दलित गांव में सीवर लाइन जाने 'नहीं' दे रहे 'अगड़ी' जाति के लोग, वजह सोचने पर मजबूर कर देगी
तीन महीने से परेशान है दलितों का पूरा गांव. शौचालय रिनोवेट होकर तैयार लेकिन पाइपलाइन नहीं बिछने से खुले में शौच करने को मजबूर.

दलितों का एक पूरा गांव सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है. न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, तथाकथित ऊंची जाति से आने वाले कुछ लोग अपने घरों के बाहर से पाइपलाइन नहीं बिछाने देना चाहते. वो लगातार इस अंडरग्राउंड सीवेज पाइपलाइन को लेकर विरोध जता रहे हैं.
ये मामला चेन्नई के थालनकुप्पम इलाके का है. यहां शौचालय के रिनोवेशन का काम लगभग 3 महीने पहले ही पूरा हो गया था. लेकिन यहां अभी तक ताला पड़ा हुआ है. सिर्फ इसलिए कि पड़ोसी गांव नेट्टुकुप्पम में रहने वाले कुछ लोग अपने घरों के बाहर से पाइपलाइन नहीं बिछाने दे रहे हैं.
नेट्टुकुप्पम के लोगों ने न केवल सिविक सोसाइटी को अपना काम करने से रोका. बल्कि अपने घरों के बाहर दीवारें खड़ी कर दीं ताकि वहां से पाइपलाइन नहीं बिछाई जा सके. थालनकुप्पम में बने शौचालय को रिनोवेट करने में करीब 30 लाख रुपये का खर्च आया है. इसमें पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग 6 टॉयलेट्स हैं.
पुलिस सुरक्षा में बिछेगी पाइपलाइनएक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने अखबार को बताया कि तिरुवोट्टियूर के जोन-1 के जोनल अधिकारी ने नेट्टुकुप्पम में विरोध के चलते इस योजना को छोड़ दिया है. वो आगे कहते हैं कि हमने अवाड़ी के पुलिस कमिश्नर को इस मामले के बारे में बताया है. इसके साथ ही पुलिस सुरक्षा की मांग भी की है. हम जल्द ही पुलिस सुरक्षा के साथ पाइपलाइन बिछाने का काम करेंगे.
दोनों ही गांव के लोग मछली पकड़ने का काम करते हैं. लेकिन नेट्टुकुप्पम के लोग थालनकुप्पम के लोगों को जातिसूचक शब्दों से अपमानित करते रहते हैं. थालनकुप्पम गांव में दलित समुदाय के लोग रहते हैं.
जन्म से ही थालनकुप्पम में रहने वाले एन. सौंदराजन कहते हैं कि नेट्टुकुप्पम के कुछ लोग उनकी दुर्दशा पर साहनुभूति जताते हैं. लेकिन वे अपने लोगों के खिलाफ खड़े नहीं होते हैं. वो बताते हैं कि पड़ोसी गांव के कुछ लोगों ने साफ कर दिया है कि हमारा कचरा उनके गांव से होकर नहीं जा सकता. भले ही वो अंडरग्राउंड पाइपलाइन्स के जरिए हो. उन्होंने हमें ऐसी गालियां दी हैं, जो वो यहां बता भी नहीं सकते.
तीन साल पहले शुरू हुआ कामये शौचालय 40 साल पुराना है. 3 साल पहले प्रशासन ने यहां रिनोवेशन का काम शुरू किया. तब से ही थालनकुप्पम और नेट्टुकुप्पम के बीच ये विवाद चल रहा है. 70 साल की करुप्पायी कहती हैं कि वो बहुत छोटी थी, तब से हम सब इस शौचालय का इस्तेमाल कर रहे हैं. अभी तक कोई दिक्कत नहीं हुई थी क्योंकि शौचालय के पास कोई घर नहीं था. अब नेट्टुकुप्पम की तरफ कई घर बन गए हैं. वे लोग नहीं चाहते कि शौचालय शुरू हो.
थालनकुप्पम में इस सार्वजनिक शौचालय के अलावा, दूसरा शौचालय एक किलोमीटर दूर है. लोगों को मजबूरी में अपने छोटे-छोटे बच्चों को यहां ले जाना पड़ता है. गांव के लोग कहते हैं कि रात-बिरात इतनी दूर जाना उनके लिए बहुत मुश्किल होता है. ऐसे में वो खुले में पेशाब और शौच करने के लिए मजबूर हैं.
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