गुजरात दंगे पर हाईकोर्ट के वकील ने कहा - "सुप्रीम कोर्ट को ऐसी टिप्पणी करने का अधिकार नहीं"
हाईकोर्ट वकील ने कहा - "इस फैसले के चलते एक खतरनाक चलन की शुरुआत हो जाएगी."

साल 2002 के गुजरात दंगे पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले को लेकर कई वकीलों ने आपत्ति जाहिर की है. इसके साथ ही इस फैसले के आधार पर कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़, रिटायर्ड डीजीपी आरबी श्रीकुमार और पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट के खिलाफ केस दर्ज करने पर निंदा की गई है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात हाईकोर्ट के वकील आनंद याग्निक ने बीते सोमवार, 27 जून को कहा कि गुजरात दंगे पर जकिया जाफरी की याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जो टिप्पणियां की है, वो 'सवालों के घेरे में' है. उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस तरह की टिप्पणी करना उसके न्यायाधिकार क्षेत्र में नहीं आता है.
मीडिया से बातचीत के दौरान वकील याग्निक ने कहा, 'क्या हजारों लोग मारे गए थे या नहीं (2002 दंगे के दौरान)? हजारों लोग विस्थापित हुए थे या नहीं? हिंदू और मुसलमान जलाए गए थे या नहीं?...'
उन्होंने आगे कहा,
खतरनाक चलन!'यह आदेश, विशेष रूप से इसकी टिप्पणियां, सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र के बाहर की चीज है. सुप्रीम कोर्ट को सिर्फ ये तय करना था कि एफआईआर दर्ज किया जाना चाहिए या नहीं (राज्य के शीर्ष पदों पर बैठे तत्कालीन व्यक्तियों के खिलाफ). सुप्रीम कोर्ट ज्यादा से ज्यादा ये कह सकता था कि इस मामले में एफआईआर दर्ज करने के लिए प्रथम दृष्टया सबूत नहीं हैं.'
याग्निक ने कहा,
'हमने आज तक सुप्रीम कोर्ट का ऐसा कोई फैसला नहीं देखा है जो ये कहता हो कि ये (न्यायिक राहत मांगना) दुर्भावनापूर्ण है. यह कहने का आधार कहां है कि यह दुर्भावनापूर्ण है?'
हाईकोर्ट वकील ने कहा कि इस तरह के फैसले के चलते एक खतरनाक चलन की शुरुआत हो सकती है, जहां कानूनी राहत मांगने वाले याचिकाकर्ताओं को ही निशाना बनाने का शह मिल जाएगा.
उन्होंने कहा,
'आपातकाल के समय और उसके बाद ये सवाल उठा था कि 'पुलिस के लिए कौन पुलिस होगा'. अब सवाल ये है कि 'सुप्रीम कोर्ट को कौन जज करेगा' और सुप्रीम कोर्ट की जवाबदेही कहां है.'
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही आधार बनाते हुए गुजरात पुलिस ने मानवाधिकार कार्यकर्ता और रिटायर्ड डीजीपी आरबी श्रीकुमार को गिरफ्तार किया है. बीते 25 जून को इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी, जिसमें आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट का भी नाम है. भट्ट पहले से ही जेल में बंद हैं. इसे लेकर गैर सरकारी संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) ने एक प्रस्ताव पारित किया है, जिसमें इन लोगों की तत्काल रिहाई और सुप्रीम कोर्ट की आपत्तिजनक टिप्पणियों को तत्काल वापस लेने की मांग की है.
क्या है मामला?अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसायटी में 28 फरवरी 2002 को सांप्रदायिक हिंसा में जकिया जाफरी के पति और कांग्रेस नेता एहसान जाफरी की हत्या कर दी गई थी. इस हिंसा में एहसान जाफरी समेत 68 लोगों की मौत हुई थी. इसके एक दिन पहले गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगने से 59 लोगों की मौत हुई थी और फिर इसके बाद राज्य के अलग-अलग हिस्सों में दंगे हुए थे.
इस घटना के करीब 10 साल बाद आठ फरवरी 2012 को दंगों की जांच के लिए बनी SIT ने मोदी और 63 अन्य व्यक्तियों को क्लीन चिट दे दी थी.
इस एसआईटी का गठन सुप्रीम कोर्ट ने ही किया था. हालांकि जकिया जाफरी इसकी रिपोर्ट से सहमत नहीं थी. उन्होंने साल 2014 में इसके खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट का रुख किया. लेकिन उच्च न्यायालय ने एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट की वैधता को बरकरार रखा और जकिया के आरोपों को खारिज कर दिया. फिर जकिया जाफरी ने दिसंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर 2002 के दंगों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 64 लोगों को SIT द्वारा क्लीन चिट देने को चुनौती दी थी. जिस पर अब सुप्रीम कोर्ट ने याचिका ख़ारिज करते हुए टिप्पणियाँ की हैं.