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'लड़कियों अपने फैसले खुद लो, चाहे पापा नाराज हो जाएं'

'नया जमाना, नई बातें..' टैगलाइन वाला ये ऐड यही बात कहता है. क्योंकि पापा तो बाद में मान ही जाएंगे.

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नया जमाना, नई बातें एड की केंद्रीय पात्र एक दृश्य में.
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लल्लनटॉप
17 जून 2016 (Updated: 19 जून 2016, 08:46 AM IST) कॉमेंट्स
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पप्पा लोगों का दिन आ रहा है. 19 जून. फादर्स डे. और इससे पहले सब बेटे, बेटी, पप्पा और साइड में खड़ी मम्मियां रो रही हैं. खुशी से. क्योंकि एक के बाद एक ऐसी शॉर्ट फिल्में और एड आ रहे हैं जो रुआंसा कर दे रहे हैं. नॉस्टेलजिया से और ये दिखाकर कि हम लोग इन रिश्तों को कितना हल्के में ले लेते हैं.
जैसे पहले दो दिन पहले नेटिव फिल्म्स ने अपनी करीब आठ मिनट की शॉर्ट वनवास रिलीज की. पीयूष मिश्रा और प्रबल पंजाबी ने पिता-पुत्र के रूप में हमें रूला दिया. पीयूष मिश्रा के थप्पड़ वाली ओपनिंग तो जबर थी. यहां देखे:
https://www.youtube.com/watch?v=t-d5hEewXtY
फिल्म पर हमने लिखा भी था, यहां पढ़ें: पापा से की हुई सभी लड़ाइयों की याद दिलाता ये वीडियो


उसके बाद ही गूगल इंडिया द हीरो- अ बॉलीवुड स्टोरी ले आया. इसमें भी बाप, बेटे और मां की कहानी है. बेटे का रोल मसान फेम विकी कोशल ने किया है जो अब रमन राघव 2.0 में भी धमाल करने जा रहे हैं. पप्पा का रोल नंदू माधव ने किया है जो जिस देश में गंगा रहता है में इकबाल के रोल में आज भी याद हैं. वे उम्दा मराठी एक्टर हैं.
https://www.youtube.com/watch?v=eYqEpuifLI8
इन दो अपार खुशियों के बाद एक पाकिस्तानी विज्ञापन नया जमाना, नई बातें ने रुला दिया है. इरादतन तो नहीं लेकिन ये हमारी इन दो फिल्मों का जवाब है कि भई हम भी नए जमाने के हिसाब से बदल रहे हैं. प्रगतिवादी हैं. बच्चियों को आगे बढ़ने के चक्कर में सेंटी होने की जरूरत नहीं. कोई जरूरी नहीं कि हर बार पप्पा लोग ही सही हों आपके जीवन के फैसले करने में.
इस एड की शुरुआत होती है एक मध्यमवर्गीय पाकिस्तानी परिवार के घर से. कमरे में सोफा है, दाईं तरफ अब्बा हुजूर (नरेंद्र झा, जो सनी देओल की घायल वंस अगेन
में राज बंसल बने थे) बैठे हैं. किसी शहंशाह की तरह पैर पर पैर चढ़ाए एक विशेष कोण में देख रहे हैं. अम्मी (लुबना सलीम) बाईं तरफ हैं. जोधा बनी हुईं. गुजारिश कर रही हैं. ‘क्रिकेट बच्ची की जिंदगी है’. अब्बा एक ख़ास गंभीर आवाज में मना कर देते हैं. क्रिकेट लड़कियों का खेल नहीं है. ये सीन अपने साथ भी बहुत हुआ है. पर अपन को अपराधी की तरह खड़ा रहना पड़ता था. इस लड़की (नाम नहीं पता) की तरह सीन से बाहर रहने की गुंजाइश नहीं थी.
बड़े लोगों का घर है. बड़ी-बड़ी बातें. गरीब होते तो बाप न तो कोण बना के देख पाते, ना आवाज में गहराई आ पाती. उठते और बेटी को धुन देते. पर पैसा थोड़ी धनक ला देता है. मना करते हैं पर रोक नहीं पाते. लड़की खेलने चली जाती है. जाते वक़्त अब्बू से मिलती नहीं. कहती है ‘अब्बू से बात नहीं होती, अब्बू से सिर्फ सुनी जाती है’. ये देख के यूपी-बिहार वाले रो देंगे. हमारे यहां मां सुनाती है और बाप कूटते हैं. पर ज़माना कुछ तो बदला है. अब्बू नाराज हैं. पर अम्मी का उत्साह देख के चुप रहना मुनासिब समझते हैं. और मैं जल रहा हूं. लड़की क्रिकेट खेलने चली जा रही है यार. अपने को ऐसा मौका नहीं मिला. कैच ड्राप कर देते थे अपन. गड़हा फिल्डर माने जाते थे. लड़की की ट्रेनिंग चलती है.
अम्मी एकदम अम्मी वाले मोड में हैं. लड़की क्रिकेट ट्रेनिंग से फोटो भेजती है. अम्मी निहारती है. बाप कनखी से भी नहीं देखते. अपना गुमान इतना प्यारा है कि दूर गई बेटी का चेहरा भी नहीं देखते. अमां यार, सारी बात एक तरफ. पर बेटी का चेहरा तो देख लो. नहीं. अगले दिन मां फोन में झांकते अल्ला अल्ला कर रही है. बेटी का सिलेक्शन नेशनल टीम में हो गया है. मां चीख पड़ती है. बाप बुद्धू की तरह देख रहे हैं. मां उनको छोड़ सारे मोहल्ले को चीख-चीख के बता देती है.
फिल्म के एक दृश्य में नरेंद्र झा और लुबना सलीम.
फिल्म के एक दृश्य में नरेंद्र झा और लुबना सलीम.

जब एक पड़ोसी राह में अब्बू को बताता है कि ऐसी बेटी सबको मिले तो अब्बू थोड़ा झिझकते हैं. सोच रहे हैं सच में क्या? और मैं सोच रहा हूं कि क्या आदमी है! बेटी नेशनल टीम में. इसको शर्म आ रही है. हमारे अब्बा हुज़ूर कितना भी धुन लें, अगर हमने ऐसा मौका दिया तो सीना ठोंक के कहेंगे अपना लौंडा है. पर हमने दिया नहीं कोई मौका.
आगे अब, लड़की का पहला मैच है. ऑस्ट्रेलिया से. हम पूरी आस लगाए बैठे थे इंडिया से होगा. इसीलिए कहते हैं किसी के बारे में जजमेंट नहीं बनाना चाहिए. मैच की आखिरी बॉल. ऑस्ट्रेलिया को एक बॉल में दो रन चाहिए जीत के लिए. यहां राज खुलता है कि लड़की बॉलर है. अब लड़की क्या करती है. ये नहीं बताएंगे. फिर एक मोमेंट आता है, अब्बू रो रहे होते हैं. ये एड पकिस्तान से आया है. वहां के बारे में हमने सिर्फ तिलिस्मी कहानियां सुनी हैं. जानते नहीं है कि वहां भी इंसान होते हैं. लड़कियां होती हैं. जिनके मन में बहुत कुछ करने का जज्बा होता है.
ये वीडियो हमको जनवाता है कि लड़कियों का संघर्ष हर जगह एक ही है. और बाप को बाप ही होना चाहिए. हर जगह मर्द बन के खड़े रहना ठीक नहीं लगता. इंसान बनना ज्यादा जरूरी है. बाप होने में इंसानियत है. मर्द होने में तालिबानियत है. वीडियो ने सहारा लिया है इमोशनल चीजों का. पर देखने का संदर्भ स्पेस और टाइम के हिसाब से डिफाइन होना चाहिए. अभी के हिसाब से ये वीडियो उम्मीदों पर खरा उतरता है.
https://www.youtube.com/watch?v=_wsRKJ-uGHM

'दी लल्लनटॉप' से जुड़े ऋषभ ने इसे लिखा है.

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