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JNU कम्युनिस्टों का अड्डा है, बंद कर देना चाहिए? प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल का जवाब सुनना चाहिए

भारत के सबसे शानदार विश्वविद्यालयों में से एक है JNU. इधर, पिछले कुछ सालों से ये विश्वविद्यालय विवादों के केंद्र में रहा है.

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Professor Purushottam Agarwal On JNU Being Labeled As Communist Bastion
JNU पर प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल ने अपने विचार रखे. (फोटो: विशेष इंतजाम/ आजतक)
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पुनीत त्रिपाठी
29 जून 2023 (Updated: 29 जून 2023, 09:41 AM IST) कॉमेंट्स
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जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) पर आए दिन नई बहस होती रहती है. भारत के सबसे शानदार विश्वविद्यालयों में से एक है JNU. ना जाने कितने ही नेताओं, प्रशासनिक अधिकारियों और सामाजिक बदलाव लाने वाले लोगों को इस विश्वविद्यालय ने गढ़ा है. हालांकि, इस यूनिवर्सिटी को कई लोग कम्युनिस्टों का गढ़ मानते हैं. सोशल मीडिया या टीवी डिबेट देखेंगे तो लगेगा कि कई लोग चाहते हैं कि इस यूनिवर्सिटी को बंद कर दिया जाए. इस मुद्दे पर ‘दी लल्लनटॉप’ ने लेखक और JNU के पूर्व प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल से बात की.

दरअसल, JNU के पूर्व प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल 'दी लल्लनटॉप' के स्पेशल शो ‘गेस्ट इन द न्यूज़रूम’ में आए. जल्द ही प्रोग्राम दर्शकों के लिए उपलब्ध होगा. हम यहां उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश छाप रहे हैं. इस प्रोग्राम में प्रोफेसर ने कई विषयों पर अपनी बात रखी. इस दौरान JNU पर भी बात हुई. ‘दी लल्लनटॉप’ के संपादक सौरभ द्विवेदी ने पुरुषोत्तम अग्रवाल से सवाल किया,

"JNU को बंद करने जैसी बातें जब भी आती हैं, तब एक बात सबसे ज्यादा सुनाई देती है. ये कम्युनिस्टों का अड्डा है, उनका गढ़ है, और फिर इस बात की वजह सतह-दर-सतह उठाई जाती है. कहा जाता है कि यहां ज्यादातर प्रोफेसर वामपंथी रुझान वाले थे, इसलिए जो वामपंथी स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन थे, उन्हें पनपने का मौका मिला. और फैकल्टी से बहुत सपोर्ट भी मिला. कई लोगों का आरोप ये भी है कि कई स्टूडेंट्स को, जबतक वो कैंपस में रहे, उन्हें कम्युनिस्ट रहना पड़ता था. एक और वजह ये बताई गई कि कम्युनिस्ट शिक्षकीय तंत्र में वो इतना हावी हैं कि अगर किसी को DU, JNU, जामिया में प्रोफेसर बनना है, तो इस रास्ते से होकर गुजरना पड़ेगा..."

प्रोफेसर पुरुषोत्तम ने तुरंत जवाब देते हुए कहा,

'वैसे तो, इस बात में कोई दम नहीं है. इस तरह की बात किसी भी विचार, किसी भी व्यक्ति के बारे में कही जा सकती है. सवाल खड़ा करने वाले तो विचार की ही नहीं, व्यक्तियों के तंत्र की भी बात करते हैं. ऐसा कहा जाता था एक ज़माने में कि नामवर सिंह की मर्ज़ी के बिना किसी हिंदी विभाग में पत्ता तक नहीं हिलता. वास्तविकता क्या है, ये हम लोग जानते हैं. नामवर सिंह के कई प्रिय विद्यार्थियों को दिल्ली यूनिवर्सिटी में नौकरी ही नहीं मिली. ऐसे ही (कई) अन्य प्रोफेसरों के बारे में भी कहा जाता है. ये जो विचार वाली बात है, इसमें कुछ सच्चाई भी हो सकती है. हालांकि, वैचारिक तंत्र को तोड़ने का तरीका क्या है? मान लीजिए कि इतिहास पर मार्क्सवादियों ने वर्चस्व बना रखा है. या साहित्य में. तो वो वर्चस्व क्या डंडे के बल पर बनाया गया है? क्या गैर-मार्क्सवादी लेखकों को जेल में बंद कर बनाया गया है? साहित्य में या इतिहास में या विचार में या विज्ञान में, किसी भी वर्चस्व को तोड़ने का एक ही तरीका है. आप अधिक तथ्य-संगत, अधिक तर्क-संगत, अधिक प्रामाणिक बात कर उस बात को काट दो. और कोई तरीका नहीं है. बाकी आप दादागिरी कर सकते हो, वो अलग बात है.

उन्होंने आगे कहा,

रोमिला थापर के लेक्चर के बीच खड़े होकर आप नारेबाजी करने लगे, गाली-गलौच करने लगे, वो आपकी मर्ज़ी. लेकिन रोमिला थापर द्वारा की गई इतिहास की व्याख्या से आपको आपत्ति है, तो उसका तरीका तो एक ही है. आप उसकी दूसरी वैकल्पिक व्याख्या कर दीजिए. मैंने कबीर की एक व्याख्या की है. अब ये चुनाव आपका है कि आप इस व्याख्या के बाद मेरे हाथ-पैर तोड़ दें. या कहीं मेरा व्याख्यान हो रहा है तो वहां जाकर हल्ला-मचाने लगें. या फिर मेरी व्याख्या को तर्को और तथ्यों का काटते हुए, अपनी वैकल्पिक व्याख्या पेश करें. और पाठक के विवेक पर भरोसा रखें. तो ये बात चाहे वामपंथी तंत्र के बारे में कही जाए या दक्षिणपंथी तंत्र के बारे में, ये एक सीमा तक ही सही हो सकती है. इसके आगे इस बात में कोई दम नहीं है.

प्रोफेसर ने कहा,

जहां तक JNU के गढ़ होने का सवाल है, इसका साइंस स्कूल तो शुरुआत से ही हिंदुत्व की राजनीति का गढ़ रहा है. वहां के स्टूडेंट चुनाव में भी जीतते रहे हैं. और फिर बात ये कि फैकल्टी के चुनाव में भी ऐसा नहीं है कि सिर्फ वामपंथी ही छाए हुए थे. आजकल की पीढ़ी को शायद मालूम ना हो, एक प्रोफेसर एमएल सोंधी हुआ करते थे. वो JNU के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़ के ही प्रोफेसर थे. वो भारतीय जनसंघ के बाकायदा मेंबर थे. राज्यसभा के मेंबर भी रहे. हालांकि, उन्हें कभी JNU में अपमानित नहीं किया गया. और उन्होंने ऐसा कभी नहीं कहा कि उनके साथ कोई विक्टिमाइजेशन हुआ हो. तो सब तरह के लोग थे जेएनयू में. कांग्रेस वाले, लेफ्ट वाले, इस तरह के (दक्षिणपंथी)... पॉलिटिकली न्यूट्रल लोग भी थे.'

'गेस्ट इन द न्यूज़रूम' में प्रोफेसर पुरुषोत्तम ने JNU के अलावा राजनीति, शिक्षा और देश के अन्य मुद्दों पर बातचीत की. ये इंटरव्यू दर्शकों के लिए जल्द ही उपलब्ध होगा. 

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