आतंकी के पिता ने कहा- हम CRPF जवानों की मौत का जश्न नहीं मना रहे हैं
कहा- नौजवानों को आतंकी बनने से रोको.
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गुलाम हसन डार ने कहा है कि सरकार यहां के युवाओं को आतंकी बनने से रोके.
पुलवामा में आत्मघाती करने वाले आदिल अहमद डार के प्रति देश गुस्से में है. कुछ लोग इससे भी आगे बढ़कर उसके घर वालों को भी हमले का ज़िम्मेदार मानते हैं. आदिल अहमद के पिता का नाम है गुलाम अहमद डार. जहां ये हमला हुआ उससे ज्यादा दूर घर नहीं है इनका. आम कश्मीरी तरह लम्बा कोट पहने रहते हैं. बेटे ने जो किया है वो कितना भयावह था ये समझ सकते हैं. जबसे ये घटना हुई है तबसे मीडिया इनके घर के आसपास है. इंडिया टुडे ने भी गुलाम हसन डार का इंटरव्यू किया. ये जानने के लिए कि आखिर क्यों आदिल आतंकवादी हो गया?
वो कश्मीर में हो रही आतंकवादी गतिविधियों को लेकर चिंतित दिखे. उन्होंने बताया कि कैसे पिछले साल मार्च में आदिल घर से गायब हो गया और फिर वापस नहीं आया. 18 मार्च 2018 का दिन था. आदिल के घरवाले उसका इंतज़ार कर रहे थे लेकिन वो नहीं आया. आदिल पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद को जॉइन कर चुका था. घरवालों ने कुछ दिन उसे खोजा लेकिन फिर उम्मीद छोड़ दी. फिर एक उन्हें खबर मिलती है कि आदिल ने एक फियादीन हमले में CRPF के 40 जवानों की जान ले ली. इस हमले पर आदिल के पिता ने कहा-
हम CRPF के जवानों की मौत का जश्न नहीं मना रहे हैं. हम उनके परिवार वालों का दुख समझ सकते हैं क्योंकि हम सालों से कश्मीर में हिंसा का सामना कर रहे हैं.गुलाम डार ने बेटे आदिल के जैश जॉइन करने के पीछे का कारण बताते हुए कहा कि आदिल ने पैसे के लिए जैश जॉइन नहीं किया होगा क्योंकि हमारे पास पर्याप्त पैसा है. वो पढ़ा लिखा भी था. उसे आगे भी पढ़ाई करनी थी. पिता गुलाम डार ने अपने बेटे को आतंकी बनते देखा है और जब उनसे पूछा गया कि वो घाटी के दूसरे नौजवानों को क्या कहना चाहते हैं, डार ने कहा-
मैं युवाओं को कोई मैसेज नहीं देना चाहता. लेकिन सरकार से एक अपील ज़रूर करना चाहूंगा कि वो इस हिंसा का कोई समाधान खोजे और युवाओं को इस रास्ते पर जाने से रोके.गुलाम डार 2 साल पहले तक यूएई में काम करते थे. लेकिन वहां से लौट आए और अब बेरोज़गार हैं. जिस इलाके में डार रहते हैं, वो आतंकवादी गतिविधियों के लिए जाना जाता है. सेना और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ रोज की कहानी है. काकापोरा और उसके आस पास का इलाका भी कट्टरपंथी है. आदिल अहमद डार ने भी इन्हीं कट्टरपंथियों के साथ मिलकर 14 फरवरी को इस हमले को अंजाम दिया जिसमें 40 जवान शहीद हो गए.
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