हार्दिक पटेल ने आंदोलन के पैसे से खुद का घर भर लिया?
हार्दिक को आग लग गई केतन-चिराग से, क्रांति के अगुआ कमाई के सवाल पर ओपन लेटर लिख मारे हैं.
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Reuters
ओपन लेटर्स आर इन. इनने-उनने सबने लिख रखे हैं. ओपन लेटर लिखना कूल है. अक्सर जिसके लिए लिखा जाता है उसके अलावा सब पढ़ लेते हैं. हम हियां बैठ के नवाज़ शरीफ को ओपन लेटर लिख देते हैं. उनकी गरज हो तो क ख ग घ सीखें और लेटर पढ़ें.लुटेरों के गिरोह मे लूट के समय तक एकता रहती है. लड़ाई तो लूट का माल बांटने के वक्त होती है. ~ चाणक्य ने नहीं लिखा था.
तो बात ये है कि गुजरात में आंदोलन का एक स्टार्टअप शुरू हुआ था. तीन मुंडियां थीं हार्दिक पटेल, केतन पटेल और चिराग पटेल. वादा था कि आंदोलन हिट होगा, पाटीदारों का हित होगा. अहो, क्या वर्ड प्ले है. रेडियो वाले यूज कर सकते हैं. राष्ट्रद्रोह का केस लगा, तो पटेलत्रयी जेल गई. हर स्टार्टअप के पीछे उद्देश्य एक ही होता है. कमाई. इस वाले में किसकी हुई. हमको क्या पता? विश्वस्त सूत्रों ने भी नाम न छपने की शर्त पर नहीं बताया.

चैन से खाने भी नहीं देते
पानी उतरा, आंदोलन की ठाईं ठुइय्यां ठुस्स हुई. अब तंबू लगाने वाले भिड़ पड़े. केतन और चिराग ने ओपन लेटर लिखा हार्दिक को और बोले.
तुम, तुम्हारे चाचा और बाक़ी दोस्त आंदोलन के पैसों से महंगी-महंगी गाड़ियों में घूमने लगे हो. तुम जब जेल गए थे तब तुम्हारी और तुम्हारे चाचा की आर्थिक स्थिति क्या थी? जेल में जो आदमी जाता है, उसकी कमाई तो बंद हो जाती है. तुम्हारे साथ उल्टा हुआ. तुम तो जेल जाकर करोड़पति बन गए.चिट्ठी में ये भी लिखा था कि तुम्हारे साथ ही हम भी जेल गए थे. आईपीसी की वही धारा हम पर भी लगी थी. हमने भी जेल में उतना ही टाइम बिताया, जितना तुमने बिताया.
सवाल सही भी है. जेल जाने वाले की तो हालत सच में खराब हो जाती है. हार्दिक पटेल के साथ क्या हुआ होगा?
1. जेल की सेल से हीरा निकल आया? 2. हार्दिक ने जेल में Shawshank redemption जैसा कुछ कर दिया. 3. शाकालाका बूम-बूम वाली पेंसिल मिल गई.तो मितरों समझिए कि अगस्त क्रांति बीटा वर्जन 2.0 की रिड्यूस्ड फोटोकॉपी
जो 25 अगस्त 2015 को अहमदाबाद के जीएमडीसी ग्राउंड में हुई थी. उसको हुए अभी कैलेंडर में भी एक साल नहीं हुए. और आंदोलन के दिग्गज डोल गए.
चिराग और केतन ने पैरा बदलते हुए लिखा. क्रांति रैली के दौरान जो पाटीदार पुलिस फायरिंग और लाठीचार्ज में शहीद हुए थे, उनमें से एक प्रतीक के परिवार वालों को जब अहमदाबाद में इलाज के लिए घर चाहिए था, तो उनकी मदद किसी ने नहीं की. यहां तक कि हार्दिक तुमने भी उनके लिए संवेदना का एक शब्द नहीं कहा. पहले समाज का निर्माण होता है फिर समाज के जरिए राष्ट्र का निर्माण किया जाता है, लेकिन तुमने तो सिर्फ अपने घर का निर्माण किया है और समाज को बांटा है.अंत में लिखा है. इतना कहने के बाद भी अगर हार्दिक तुम नहीं समझे तो एक और लेटर लिखेंगे और आगे की बात कहेंगे. तो ब्रेस योरसेल्फ ओपन लेटर्स आर कमिंग. क्रांति स्टोर से कमाई हुई है. अगुआ परेशान हैं कि एक के पास ज्यादा धन कैसे आ गया. हमारा दोस्त सही कहता है, इस मुल्क में क्रांति सिर्फ जी सिनेमा पर आ सकती है.