क्या मोदी सरकार ने पैसा लेकर भागने वालों का लोन माफ़ कर दिया?
इस तरह के वायरल मैसेज की सचाई क्या है?
ट्विटर पर साकेत गोखले ने लिखा है कि RBI ने ये जो लिस्ट दी है, वो नई नहीं है. समाचार एजेन्सी 'दी वायर' ने पहले ही इसे प्रकाशित किया था. लेकिन रोचक बात तो ये है कि 30 सितम्बर, 2019 के बाद से लेकर अब तक RBI ने अपना डेटाबेस अपडेट नहीं किया है. RTI का जवाब देते हुए RBI ने सुप्रीम कोर्ट के जयंतीलाल मिस्त्री केस का हवाला देते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के अनुसार, विदेशी डिफ़ॉल्टरों का ब्योरा नहीं दे सकते हैं.After @nsitharaman refused to answer Wayanad MP @RahulGandhi's question on top 50 willful defaulters in the Lok Sabha, I'd filed an RTI asking the same question.
The RBI responded to my RTI with a list of willful defaulters (and the amount owed) as of 30th Sep, 2019. (1/2) pic.twitter.com/gJMCFv8fAX — Saket Gokhale (@SaketGokhale) April 27, 2020
कौन-कौन से लोग हैं लिस्ट में? हीरा व्यापारी मेहुल चोकसी की प्रमुख कम्पनी गीतांजलि जेम्स का नाम तो हमने पहले ही ले लिया. इसके अलावा चोकसी से जुड़ी हुई गिली इंडिया लिमिटेड और नक्षत्र ब्रांड्स लिमिटेड का नाम भी शामिल है. दोनों पर क्रमशः बैंकों की 1,447 करोड़ रुपए और 1,109 करोड़ रुपए की देनदारी बनती है. इसके अलावा 4,314 करोड़ रुपयों की देनदारी के साथ संदीप झुनझुनवाला और संजय झुनझुनवाला की कम्पनी REI एग्रो लिमिटेड का नाम दूसरे नम्बर पर है. विजय माल्या का नाम तो हमने आपको बता दिया. देनदारी बनी 1,943 करोड़ रुपयों की. इसके साथ ही रामदेव-बालकृष्ण की कम्पनी रुचि सोया का भी नाम 2,212 करोड़ रुपयों की देनदारी के साथ शामिल है. लेकिन यहां पर एक दो बातें साफ़ होनी ज़रूरी हैं. पतंजलि समूह द्वारा रुचि सोया का अधिग्रहण दिसम्बर, 2019 में पूरा हुआ था. और ये लिस्ट है 30 सितम्बर, 2019 तक की ही. लेकिन इसके काफ़ी पहले, यानी अप्रैल 2019 में, पतंजलि समूह को NCLT यानी नेशनल कम्पनी लॉ ट्रिब्यूनल की तरफ़ से रुचि सोया को अधिगृहीत करने की झंडी दे दी गयी थी. ऐसा इसलिए, क्योंकि रुचि सोया पर लम्बे समय से बैंकों की बकायेदारी बनी हुई थी. 'इंडिया टुडे' हिन्दी के सम्पादक अंशुमान तिवारी बताते हैं कि डिफ़ॉल्टर की लिस्ट में रुचि सोया का नाम है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि रामदेव-बालकृष्ण डिफ़ॉल्टर हैं. उन्होंने क़ानूनी तरीक़े से NCLT के तहत रुचि सोया का अधिग्रहण किया है. अब शुरू हुई राजनीति इस लिस्ट के बाहर आने के बाद राजनीति शुरू हुई. राहुल गांधी ने साकेत गोखले की लिस्ट को शेयर किया.- This list is NOT new & was published by The Wire earlier. It's shocking that RBI claims they haven't updated it since 30 Sep, 2019.
- RBI also claims that list of overseas borrowers is exempt from disclosure - means they WILL NOT name willful defaulters in tax havens. (2/2) — Saket Gokhale (@SaketGokhale) April 27, 2020
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने प्रेस कॉन्फ़्रेन्स की. आरोप ये कि सरकार ने इन-इन बिज़नेसमैन का लोन माफ़ कर दिया. बीजेपी सरकार पर आरोप कि अपने क़रीबियों को फ़ायदा पहुंचाने के लिए उनका क़र्ज़ माफ़ कर दिया गया. सरकार की तरफ़ से मोर्चा सम्हाला वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने. ट्वीट किए. एक के बाद एक. कहा कि राहुल गांधी और सुरजेवाला लोगों को भ्रमित कर रहे हैं.संसद में मैंने एक सीधा सा प्रश्न पूछा था- मुझे देश के 50 सबसे बड़े बैंक चोरों के नाम बताइए।
वित्तमंत्री ने जवाब देने से मना कर दिया। अब RBI ने नीरव मोदी, मेहुल चोकसी सहित भाजपा के ‘मित्रों’ के नाम बैंक चोरों की लिस्ट में डाले हैं। इसीलिए संसद में इस सच को छुपाया गया। pic.twitter.com/xVAkxrxyVM — Rahul Gandhi (@RahulGandhi) April 28, 2020
निर्मला सीतारमण ने कहा कि ये जो डिफ़ॉल्टरों की लिस्ट है, ये उन लोगों की है, जिन्हें पूर्ववर्ती UPA सरकार की ‘फ़ोन बैंकिंग’ का लाभ मिला. उन्होंने पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन के हवाले से कहा कि मुझे रघुराम राजन ने बताया था, साल 2006-2008 के बीच देश में बड़ी संख्या में बैड लोन पैदा हुए थे. ऐसे बहुत सारे लोगों को उस समय लोन दिए गए, जिनकी लोन की भरपाई करने का इतिहास बेहद ख़राब था. सरकारी बैंक इन लोगों की लगातार मदद कर रहे थे, जबकि प्राइवेट बैंक अपने हाथ बाहर खींच रहे थे.Shri @RahulGandhi MP (LS) and Shri @rssurjewala spokesperson of @INCIndia have attempted to mislead people in a brazen manner. Typical to @INCIndia, they resort to sensationalising facts by taking them out of context. In the following tweets wish to respond to the issues raised.
— Nirmala Sitharaman (@nsitharaman) April 28, 2020
इसके बाद सीतारमण ने नीरव मोदी, विजय माल्या और मेहुल चोकसी के केसों के बारे में बताया. कहा कि इनके खिलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई तो चल ही रही है, साथ ही इनकी सम्पत्ति का एक बड़ा हिस्सा भी ज़ब्त किया गया है. साथ ही इन्हें वापस भारत लाने की कार्रवाई चल रही है. आख़िर में कांग्रेस पर एक और हमला किया. कहा कि कांग्रेस ने न तो सत्ता में, न ही विपक्ष में बैठकर भ्रष्टाचार के खिलाफ़ काम करने में कोई दृढ़ता दिखाई.Useful to recall the words of Shri.Raghuram Rajan: “A large number of bad loans originated in the period 2006-2008...Too many loans were made to well-connected promoters who have a history of defaulting on their loans...Public sector bankers continued financing promoters even...
— Nirmala Sitharaman (@nsitharaman) April 28, 2020
लेकिन मोदी सरकार की कहां ग़लती है? अंशुमान तिवारी बताते हैं कि लोन को राइट-ऑफ़ करना मतलब उसे बट्टे-खाते में डाल देना. ये पैसा अब बैंक के पास वापस नहीं आएगा. बैंक रिकवरी की कोशिश कर सकता है. लेकिन अधिकांश मामलों में पैसा चला ही जाता है. बैंक ने राइट-ऑफ़ किया, मतलब सारे रास्ते ख़त्म. आगे अंशुमान तिवारी बताते हैं,@INCIndia and Shri.@RahulGandhi should introspect why they fail to play a constructive role in cleaning up the system. Neither while in power, nor while in the opposition has the @INCIndia shown any commitment or inclination to stop corruption & cronyism.
— Nirmala Sitharaman (@nsitharaman) April 28, 2020
“लोन बट्टे-खाते में डालने का मतलब है कि बैंक अपने लाभ या अपने रिज़र्व में से अपने बैलेन्स शीट की ये कमी पूरी करेंगे. और बैंक में तो आम जमाकर्ता का पैसा रखा हुआ है. यानी आम जमाकर्ता पर लोड आएगा. आख़िर में सरकार को बैंक का कैपिटल बढ़ाना होगा, तो ख़र्च आख़िर में सरकार पर ही आया.”इसके साथ ही ये भी तथ्य है कि जिन बैंकों ने लोन राइट-ऑफ़ किया है, वो सरकारी बैंक हैं. अंशुमान तिवारी बताते हैं कि सरकार एकदम सीधे तौर पर ज़िम्मेदार नहीं दिखती है. लेकिन सरकारी बैंक जान-बूझकर पैसा न चुकाने वालों (विलफ़ुल डिफ़ॉल्टर) की देनदारी को बट्टे-खाते में डाल रहे हैं, तो इसके लिए कहीं न कहीं तो सरकार पर सवाल उठते ही हैं. मेहुल चोकसी, विजय माल्या, नीरव मोदी के मामलों को देखें, तो ये लोग हाल में ही देश से बाहर गए हैं. पैसा न चुकाकर. ऐसे में इनके फ़रार हो जाने में सरकार की सुस्ती भी सवाल खड़े करती है.