The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • News
  • State Governments can grant mi...

हिंदुओं को भी राज्य दे सकेंगे अल्पसंख्यक का दर्जा, केंद्र के इस बयान का क्या मतलब है?

केंद्र के मुताबिक अभी देश में 6 समुदाय अल्पसंख्यक हैं

Advertisement
सुप्रीम कोर्ट (फोटो- PTI)
सुप्रीम कोर्ट (फोटो- PTI)
pic
साकेत आनंद
28 मार्च 2022 (Updated: 28 मार्च 2022, 02:24 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
भारत में हिंदुओं की आबादी सबसे ज्यादा है. इसलिए इसे आम तौर पर भारत के संदर्भ में बहुसंख्यक समुदाय कहा जाता है. लेकिन, क्या भारत में ही हिंदू अल्पसंख्यक भी हो सकते हैं? जवाब है हां. ऐसा हम नहीं, बल्कि भारत सरकार कह रही है. केंद्र सरकार ने कहा है कि अगर किसी राज्य में हिंदुओं की आबादी किसी समुदाय के मुकाबले कम है तो उस राज्य के भीतर उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जा सकता है. दरअसल, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि राज्य सरकार भी धार्मिक या भाषाई आधार पर किसी समुदाय को 'अल्पसंख्यक समुदाय' का दर्जा दे सकती है. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया है. यह हलफनामा बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय की साल 2020 की एक याचिका के जवाब में दाखिल किया गया है. कई राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक याचिका में कहा गया था कि 2011 की जनगणना के हिसाब से मिजोरम, नागालैंड, मेघालय, जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, लक्षद्वीप, मणिपुर और पंजाब में हिंदू अल्पसंख्यक हैं. और सुप्रीम कोर्ट के 2002 के एक फैसले के मुताबिक इन राज्यों में उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाना चाहिए. 2002 में TMA पाई फाउंडेशन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि धार्मिक और भाषाई आधार पर अल्पसंख्यक राज्यवार तय होने चाहिए. केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में यह बताया है कि राज्य आबादी के हिसाब से किसी भी समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देने को स्वतंत्र हैं. उसके मुताबिक महाराष्ट्र ने 2016 में यहूदियों को अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा दिया था. इसी तरह कर्नाटक ने भी उर्दू, तेलुगू, तमिल, मलयालम, मराठी, तुलु, लमानी, हिंदी, कोंकणी और गुजराती को अल्पसंख्यक भाषाओं का दर्जा दिया था. अश्विनी उपाध्याय ने क्यों दायर की याचिका? याचिका में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग कानून, 2004 की धारा-2(F) को चुनौती दी गई थी. इस कानून के तहत अल्पसंख्यक समुदायों को स्वतंत्र तरीके से शिक्षण संस्थानों की स्थापना करने और उसे चलाने का अधिकार दिया जाता है. इसी कानून के तहत सरकार ऐसे संस्थानों को फंड और दूसरी सुविधाएं देती है. हालांकि, इस कानून की धारा-2(F) अल्पसंख्यकों की पहचान केंद्र सरकार द्वारा तय किए समुदायों के रूप में ही करती है. याचिकाकर्ता ने कहा कि लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में यहूदी, बहाई और हिंदू धर्म को मानने वाले लोग "वास्तविक अल्पसंख्यक" हैं. लेकिन, वे अपनी पसंद से शिक्षण संस्थानों को नहीं खोल और चला सकते हैं. अश्विनी उपाध्याय ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग कानून, 2004 केंद्र को काफी ताकत देता है, जो मनमाना और अतार्किक है. हालांकि, केंद्र ने इस दलील को गलत बताया और कहा कि राज्य भी अपने नियमों के हिसाब से संस्थानों को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दे सकते हैं. याचिका के जवाब में सरकार ने कहा कि हिंदू, यूहदी और बहाई भी जहां अल्पसंख्यक हैं, वहां वे अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान खोल सकते हैं. केंद्र सरकार ने ये भी कहा कि संविधान के तहत संसद और राज्य विधानमंडल दोनों के पास अल्पसंख्यकों को संरक्षण देने के लिए कानून बनाने का अधिकार है. हालांकि, केंद्र सरकार ने ये भी कहा कि अल्पसंख्यकों से जुड़े मामलों में कानून बनाने का अधिकार सिर्फ राज्यों को नहीं दिया जा सकता. क्योंकि इससे संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लंघन होगा. "संविधान में नहीं है दर्ज" इस बारे में संविधान के जानकार और लोकसभा के पूर्व सेक्रेटरी जनरल पीडीटी आचार्य ने दी लल्लनटॉप से बातचीत में कहा कि ये संविधान में कहीं दर्ज नहीं है कि राज्य सरकारें किसी समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा दे सकती हैं. हालांकि उन्होंने आगे कहा,
"संविधान के अनुच्छेद-30 के आधार पर सभी अल्पसंख्यकों (भाषाई और धार्मिक आधार पर) के अधिकारों को तय किया गया है. अगर केंद्र सरकार राज्यों को यह अधिकार दे रही है तो यह सही है."
संविधान के अनुच्छेद 30(1) के तहत, सभी धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान को स्थापित करने और उसे चलाने का अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने इसी अनुच्छेद का हवाला देते हुए TMA पाई फाउंडेशन केस में कहा था कि यह राज्यवार होना चाहिए. सवाल उठता है कि क्या राज्यों द्वारा तय अल्पसंख्यक और केंद्र सरकार द्वारा तय अल्पसंख्यकों को मिलने वाली अलग-अलग सुविधाओं से कोई टकराव हो सकता है. इस पर पीडीटी आचार्य ने कहा,
"किसी राज्य में अल्पसंख्यक होने की वजह से किसी खास समुदाय को अगर मदद मिलती है तो वह मिलनी चाहिए. वहीं केंद्र सरकार अपने हिसाब से अल्पसंख्यकों को सुविधाएं देगी. भले ही वो किसी खास राज्य में बहुमत में हों. इससे फर्क नहीं पड़ता है."
केंद्र के मुताबिक कौन हैं अल्पसंख्यक? राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून, 1992 की धारा-2(C) के तहत, केंद्र सरकार ने 1993 में 5 समुदायों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया था. इसके तहत मुस्लिम, सिख, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदाय को शामिल किया गया. जनवरी 2014 में इसमें जैन समुदाय को भी जोड़ा गया. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अश्विनी उपाध्याय ने सबसे पहले 2017 में अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए उपयुक्त गाइडलाइंस और कुछ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. उन्होंने 1993 के केंद्र सरकार के उस नोटिफिकेशन को रद्द करने की मांग की थी जिसमें 5 समुदायों को अल्पसंख्यक घोषित किया गया था. अश्विनी उपाध्याय का कहना था कि 2014 में जैन समुदाय को भी अल्पसंख्यक सूची में जोड़ा गया. लेकिन कुछ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में हिंदुओं के अल्पसंख्यक होने के बावजूद उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं दिया गया.

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement