The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • News
  • ramzan in kiruna, northernmost town in Sweden

'हैलो! भैया यहां सुबह नहीं होती, सहरी का टाइम बता दो'

इस शहर का हाल निराला है. रमज़ान में लोगों को दिक्कत तब होती है जब उनको फोन करके सहरी इफ्तारी का टाइम पूछना पड़ता है. क्योंकि न रात होती है न सुबह.

Advertisement
Img The Lallantop
Image: al jazeera
pic
लल्लनटॉप
9 जून 2016 (Updated: 9 जून 2016, 11:20 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
हैलो ! हैलो ! सूरज डूब गया क्या?? बता दो भिया. रोजा खोलना है. ऐसी कुछ हालत होती है किरुना में. किरुना, स्वीडन का एक शहर. लमसम 700 मुस्लिम हैं इस शहर में. ये शहर बड़ा अजीब है. और इन बेचारों का बैडलक. रोज़ा खोलने के लिए इन्हें टेलीफोन का सहारा लेना पड़ता है. काहे कि यहां सूरज महाशय डूबने का नाम ही नहीं ले रहे. जिद पाले बैठे हैं. कि 16 जुलाई तक हम न डूबेंगे. आधी रात में भी सर पे चढ़े रहते हैं. कारण कि ये शहर चारो तरफ से बर्फ वाले पहाड़ो से घिरा है. 201477115226688734_20 एक बार की बात है. एक साहब यहां घूमने आए. गस्सन अलंकर नाम था . रात में सोने का टाइम आया. तो खिड़की में पर्दा डाल के सो गए. उस टाइम रमजान का पाक महीना चल रहा था. सहरी के लिए सुबह 3:30 उठे. तो देखा कि सूरज तो मुंह फाड़ के खड़ा है. कनफूजिया गए. अब सूरज डूबा होता तभी तो उगता. लेकिन डूबा तो था नहीं. बाद में पता किया तो पता चला. यहां ऐसा ही होता है. रोज़ा खोलने के लिए फोन घुमाना पड़ता है. ज्यादातर लोग 1240 किमी दूर कैपिटल स्टॉकहोम में फोनियाते हैं. वहां पर एक संस्था है. नाम है- यूरोपियन काउंसिल ऑफ़ फतवा एंड रिसर्च. उसी के हिसाब से रोज़े की टाईमिंग फॉलो करते हैं. अब आप सोचेंगे कि. क्यों? वह कोई संस्था नहीं है क्या? तो आपको बता दे कि. हां, किरुना में ऐसी कोई संस्था नहीं है. बड़ी परेशानी होती है. कई बार तो 22-23 घंटे बाद इफ्तारी कई जाती है. ख़ास बात है कि अभी तो सूरज नहीं डूब रहा. लेकिन कुछ महीनो बात तो उगेगा ही नहीं. इस साल 11 दिसम्बर से 1 जनवरी तक ऐसा ही होगा. ऐसा इसीलिए होता है. क्योंकि ये शहर आर्कटिक सर्किल में बसा है.
स्टोरी दी लल्लनटॉप के साथ इंटर्नशिप कर रहे रमन जायसवाल ने एडिट की है.  

Advertisement