जब प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने भरी संसद में मस्जिद बनवाने का वादा किया था
6 दिसंबर, 1992 के दिन बाबरी मस्जिद को ढहाया गया था.
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6 दिसंबर, 1992. वो दिन जब बाबरी मस्जिद को ढहाया गया था, तब पी. वी. नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री थे. राव ने अगले दिन यानी 7 दिसंबर, 1992 को संसद में भाषण दिया.
भाषण में राव ने कई बार राज्य सरकार और मुख्यमंत्री का ज़िक्र किया है. वो उत्तर प्रदेश की BJP गवर्नमेंट और वहां के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की बात कर रहे हैं.ये भाषण राव की लिखी किताब ' अयोध्या - 6 दिसंबर 1992' में छपा है. हम आपको प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के इस भाषण के मुख्य पॉइंट्स बताएंगे. राव के इस भाषण में सफाई है. शिकायत है. घटनाक्रम है. अफसोस है. और एक वादा है.
सफाई - 'हमने मुख्यमंत्री को यह जानकारी दी थी कि हमारे अनुमान के मुताबिक राज्य सरकार द्वारा अयोध्या में तैनात सुरक्षाबल पर्याप्त नहीं हैं. 30 नवंबर, 1992 को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का ध्यान इस कमी की ओर खींचा. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को कहा, कि केंद्र सरकार के सुझावों पर ध्यान दें. केंद्र सरकार ने 24 नवंबर, 1992 को ही अयोध्या के नज़दीक कई इलाकों में अर्धसैनिक बलों को तैनात कर दिया था. ताकि जब भी राज्य सरकार को आवश्यकता हो तो कम से कम समय में सुरक्षा बल उपलब्ध करवाए जा सकें.'
शिकायत - 'मुख्यमंत्री ने बलों का इस्तेमाल करने के बजाय हमारे इस काम की आलोचना की और इन्हें वापस बुलाने की मांग की. उन्होंने केंद्र सरकार के इस काम की वैधता को चुनौती तक दे डाली. राज्य सरकार केवल बम निरोधी दस्ते और स्निफ़र-डॉग स्क्वाड सेवाएं लेने के लिए मानी. और वो भी तब जब केंद्र सरकार ने ढांचे पर विस्फोटकों से संभावित हमले की ओर राज्य सरकार का ध्यान दिलाया. मुख्यमंत्री के विचित्र और अड़ियल रवैये के बावजूद अयोध्या के आसपास तैनात केन्द्रीय अर्धसैनिक बल को सचेत रहने को कहा गया था. ताकि मौका पड़ने पर वे राज्य सरकार के लिए उपलब्ध रहें.'
घटनाक्रम - '6 दिसंबर, 1992 को प्रारंभिक सूचना ये थी कि स्थिति शांतिपूर्ण है. राम कथा कुंज में एक सार्वजनिक सभा के लिए करीब 70,000 कारसेवक इकट्ठे हुए थे. उन्हें संघ परिवार के वरिष्ठ नेता संबोधित कर रहे थे. चबूतरे पर लगभग 500 साधु-संत पूजा की तैयारियां कर रहे थे.
11:45 से 11:50 के बीच लगभग 150 कारसेवक बाड़ को तोड़ कर चबूतरे पर जा चढ़े और पुलिस पर पथराव करने लगे. लगभग 1000 कारसेवक ढांचे में जा घुसे. और लगभग 80 कारसेवक ढांचे के गुंबद पर चढ़कर उसे तोड़ने लगे.
लगभग 12:20 तक परिसर में करीब 25000 कारसेवक थे, जबकि एक बड़ी संख्या बाहर जमा हो रही थी.
2:20 पर 75,000 लोग ढांचे को घेरे हुए थे. ज़्यादातर इसे तोड़ने में लगे थे. 6 दिसंबर की शाम तक ढांचे को पूरी तरह मिटा दिया गया था. ऐसा समझा जाता है कि मुख्य पुजारी ने ढांचे के भीतर से रामलला की मूर्ति को हटा लिया और कथित रूप से मूर्तियों को फिर से रख कर उनके ऊपर एक टीन शेड डाल दिया गया.'
जब 1991 देश में आर्थिक उदारीकरण हुआ, तब भी देश के प्रधानमंत्री राव ही थे. (सोर्स - PTI)
अफसोस - 'कई बलिदानों के बाद स्वतंत्रता हासिल करने वाला देश इस क्रूर घटना का साक्षी बना. हमारे प्राचीन देश में सदियों से अनेक मत और संप्रदाय रहे हैं. जिन्होंने विभिन्न धर्मों और मान्यताओं के लोगों प्रेरित किया है. धर्मों, मान्यताओं और समप्रदायों की यही बहुलता भारतवर्ष की पहचान रही है. सांप्रदायिक ताकतों ने इस पवित्र विश्वास को तोड़ा है. विनाश की पागलपन भरी दौड़ को रोकने का सर संभव उपाय किया गया. हर राजनैतिक और संवैधानिक उपाय को अपनाया गया. ताकि हम विवेक और बुद्धि से काम ले सकें. यही एकमात्र तरीका है, जिससे कोई प्रजातांत्रिक और सभ्य देश काम कर सकता है.'
वादा - 'मेरी सरकार इन ताकतों के खिलाफ खड़ी होगी. इस घिनौने कार्य के लिए भड़काने वाले लोगों के खिलाफ हम संविधान के अनुसार सख्त कार्रवाई करेंगे. और मैं वादा करता हूं कि कानून ऐसे लोगों को अवश्य पकड़ेगा, फिर चाहे वे कोई भी हों.'
इस भाषण के अंत में नरसिम्हा राव ने एक और वादा किया - 'मस्जिद को गिराना बर्बर कार्य था, सरकार इसका पुनर्निर्माण करवाएगी.'
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