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कालाहांडी में लोग वेदांता के गेट पर क्यों मर रहे हैं?

जानिए वो सच, जिससे कालाहांडी के लोग कई साल से जूझ रहे हैं.

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लांजीगढ़ रिफाइनरी के आस-पास के गांवों के कोई 70 लोग फैक्ट्री के मेन गेट के बाहर धरने पर बैठ गए.
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अनिरुद्ध
20 मार्च 2019 (Updated: 19 मार्च 2019, 04:28 AM IST) कॉमेंट्स
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क्या हुआ-   लाठीचार्ज. कहां-          ओडिशा के कालाहांडी जिले के लांजीगढ़ में. क्यों-          नौकरी के सवाल पर. नतीजा-      दो की मौत.
मरने वाले कौन - एक, नौकरी मांगने वाला. दूसरा, ओडिशा इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स यानी  OISF का जवान. लाठीचार्ज में मारा गया शख्स दानी पात्रा था. OISF के जवान का नाम सुजीत कुमार मिंज था. खबरें है कि OISF के जवान को भीड़ ने आग के हवाले कर दिया था.
ये बवाल कोई मामूली नहीं था. ब्रिटेन की एक कंपनी है वेदांता लिमिटेड. दुनिया के जाने-माने उद्योगपति अनिल अग्रवाल इसके चेयरमैन हैं. ओडिशा में एक ज़िला है कालाहांडी. सुनकर कुछ याद आता है? ये वही ज़िला है जहां 80 के दशक में वो भयंकर सूखा पड़ा था कि माओं ने अपने बच्चे बेच दिए थे. क्योंकि उनका पेट भरने के लिए पैसे नहीं थे. खैर, खूब योजनाएं बनीं और कहा गया कि कालाहांडी अब भुखमरी से बहुत आगे आ गया है. इसी कालाहांडी में नियामगिरी के पहाड़ और जंगल हैं. जंगलों के बीच लांजीगढ़ में वेदांता एक एल्युमिनियम रिफाइनरी प्लांट चलाती है. माने एक कारखाना जहां बाक्साइड अयस्क में से एल्युमिनियम धातु अलग की जाती है. कंपनी ने यहां करीब 50,000 करोड़ रुपए का निवेश किया है. कंपनी ने रिफाइनरी के पास स्कूल, अस्पताल, कॉलेज, सड़कें, रेल लाइनें और हवाई पट्टी तक बनाई है. वेदांता के मालिक अनिल अग्रवाल का दावा है कि कारखाने से कालाहांडी के 14 लाख से ज्यादा लोगों को फायदा पहुंचा है. डायरेक्ट और इनडायरेक्ट.
कालाहांडी में 80 के दशक में वो भयंकर सूखा पड़ा था कि माओं ने अपने बच्चे बेच दिए थे. फाइल फोटो. इंडिया टुडे.
कालाहांडी में 80 के दशक में वो भयंकर सूखा पड़ा था कि माओं ने अपने बच्चे बेच दिए थे. फाइल फोटो. इंडिया टुडे.

पर ज़मीन का सच ये है कि इन दावों के बावजूद 18 मार्च के दिन एक पूरी भीड़ नौकरी मांगने के लिए रिफाइनरी के बाहर इकट्ठा हुई. स्थानीय लोग रिफाइनरी में नौकरी और कंपनी के स्कूलों में बच्चों के दाखिले चाहते थे. लांजीगढ़ रिफाइनरी के आस-पास के गांवों के कोई 70 लोग फैक्ट्री के मेन गेट के बाहर धरने पर बैठ गए. सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था कि अचानक कुछ लोग उठकर हो हल्ला काटने लगे. कुछ प्रदर्शन करते हुए रिफाइनरी प्लांट में घुसने की कोशिश करने लगे. ये देख OISF के जवानों ने उनको रोकने की कोशिश की. तभी भीड़ में से किसी ने पुलिस पर पत्थर फेंक दिया. और फिर बवाल बढ़ गया. आरोप है कि ओआईएसएफ के जवानों ने भीड़ पर लाठियां बरसाना शुरू कर दिया. भीड़ को घेरकर लाठी-डंडों से बुरी तरह मारा पीटा गया. इसमें कोई 20 लोग बुरी तरह जख्मी हो गए. इन्हीं घायलों में एक दानी पात्रा की अस्पताल में मौत हो गई. बताया जा रहा है कि इसी एक साथी की मौत के बाद भीड़ और ज्यादा उग्र हो गई. भीड़ ने फिर एल्युमिनियम प्लांट के कम्युनिटी सेंटर में तोड़फोड़ की. उसके एक कमरे में ओआईएसएफ के जवान को बंद करके उसे आग के हवाले कर दिया. ये घटना सुनने में बर्बरता का उदाहरण लगेगी. कानून हाथ में लेने का हक किसी को नहीं है.लेकिन कुछ बातें हैं, जो आपको जाननी चाहिए .
कालाहांडी इतना नाराज़ क्यों है? वेदांता ने साल 2004 में लांजीगढ़ के अस-पास के कोई आधा दर्जन गांवों में करीब 3,000 एकड़ जमीन एक्यायर की थी. कंपनी ने वादा किया था कि रिफाइनरी में नौकरी गांव के लोगों को पहले मिलेगी. उनके बच्चों की पढ़ाई कंपनी के स्कूलों में फ्री में होगी. लोग कहते हैं कि कंपनी अब इस वादे से मुकर रही है. स्थानीय लोगों के बच्चों के लिए कंपनी के स्कूलों में जगह नहीं है. रिफाइनरी में नौकरी भी बाहरी लोगों को दी जा रही है. कंपनी के वादे पर स्थानीय आदिवासी युवाओं ने डिग्री और डिप्लोमा ले लिए हैं. फिर भी नौकरी नहीं मिल रही.
ज़रूरी सवाल भूखे का डर बड़ा होता है. और उससे बड़ा डर होता है जान का. भूख इतनी बढ़ जाए कि आदमी जान का डर भूल जाए, तो आदमी ढह जाता है. नतीजा कालाहांडी की घटना में हम देख रहे हैं.


वीडियोः अर्थात: पिछले 20 साल में किस तरह से बदला है देश का वोटिंग पैटर्न?

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