह नट जाति से था. जब जिला प्रशासन तक बात पहुंची तो उनके हाथ-पांव फूले. वे जानते थे तो मामला बढ़ा तो दिल्ली तक जाएगा. उन्होंने तुरंत दखल दिया. जब डंडे का जोर ऊपर से पड़ा तो 'ओछी सोच वाले लोग' कायदे में आ गए और 10 बाई 10 की जमीन देने को तैयार हुए. वीर सिंह के घर वाले उनकी मूर्ति भी लगवाना चाहते थे. लेकिन गांव वालों ने ये भी नहीं करने दिया. 'टाइम्स ऑफ इंडिया' से बात करते हुए ग्राम प्रधान विजय सिंह ने बताया, 'शहीद का परिवार पब्लिक लैंड पर शहीद का दाह संस्कार करना चाहता था और उनकी मूर्ति लगवाना चाहता था. गांव वाले इस पर राजी नहीं थे. लेकिन एसडीएम से घंटों बातचीत के बाद, गांव वाले मान गए.' 52 साल के वीर सिंह अपने परिवार में इकलौते कमाने वाले थे. 1981 में CRPF जॉइन की थी. उनकी फैमिली करीब 500 स्क्वायर फुट की जगह में बने 'वन रूम सेट' में रहती है. छत की जगह पर टिन शेड है. तीन बच्चे हैं. 22 साल की रजनी MSc पढ़ रही है. 18 साल का रमनदीप BSc में है और 16 के संदीप ने अभी इंटर पास किया है.
वीर सिंह के छोटे भाई रंजीत मजदूरी करते हैं. बुजुर्ग बाप रामसनेह, जिनकी उम्र 80 के करीब है, फिरोजाबाद में रिक्शा चलाते हैं.रामसनेह कहते हैं, 'मेरे बेटे ने देश की जमीन की रक्षा के लिए जान दे दी. लेकिन यहां उसके अपने लोग उसकी लाश जलाने के लिए 10 मीटर की जमीन नहीं दे रहे. मुझे नहीं पता अब उसके बच्चों का ख्याल कौन रखेगा.' [total-poll id="24725"]