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श्रीलंका में इमरजेंसी लगा दी गई है

म्यांमार में बहुसंख्यक बौद्ध अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों को निशाना बना रहे थे.

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श्रीलंका में मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं और बौद्ध बहुसंख्यक. पिछले कुछ समय से लगातार मुस्लिमों को निशाना बनाने की घटनाएं हो रही हैं. हिंसा की घटनाएं मुस्लिमों की तरफ से भी होती है. मगर ज्यादातर मौकों पर मुस्लिम समुदाय ही निशाना बनता है.
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स्वाति
6 मार्च 2018 (Updated: 6 मार्च 2018, 12:21 PM IST) कॉमेंट्स
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श्रीलंका नया म्यांमार बनता दिख रहा है. बौद्धों और मुस्लिमों के बीच तनाव इतना बढ़ गया कि वहां इमरजेंसी लगा दी गई है. वहां दंगे शुरू हो गए थे. एक आदमी की हत्या हुई. वो बौद्ध था. इसके बाद बौद्धों ने मुसलमानों के घरों और दुकानों पर हमला किया. आगजनी की. एक मस्जिद पर भी हमला किया. इसके बाद हालात इतने बिगड़े कि आपातकाल लग गया. ये 5 मार्च की बात है. ये सब हुआ केंडी जिले में. धीरे-धीरे कई इलाकों में हिंसा फैल गई. 2014 में भी श्रीलंका के अंदर एक बड़ा दंगा हुआ था. दो दिनों तक चलता रहा था ये. सेना की मदद लेनी पड़ी थी तब.
पिछले साल से बौद्धों और मुस्लिमों के बीच टेंशन बढ़ गई है अभी जो तनाव बना है, वो पिछले साल की देन है. कुछ कट्टर बौद्ध संगठन मुस्लिमों पर आरोप लगा रहे हैं. कि वो लोगों का जबरन धर्म परिवर्तन करते हैं. और बुद्ध धर्म से जुड़ी खास जगहों को नुकसान पहुंचाते हैं. पिछले साल भी मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं हुई थीं. राष्ट्रपति मैथरी पाला सिरीसेना और प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे कई बार वादा कर चुके हैं. कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों की हिफाजत करेंगे. मगर इन वादों का कोई असर होता दिख नहीं रहा. तनाव बढ़ता ही जा रहा है.
ये हैं बौद्ध भिक्षु अकमीमाना दयारत्ना. 2017 में पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार किया था. म्यांमार से भागकर शरण लेने आए 31 रोहिंग्या मुसलमानों को असाइलम दिए जाने के लिए लोगों को इकट्ठा करके प्रदर्शन कर रहे थे.
ये हैं बौद्ध भिक्षु अकमीमाना दयारत्ना. 2017 में पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार किया था. म्यांमार से भागकर शरण लेने आए 31 रोहिंग्या मुसलमानों को असाइलम दिए जाने के खिलाफ श्रीलंका में जो प्रदर्शन हुए, उसका नेतृत्व ये ही कर रहे थे.

पुलिस थी, मगर हिंसा नहीं रोक पाई इस बार पहले केंडी जिले में कर्फ्यू लगाया गया. मगर फिर बाकी इलाकों की हालत भी बिगड़ने लगी. ये देखकर सरकार ने पूरे देश में इमर्जेंसी लगाने का ऐलान कर दिया. पुलिस ने दो दर्जन से ज्यादा लोगों को अरेस्ट किया है. मगर पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं. इल्जाम है कि पुलिस दंगा रोकने में एकदम नाकाम रही. इसी वजह से हालात और बेकाबू हुए. पुलिस के कामकाज की जांच का जिम्मा वरिष्ठ अधिकारियों को सौंप दिया गया है. सोशल मीडिया पर अपील करके भीड़ जमा की गई श्रीलंका में सोशल मीडिया पर भी खूब नफरत फैलाई जा रही है. लोगों को मोबलाइज किया जा रहा है. 5 मार्च को मुस्लिमों के खिलाफ जो किया गया, उसके लिए भीड़ जुटाने में भी सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल हुआ. लोग पोस्ट लिख रहे थे कि सुबह 10 बजे तेलदेनिया शहर में जमा हो जाओ. भीड़ जमा हुई. इसके बाद दोपहर 1 बजे के करीब मुसलमानों की संपत्ति को चुन-चुनकर आग लगाना शुरू किया भीड़ ने. लोग कह रहे हैं कि मौजूदा हिंसा के लिए कट्टरपंथी बोडू बाला सेना जिम्मेदार है.
26 साल तक गृह युद्ध झेल चुका है श्रीलंका श्रीलंका की आबादी में बौद्धों की तादाद करीब 75 फीसद है. जबकि मुसलमान लगभग 10 फीसद हैं. बौद्धों और मुस्लिमों के बीच पिछले काफी समय से तनाव है. अगर ये झगड़ा और बढ़ा, तो श्रीलंका की स्थितियां बदतर हो जाएंगी. श्रीलंका में करीब 26 साल तक गृह युद्ध चला था. हिंदू तमिल टाइगर विद्रोहियों और सरकार के बीच में. 2009 में ये खत्म हुआ. जून 2014 में यहां एक बड़ा दंगा हुआ था. अलुथागमा दंगा. इसके बाद वहां मुस्लिमों के खिलाफ कैंपेन चल निकला. 2015 में मैथरी पाला सिरीसेना राष्ट्रपति बने. वादा किया कि मुसलमानों को निशाना बनाने वाली वारदातों की जांच कराएंगे. लेकिन कुछ खास हुआ नहीं.
श्रीलंका में पिछले कुछ समय से बौद्ध आबादी और मुसलमानों के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है. सरकार इसे काबू में लाने के वादे तो करती है, मगर इन वादों का कोई असर नहीं होता दिखता.
श्रीलंका में पिछले कुछ समय से बौद्ध आबादी और मुसलमानों के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है. सरकार इसे काबू में लाने के वादे तो करती है, मगर इन वादों का कोई असर नहीं होता दिखता.

क्या था अलुथागमा दंगा? एक अफवाह फैली. कि एक मुसलमान युवक ने एक बौद्ध भिक्षु के साथ मार-पिटाई की है. इसके बाद बोडु बाला सेना (BBS) मुस्लिमों के खिलाफ प्रदर्शन निकालने लगी. जल्द ही ये स्थिति दंगे में बदल गई. सिंहल बौद्ध भीड़ ने श्रीलंका के दक्षिणी इलाकों में मुस्लिमों को निशाना बनाना शुरू किया. सबसे ज्यादा प्रभावित हुए बेरुवाला और अलुथागमा शहर.
दो दिनों तक चले दंगे में चार लोग मारे गए. खूब लूटपाट हुई. 80 के करीब लोग जख्मी हुए. भुगतने वालों में ज्यादातर मुसलमान थे. उनके 60 से ज्यादा घरों और दुकानों को जला दिया गया था. कई मस्जिदों पर हमला किया गया. हजारों की तादाद में जमा दंगाई भीड़ को रोकने में पुलिस नाकाम नजर आई. पुलिस के होते हुए भी हिंसा होती रही. चीजें काबू में करने के लिए सेना बुलानी पड़ी.


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