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तीस हजारी, पटियाला हाउस कोर्ट, कड़कड़डूमा, दिल्ली की अदालतों को कैसे मिले अजब-गजब नाम?

अलग-अलग शहरों की अदालतों को जिला अदालत कहा जाता है. दीवानी कचहरी भी कहते हैं. लेकिन दिल्ली की अदालतों के नाम कुछ अतरंगी ही हैं.

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delhi district court
सांकेतिक तस्वीर (फोटो- आजतक)
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सौरभ शर्मा
17 जून 2024 (Published: 09:18 PM IST) कॉमेंट्स
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार करने के बाद ED ने उन्हें राउज़ एवेन्यू कोर्ट में पेश किया. उनके केस की सुनवाई इसी कोर्ट में होती है. केजरीवाल के पूर्व पीए पर जब स्वाति मालीवाल से मारपीट का आरोप लगा तो पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में पेश किया. और जब आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा को बंगला खाली करने का आदेश आया तो उन्होंने पटियाला हाउस कोर्ट में याचिका दायर की थी. ये दिल्ली की राजनीति से जुड़े तीन अहम केस हैं. पर गौर करेंगे तो ये तीनों केस दिल्ली की अलग-अलग अदालतों में दायर किए गए.

अलग-अलग शहरों की अदालतों को जिला अदालत कहा जाता है. दीवानी कचहरी भी कहते हैं. लेकिन दिल्ली की अदालतों के नाम कुछ अतरंगी ही हैं. राउज़ एवेन्यू कोर्ट, कड़कड़डूमा कोर्ट,तीस हजारी कोर्ट. आज बात दिल्ली की इन्हीं अदालतों पर करेंगे. कैसे पड़े इनके नाम? कहां कौन सा केस लड़ा जाता है? सबसे पहले बात पटियाला हाउस कोर्ट की. पटियाला तो पंजाब में है लेकिन तो पटियाला हाउस कोर्ट दिल्ली में कैसे?

पटियाला हाउस कोर्ट 

पटियाला हाउस कोर्ट कॉम्प्लेक्स या फिर इसे नई दिल्ली कोर्ट कॉम्प्लेक्स के नाम से जाना जाता है. जस्टिस पूनम ए बांबा ने पटियाला हाउस कोर्ट पर किताब लिखी है, "Patiyala House place to seat of justice" जो कि एक 'कॉफी टेबल बुक' है माने बड़ी और महंगी किताबें. इन किताबों में बड़ी-बड़ी मनमोहक तस्वीरों का इस्तेमाल किया जाता है और उन तस्वीरों के  छोटे Description भी दिए जाते हैं. अक्सर कैफे या किसी रस्टोरेंट में इस तरह की किताबें आपको आसानी से देखने को मिल जाती है.

बार एंड बेन्च से बातचीत में पूनम बताती है कि, साल 1911 में बंगाल की जगह दिल्ली को भारत राजधानी बनाया गया. इस दौरान सभी महाराजाओं को चैंबर ऑफ प्रिंसेस में शामिल किया गया. एक प्रकार का ग्रुप था जहां वे अपनी बात रख सकें. इसके लिए उन्हेे दिल्ली में रहने के लिए जगह भी दी गई. ऐसी ही एक जगह पटियाला के महाराज को दी गई जहां राजा यदविंदर सिंह ने पटियाला हाउस का निर्माण कराया. महाराज यहां कभी-कभार ही रुकने आया करते इसलिए इस जगह को कई अन्य कामों में लाया  जाने लगा.

आजादी के बाद जवाहर लाल नेहरु, फिरोज गांधी, गोविंद वल्लभ पंत जैसे नेता अनौपचारिक बातों के लिए (चाय कॉफी पीने) यहां आते. WHO ने अपना ऑफिस भी यहां खोल रखा था. आजादी के बाद महाराज ने कई प्रवासियों को यहां पनाह दी. मशहूर लेखका अमृता प्रीतम भी यहां रहीं. लेकिन अभी भी इस जगह का न्याय से दूर दूर तक कोई नाता  नहीं. 1970 के दशक में रियासत ने इसे भारत सरकार को बेच दिया था.

कोर्ट कब बना?

साल 1960 में दिल्ली हाईकोर्ट को पटियाला हाउस लाया गया.  अब पटियाला हाउस, कोर्ट का पता बन चुका था. ये सिलसिला 10 साल चला. फिर आया साल 1976. दिल्ली हाईकोर्ट अपनी वर्तमान जगह यानी शेरशाह रोड पर पहुंच गया. उन दिनों संसद मार्ग पर कुछ आपराधिक अदालतें भी काम करती थीं लिहाजा उन्हें पटियाला हाउस में ट्रांसफर कर दिया गया. और इस तरह दिल्ली में अस्तित्व में आई पटियाला हाउस कोर्ट.

तीस हजारी कोर्ट

तीस हजारी कोर्ट दिल्ली का सबसे पुराना ड्रिस्ट्रिक कोर्ट है. मार्च 1958 में इसकी शुरुआत हुई. लेकिन इसका नाम तीस हजारी ही क्यों रखा गया इसके दो वर्जन बताए जाते हैं.

‘तीस हजारी नामा’ के अनुसार तीस हजारी गार्डेन को मुगल काल में जहांआरा के कहने पर बनवाया गया था. जहांआरा, शाहजहां की बेटी थी. शाहजहां ने भव्य ताजमहल बनवाया और उनकी बेटी ने भव्य गार्डन को. ऐसा माना जाता है कि इस गार्डेन में 30 हजार पेड़ थे. इसी कारण इसका नाम तीस हजारी हुआ. वहीं इतिहास के दूसरे वर्जन की माने तो तीस हजारी मैदान में 30 हजार सिख सैनिकों और उनके घोड़ो की एक चौकी यहां मौजूद थी.

माने तीस हजारी गार्डेन का इतिहास तो समृद्ध रहा लेकिन 1957 की क्रांति में सब ढह गया. तीस हजारी के सभी पेड़ों को उजाड़ दिया गया. घने पेड़ों की जगह केवल खरपतवार ही बचे रह गए.  भारत की आजादी के बाद इस जगह को दोबारा बनाया गया. तीस हजारी कोर्ट बिल्डिंग का निर्माण 1953 में शुरू हुआ था। इसे तब के 85 लाख रुपये की लागत से बनाया गया. 19 मार्च 1958 में तत्कालीन पंजाब उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री एएन भंडारी ने किया था.

कड़कड़डूमा कोर्ट

कोर्ट के टंग ट्विस्टर नाम का कारण इसका पता यानी कड़कड़डूमा है. NBT की खबर के मुताबिक 150 साल पहले करकरी नाम के गांव में दम समुदाय के लोग आ कर बस गए. तब इस इलाके को करकरडूमन कहां जाने लगा जो समय के साथ कड़कड़डूमा बन गया. साल 1993  में यहां जिला अदालत का उद्घाटन किया जिसका नाम कड़कड़डूमा  रख दिया गया.

राउज एवेन्यू कोर्ट 

राउज एवेन्यू कोर्ट में नेताओं के मामलों की सुनवाई होती है माने हाई प्रोफाइल केस ही यहां आते है. हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की सुनवाई भी यही चल रही थी. वैसे तो 9 अप्रैल 2019 में ही इसकी शुरुआत हुई. लेकिन फिर भी ये नाम चर्चा में हमेशा से रहा. कई पार्टियों ने इसे अपना मुख्यालय भी बनाया जैसे DMK, AAP और BJP. अलेक्जेंडर मैकडॉनल्ड राउज ब्रिटिश शासन काल के एक सिविल इंजीनियर थे. उनकी सेवाओं को ध्यान में रखते हुए 1940 में एक रोड का नाम उनके नाम पर रख दिया गया यानी राउज एवेन्यू.

लेकिन 1970 में इसका नाम बदलकर पंण्डित दीन दयाल उपाध्याय मार्ग कर दिया गया. नामकरण करने के बाद भी राउज एवेन्यू का नाम जिंदा रहा. 

बहरहाल, कोर्ट का नाम कुछ भी हो लोकतंत्र में न्यायपालिका का स्तंभ मजबूत होना चाहिए. क्योंकि न्याय की अदालत में ही मिलता है. जॉली एलएलबी का वो डायलॉग है ना - आज भी हिन्दुस्तान में जब कहीं दो लोगों के बीच झगड़ा होता है न, तो वे एक दूसरे से कहते पाए जाते है “I will see you in court”.

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