सड़क पर परिवार के साथ रहने को मजबूर कांशीराम के असली वारिस!
कांशीराम के परिवार का पक्ष लेने पर पार्टी से निकाल दिए गए थे पूर्व बसपा विधायक शिंगारा.
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फोटो - thelallantop
खबरों में हैं. मायावती की बसपा का साथ छोड़ चुके हैं. मायावती और मौर्य के आरोप-प्रत्यारोप जैसे भारी शब्दों वाली ब्रेकिंग भी खूब चली. पंगे के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौर्य-मायावती दोनों के बीच जो एक बात कॉमन दिखी, वो थे कांशीराम. दोनों नेताओं ने अपनी प्रतिबद्धता कांशीराम की दिखाई दिशा की तरफ होने की बात कही. हालांकि ये पब्लिक है, सब जानती है.
अब जब कांशीराम की दिखाई दिशा की बात निकल ही पड़ी है, तो शिंगारा राम शाहुंग्ग्रा का जिक्र जरूरी है. क्योंकि शिंगारा बसपा की टिकट पर दो बार पंजाब के गृहशंकर विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं. साल थे 1992 और 1997. लेकिन यही बसपा के पूर्व विधायक आज अपने परिवार के साथ सड़कों पर रहने को मजबूर हैं. वजह वो है, जो मायावती और मौर्य की प्रेस कॉन्फ्रेंस में है और शिंगारा की जिंदगी में. यानी कांशीराम के विचारों को फॉलो करना.
शिंगारा का पूरा परिवार पिछले 22 सालों से एक ही कमरे में रह रहे थे. ये कमरा पहले सिंचाई विभाग का हुआ करता था, जिसे बहुत पहले सिंचाई विभाग ने छोड़ दिया था. अब उसे भी सरकार उनसे छीनना चाहती है. जैसे-जैसे बारिश पास आ रही है. वैसे-वैसे इस परिवार की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं.सड़क के किनारे ही उनका किचन है. जहां उनकी बीवी रोटियां पकाती हैं. MLA साहब का परिवार नहाने-धोने के लिए पास के ही एक सज्जन का बाथरूम यूज करता है. उनका बहुत सा सामान बाहर पड़ा हुआ है, जिसे बचाने के लिए वो लोग तिरपाल से छत बना रहे हैं.
ये परिवार यहां गैरकानूनी रूप से रह रहा था. रविवार को फिर से सरकार ने उन्हें यहां से निकालने की कोशिश की है. इसका वहां बहुत विरोध हुआ और सरकार का इस कदम के लिए पुतला भी फूंका गया.

शिंगारा को निकलने के विरोध में सरकार का पुतला फूंकते लोग
पंजाब जैसे राज्य में वो अकेले ऐसे MLA हैं, जिन्होंने अपने लिए बड़ा सा आलीशान बंगला नहीं बनवाया है. उनका कहना है:
"पूर्व MLA होने के चलते मुझे हर महीने नाम मात्र की 20 हजार रुपये की पेंशन मिलती है. मैं अपनी तनख्वाह के हिसाब से एक कमरा ढूंढ रहा हूं. जब तक वो नहीं मिल जाता, तब तक मैं खुले आसमान के नीचे ही रहूंगा. मुझे BSP से निकाल दिया गया क्योंकि मैंने काशीराम के परिवार का पक्ष लिया. जब उनके परिवार को किनारे लगाया जा रहा था."शिंगारा के दोनों बेटे उनकी थोड़ी आर्थिक मदद करते हैं. मगर वो नाकाफी है. पहले भी उन्हें यहां से निकलने के लिए सरकारी डिक्री वहां की सिविल कोर्ट ने 2005 में जारी की थी. तब भी निकलने के लिए मजिस्ट्रेट के ऑर्डर और पुलिस की मदद ली गई थी. शिंगारा कहते हैं,
''मैं पॉलिटिक्स में, कांशीराम के दलितों को मजबूत बनाने के मिशन में शामिल होने आया था. और मैंने अपने दोनों कार्यकाल के दौरान कभी पैसे बनाने की कोशिश नहीं की. अगर आज मैं ये दिन देख रहा हूं तो सिर्फ अपनी इस जिद की वजह से कि मैंने किसी भी करप्शन में शामिल होने से इनकार कर दिया. जब मैं MLA था तब सैलरी इतनी नहीं हुआ करती थी कि उससे घर बनाया जा सके. और अब मुझे पेंशन मिलती है. मैंने कभी कोई बिजनेस करने की नहीं सोची."शिंगारा का बड़ा भाई एक दिहाड़ी मजदूर है और छोटा भाई ग्रीस में मजदूरी करता है. एक शिंगारा हैं, जो कांशीराम के उसूलों को खुद की जिंदगी में उतारकर सड़क पर रहते हुए बारिश रुकने और परिवार के लिए आसरे की उम्मीद लगाए बैठे हैं. दूजे वो हैं जिनको कांशीराम का नाम लेकर अपनी राजनीति चमका रहे हैं. देखते रहिए. सुनते रहिए. आंख खोले रहिए. चुनाव करीब हैं. उसूल अब सबको याद आएंगे.
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